महाराष्ट्र

सर्वोच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश को मंगलवार तक दी जायेगी चुनौती

लोकनिर्माण मंत्री अशोक चव्हाण ने दी जानकारी

नांदेड हिंस /दि.१८ – मराठा आरक्षण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) द्वारा दिये गये अंतरिम आदेश को आगामी सोमवार या मंगलवार तक चुनौती दी जायेगी. साथ ही इस संदर्भ में मराठा समाज के लिए दो दिनों के भीतर एक राहतकारी निर्णय घोषित किया जायेगा. ऐसा स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा कहा गया है. अत: मराठा समाज ने धैर्य व संयम से काम लेना चाहिए, क्योकि सरकार इस मामले में मराठा समाज के साथ खडी है.
इस आशय की जानकारी मराठा आरक्षण विषयक मंत्रिमंडल उपसमिती के अध्यक्ष तथा राज्य के लोकनिर्माण मंत्री अशोक चव्हाण (Ashok Chavan) द्वारा दी गई है. नांदेड में मराठा समाज के आंदोलकों से मुलाकात करने के बाद पत्रकारों के साथ संवाद साधते हुए अशोेक चव्हाण ने कहा कि, सर्वोच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश आने के बाद उपजे हालात की राज्य सरकार द्वारा विस्तृत समीक्षा की गई है. मराठा आरक्षण के लिए अध्यादेश जारी करने सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ में जाकर पुनर्विचार याचिका दायर करने, संविधानपीठ में जाकर इस आदेश को निरस्त करने की विनंती करने, मराठा समाज को आर्थिक रूप से पिछडे संवर्ग में आरक्षण का लाभ देने तथा विविध पाठ्यक्रमों में सीटें बढाने जैसे अनेकोें पर्याय व सुझाव सामने आये है. जिन्हें लेकर तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार-विमर्श किया जा रहा है और इन सभी विषयों को लेकर खुद मुख्यमंत्री द्वारा व्यक्तिगत तौर पर ध्यान दिया जा रहा है.
साथ ही इस संदर्भ में एक दिन पहले ही दोनों सभागृहों के नेता प्रतिपक्ष तथा विविध राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा की गई और सभी राजनीतिक दल आरक्षण के विषय पर मराठा समाज के साथ है. अत: उन्हें आंदोलन करने की जरूरत नहीं है. बल्कि यह लडाई हमें अदालत में ही लडनी होगी. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, यदि किसी को लगता है कि, सरकार के प्रयास कम पड रहे है, तो वे भी हस्तक्षेप याचिका दायर करते हुए अपने वकील लगा सकते है. इससे आरक्षण का पक्ष और भी अधिक मजबूत होगा. इस समय अशोक चव्हाण ने कहा कि, विगत ९ सितंबर को मराठा आरक्षण के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश दिया है और अभी इस मामले में अंतिम सुनवाई व अंतिम निर्णय होना बाकी है.
साथ ही अब यह मामला संविधान पीठ को सौंप दिया गया है. उन्होंने बताया कि, विधानमंडल में सभी राजनीतिक दलों ने सर्वसम्मति से विधेयक मंजूर कर मराठा आरक्षण अधिनियम तैयार किया है और इस कानून को संवैधानिक दर्जा रहनेवाले राज्य पिछडावर्गीय आयोग की सिफारिशों का मजबूत आधार है. इस कानून की वैधता पर मुंबई उच्च न्यायालय ने भी दीर्घ व विस्तृत सुनवाई के पश्चात अपनी मूहर लगायी है, लेकिन इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई. ऐसे में मुंबई उच्च न्यायालय में वकीलों की जिस फौज ने मराठा आरक्षण की लडाई जीती थी, उन्हीं वकीलों को सर्वोच्च न्यायालय में कायम रखा गया है. साथ ही निजी हस्तक्षेप याचिकाकर्ताओं के वकील के तौर पर कपिल सिब्बल व अभिषेक मनु सिंघवी जैसे ख्यातनाम वकील भी पैरवी कर रहे है. जिसकी वजह से मराठा आरक्षण का पक्ष और भी अधिक मजबूत हुआ है. अशोक चव्हाण ने इन तमाम प्रयासों के बावजूद भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मराठा आरक्षण को स्थगित रखने के संदर्भ में दिये गये अंतरिम आदेश को अनपेक्षित व आश्चर्यकारक बताया है.

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