महाराष्ट्र

कोंकण में अनोखे तरीके गणेशोत्सव मनाने की परंपरा

अनंत चतुर्दशी के दिन पंचपकवान का लगाया जाता है भोग

मुंबई/दि.28 कोंकणी मनुष्य मानवतावादी, धर्मनिष्ठ एवं आस्थावान है. इनमें निचले कोंकण (सिंधुदुर्ग) में धार्मिकता अधिक है. वह कई त्योहारों और मंदिर कार्यक्रमों में उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं. साथ ही, धार्मिक त्योहारों को बड़े उत्साह और सामाजिक आधार पर मनाया जाता है. इसका लाभ उसके शरीर के साथ-साथ उसकी आने वाली पीढ़ियों या समाज को भी मिलता है. धार्मिक त्योहारों में गणेशोत्सव एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है. यह बड़ा त्योहार कोंकणी समाज को पूरे वर्ष के लिए ऊर्जा और आध्यात्मिक शक्ति देता है. गणेशोत्सव को लेकर कई दिन पहलें ही तैयारियां की जाती है.
कोंकणी लोगों द्वारा यह गणेशोत्सव कैसे मनाया जाता है, इसके बारे में यह एक संक्षिप्त पारंपरिक जानकारी देते हुए वरिष्ठ पत्रकार नारायण सावंत पोयरे, गणेश चव्हाण व श्रावण मालवण ने बताया कि, सभी गणेश मूर्तिकार (चित्रकार) आषाढ़ महीने में आषाढ़ी एकादशी के दिन से मिट्टी की मूर्तियाँ बनाना का काम शुरु करते है. आषाढ़ी एकादशी के दिन से ही परिवार में इस बात पर चर्चा शुरू हो जाती है कि हमारे भगवान गणेश कहां और कैसे हों. और श्रावण मास के पांचवें दिन यानी नाग पंचमी को प्रत्येक परिवार श्री गणपति को विराजित करने के लिए पवित्र आसन तैयार करते है. दीवार पर गणेश जी की तस्वीर लगाना, साजसजावट जैसे काम आठ दिन पहले ही कर लिए जाते हैं. गणराया के आगमन के दिन सुबह विधिवत पूजा के बाद ग्यारह बजे तक भगवान गणेश की पूजा की जाती है. कुछ स्थानों पर गौरी पूजन के पहले दिन गौरी, गणपति के साथ आती हैं और गणपति के साथ ही चली जाती हैं, ऐसा भी एक रिवाज है. मालवण तहसील के श्रावण चव्हाणवाड़ी में चव्हाण परिवार के गवर-गोरी (भगवान गणेश की मां) गणपति गजानन के साथ आते हैं. और जितने दिन गणपति रहते हैं उतने दिन गौरी माता भी रहती हैं. और फिर महिला वर्ग द्वारा उनकी विधिपूर्वक पूजा की जाती है. जो स्वाद और संतुष्टि साल भर के भोजन में नहीं मिलती वह इस दिन के शानदार दोपहर के भोजन से आती है. उसके बाद शाम को फिर से पूजा और आरती की जाती है. और सभी भक्तगण गणपति गजानन के सामने बैठकर चूल्हे पर पकाया हुआ भोजन ग्रहण करते है. और खुुशी व्यक्त कर अपने परिवार की ताकत समाज को दिखाते है. जीवनभर यादगार रहने वाले यह उत्सव कोंकणी लोगों के लिए खास होता है. ग्यारह दिनों तक छोटे-बड़े सभी लोग एक दूसरे के घर जाकर भजन करते है. गोंदापुर वाडी के पोयरे, देवगड के संय सावंत, मोहन सावंत और वरिष्ठ पत्रकार नारायण सावंत के घर गणेशजी स्थापना आकर्षक झांकी के साथ की गई.
ग्यारहवे वें दिन यानी अनंत चतुर्दशी को गणराया को वडा, चावल और सांभर ऐसे पंचपकवान का भोग लगाया जाता है और शाम को आरती कर विसर्जन शोभायात्रा निकाली जाती है. नदी में गणेशमूर्ति का विसर्जन करते समय सभी के आखें नम होती है. विसर्जन के बाद भक्तगण प्रसाद ग्रहण करते है.

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