अनियमित हुआ बारिश के नक्षत्र का टाइम टेबल!
पिछले २५ वर्षों में भारी बदलाव प्रकृति चक्र के असंतुलन का परिणाम
प्रतिनिधि/ दि.१५
अमरावती- भारतीय खगोल शास्त्र शुध्द और शास्त्र शुध्द है इस अभ्यास के अनुसार पिछले कई वर्षों तक बारिश नक्षत्र के अनुसार होती थी परंतु पिछले २५ वर्षों में काफी बदलाव आया है. बारिश के नक्षत्र अनियमित हुए है. जंगल की कटाई, प्रदूषण, तापमान में वृध्दि और मोैसम में बदलाव इन कारणों के चलते प्रकृति की व्यवस्था नष्ट हुई है. कुल २७ नक्षत्र में से मृग, आद्र्रा, पुनर्वसू, उत्तरा, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा, हस्त यह बारिश के नक्षत्र माने जाते है. इसमें पहला नक्षत्र याने मृग. सूर्य का ८ जून को मृग नक्षत्र प्रवेश यही बारिश की शुरुआत होती है. पहले वादे की तरह इस नक्षत्र को बारिश आती थी. बारिश की बेसब्री से राह देखने वाले किसान को यह नक्षत्र काफी राहत देकर जाता था. हर नक्षत्र में बारिश का अलग रुप अनुभव करने को मिलता है. मृग नक्षत्र से पुष्य नक्षत्र तक होने वाली बारिश बहारदार रहती है. प्रकृति में इस दौरान बहार आती है. श्रृष्टि हरियाली से लद जाती है. खेती फसल से डोलने लगती है. अषाढ-श्रावण की रिमझिम बारिश के लिए आतुर रहने वाले मन को इस समय बारिश और धूप का खेल अनुभव करने को मिलता है. पुष्य नक्षत्र की बारिश बडी ही सुहानी होती है. इस दौरान घनघोर छटा के बीच मन लुभावन इंद्र धनुष्य के दर्शन होते है. मृग नक्षत्र से उत्तरा नक्षत्र तक जोरदार बरसने वाली बारिश नक्षत्र के अनुसार कम ज्यादा प्रमाण में अपनी उपस्थिति दर्शाती है. आगे वह हस्त नक्षत्र तक बारिश होती है. हस्त नक्षत्र में बारिश होगी या नहीं होगी, ऐसा निश्चित नहीं रहता. बॉ्नस नक्षत्र की बारिश और खासियत मृग यह वचन निभाने वाला नक्षत्र है. इस नक्षत्र में निश्चित ही तय तारीख से बारिश आती. स्वाती नक्षत्र में थोडी बारिश तो भी होना चाहिए, ऐसा कहते है. चातक में बारिश की खिच रहती है और सागरक की सीप में स्वाति नक्षत्र की बुंद पडती है जिसके कारण सीप में मोती निर्माण होते है, ऐसा कहा जाता है. इस नक्षत्र की फुंंआर लाभदायक मानी जाती है. विशाखा नक्षत्र की बारिश कुछ हद तक हानीकारक मानी जाती है.