मेलघाट की सुंदर बाघिन के दर्शन की अकोला के पर्यटकों को सुखद अनुभूति
फोटोग्राफर जोग ने कैमरे में किया कैद

अकोला/दि.16-मेलघाट में बाघ के दर्शन नहीं होने की गलतफहमी अब दूर हो रही है. मेलघाट के शहानुर सफारी में अकोला के पर्यटकों को बाघिन ने लगभग डेढ घंटे तक दर्शन दिए. पर्यटकों ने बाघिन की मुक्त संचार को अपने कैमरा में कैद किया. मेलघाट की सुडौल मादा बाघ को देखकर वन्यजीव प्रेमियों सहित पर्यटक हर्षित हुए.
अकोट वन्यजीव विभाग के धारगढ, गुल्लरघाट, अमोना, केलपाणी इन गांवों का पुनर्वसन हुआ. जिसके कारण अब मेलघाट बाघ परियोजना के वन्यजीव खुली सांस ले रहे है. जंगल में मानवों का हस्तक्षेप कम हुआ और कृषि जमीन पर घासयुक्त मैदान तैयार हुआ. जिससे तृणभक्षी प्राणी बढ गए. वे सर्वदूर फैले है. पौष्टिक घास से चितल, नीलगाय, सांबर की संख्या तेजी से बढी. 14 अप्रैल को अकोला के प्रकृति फोटोग्राफर मिलींद जोग, वनमित्र राजेश बालापुरे और वन्यजीवप्रेमी आदित्य दामले ने शहानुर सफारी की. सफारी में पर्यटक मार्गदर्शक राठोड ने गुल्लरघाट के तलाव परिसर में बाघिन के दर्शन होने की बात कही. चिलचिलाती धूप में गुल्लरघाट के तलाव का जलस्तर कम होता है और उस क्षेत्र में हरी घास बढती है. इस क्षेत्र में घास खाने के लिए चितल, सांबर का मुक्त संचार बढताा है. गर्मी से त्रस्त बाघ भी तलाव की जलवनस्पति का आश्रय लेता है. एक बाघिन ने इस परिसर में अपना डेरा डाला है. भरपूर शिकार, छांव और पानी मिलने से बाघिन ने अपना साम्राज्य तैयार किया.
सोमवार 14 अप्रैल की दोपहर 4.30 बजे के करीब पर्यटक दो जिप्सी से गुल्लरघाट तलाव पहुंचे. यहां के कुछ ही दूरी पर तलाव के बीच जलवनस्पति ज्यादा रहने वाले स्थान पर एक बाघिन आराम करती हुई पर्यटकों को दूरबीन से नजर आयी. फोटोग्राफर जोग ने यह दुर्लभ दृश्य अपने कैमरे में कैद किया. लगभग डेढ घंटे तक यह तालाब की रानी अपनी विविध भावमुद्रा में पर्यटकों को दर्शन दे रही थी. डेढ घंटे बाद बाघिन घने घास के परिसर में निकल गई. मेलघाट में बाघ के दर्शन होने से पर्यटकों को सुखद अनुभूति हुई. 28 वर्षों के प्रयासों के बाद मेलघाट में डेढ घंटे तक बाघिन के दर्शन होने की बात वन्यजीव प्रेमी आदित्य दामले ने कही.