महाराष्ट्र

उन सज्ञान अनाथों को भी मिले छत का आसरा

18 वर्ष की आयु पूर्ण करने पर छोडना पडता है अनाथालय

* तर्पण फाउंडेशन ने अनाथों की समस्याओं पर उठायी आवाज
नाशिक/दि.27– महाराष्ट्र के सभी अनाथालयों में सरकारी नियमानुसार केवल 18 वर्ष की आयु तक ही अनाथों के भोजन निवास व शिक्षा की व्यवस्था की जाती है और 18 वर्ष की आयु पूर्ण होते ही ऐसे अनाथ बच्चों को अनाथालय छोडकर वहां से बाहर निकलना होता है. परंतु अनाथालय से बाहर निकलने के बाद वे कहां जाये और क्या करें, इसकी कोई व्यवस्था सरकार द्वारा नहीं की गई है. जिसकी वजह से 18 वर्ष की आयु पूर्ण होते ही अनाथालयों में रहने वाले बच्चे पूरी तरह से बेसहारा हो जाते है. इसमें से कई युवक-युवतियां गलत रास्तों पर पड जाते है और समाज की ओर से होने वाले शारीरिक व मानसिक अत्याचारों का शिकार होकर गलत रास्ते सहित व्यसनों की राह पर चल पडते है. ऐसे में बेहद जरुरी है कि, अनाथालय में रहते हुए 18 वर्ष की आयु पूर्ण करते हुए अनाथ बच्चों को छत का सहारा उपलब्ध कराया जाये. इस आशय की मांग तर्पण फाउंडेशन की मुख्य कार्यकारी अधिकारी सारिका पन्हालकर-महोत्रा द्वारा उठाई गई है.
तर्पण फाउंडेशन द्वारा किये गये सर्वेक्षण के मुताबिक महाराष्ट्र के अनुदानित व बिना अनुदानित अनाथालयों से प्रतिवर्ष औसत 2 हजार से अधिक युवक-युवतीयां 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने के चलते बाहर निकलते है. जिनका अनाथालयों से बाहर कोई सहारा या ठिकाना नहीं रहता. साथ ही अनाथालयों से निकलकर वे कहां जाते है, इस बात की भी कोई जानकारी कहीं दर्ज नहीं होती. ऐसे में अधिकांश सज्ञान अनाथ सालोंसाल से इस कुव्यवस्था का शिकार होते हुए अत्याचार एवं अपराधों के दुष्चक्र में फंस रहे है. ऐसे में 18 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद अनाथालयों से बाहर निकलने वाले अनाथ युवाओं हेतु काम करने वाले तर्पण फाउंडेशन ने विगत 4 वर्षों के दौरान अनाथालयों से बाहर निकलने वाले युवाओं का अध्ययन करने के साथ ही अपने पास तक पहुंचने वाले करीब 1200 अनाथों को दत्तक लेते हुए अपने निष्कर्ष निकाले है. जिसके मुताबिक 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने वाले अनाथ युवक युवतियों को उसी उम्र में शारीरिक व मानसिक स्तर पर कई अनाकलनीय समस्याओं व दिक्कतों का सामना करना पडता है और अनाथालय से बाहर निकलने के बाद उनके समक्ष आजीविका सहित भोजन व निवास का मसला उपस्थित हो जाता है. ऐसे समय भावनात्मक सहारा सुरक्षित निवास तथा उत्तम शैक्षणिक व व्यवसायिक प्रशिक्षण का अभाव रहने के चलते इन अनाथ बच्चों पर मुसीबतों का पहाड ही टूट पडता है. लेकिन इन तमाम बातों से समाज और सरकार विगत कई वर्षों से अज्ञान है. सारिका मोहत्रा के मुताबिक सरकार द्वारा अनाथालयों को अनुदान देने हेतु करोडों रुपयों का खर्च किया जाता है. परंतु अनाथालयों से बाहर निकलने वाले युवाओं विशेषकर युवतीयों की सुरक्षा की ओर बार-बार ध्यान दिलाये जाने के बावजूद भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा. जिसके चलते अनाथालयों से बाहर निकलने वाली कई लडकियां आगे चलकर विकृत मानसिकता वाले लोगों का शिकार होती है. यह सरकार सहित समूचे भारतीय समाज के लिए शर्म वाली बात है. जिस पर समय रहते उपाय खोजे जाने चाहिए.
* विगत 4 वर्षों के दौरान तर्पण फाउंडेशन ने 1200 अनाथ बच्चों को दत्तक लेते हुए उनकी शिक्षा, रोजगार व नौकरी के संदर्भ में काम किया है. जिसमें से कई बच्चे स्पर्धा परीक्षाओं के जरिए उच्च पदों पर भी पहुंचे है. परंतु इन बच्चों के लिए सरकार के साथ ही विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा पहल करते हुए ठोस उपायों पर अमल किये जाने की जरुरत है. क्योंकि कोई भी आधार नहीं रहने के चलते 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद अनाथालयों से बाहर कर दिये जाने वाले युवक-युवतीयों के गलत रास्ते पर जाने की संभावना अधिक रहती है. जिससे ऐसे युवाओं का समाज विघातक कृत्यों में सहभाग बढने के साथ ही कई सामाजिक समस्याएं भी पैदा होने की संभावना बन जाती है.
– सारिका पन्हालकर-महोत्रा,
मुख्य कार्यकारी अधिकारी,
तर्पण फाउंडेशन.
* तो ही सामान्य जीवन संभव
अनाथालयों से बाहर निकलने वाले युवक-युवतीयां आगे चलकर कहां जाते है, किन हालात में रहते है और आगे चलकर उनका क्या होता है, इसकी कोई जानकारी सरकार, प्रशासन व संबंधित अनाथालय के पास नहीं होती. ऐसे में बहुत जरुरी है कि, प्रत्येक जिले मेें ऐसे सज्ञान अनाथों के लिए भोजन व निवास की व्यवस्था के साथ ही सभी तरह की नौकरियों में उनके लिए कुछ हद तक आरक्षण दिया जाये. इसके साथ ही सरकार द्वारा ऐसे अनाथ बच्चों के लिए कुछ ठोस उपाय योजनाएं करते हुए कौशल्य विकास योजना में उनके लिए कुछ कामों की हिस्सेदारी आरक्षित की जानी चाहिए, ताकि ऐसे अनाथ बच्चे अपना उदर निर्वाह कर सके.

 

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