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शिंदे के बिना भाजपा के साथ युती करने तैयार थे उध्दव ठाकरे

पार्टी में बगावत होने के बाद फडणवीस से की थी फोन पर बात

* अनिल परब के मोबाईल से लगायी गई थी कॉल
* दीपक केसरकर ने किया सनसनीखेज दावा
मुंबई/दि.22– इस समय युवा सेना प्रमुख और राज्य के पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे राज्य में शिव संवाद यात्रा के तहत दौरे पर है. जिन्होंने गत रोज भिवंडी में शिवसैनिकों की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री और शिवसेना के पार्टी प्रमुख उध्दव ठाकरे बीमार थे, तो इस मौके का फायदा उठाते हुए शिवसेना में कुछ लोगों ने सत्ता हासिल करने के लिए बगावत की. इस पर पलटवार करते हुए शिंदे गुट के प्रवक्ता व विधायक दीपक केसरकर ने कहा कि, आदित्य ठाकरे को शायद पूरे तथ्य पता नहीं है, या फिर वे जानबूझकर शिवसैनिकोें में संभ्रम फैला रहे है. केसरकर के मुताबिक आज हमें भाजपा के साथ गठबंधन करने को लेकर आरोपों के कटघरे में खडा किया जा रहा है. लेकिन ऐसा करनेवाले लोगों ने यह भी बताना चाहिए कि, जब एकनाथ शिंदे ने पार्टी से अलग होने का फैसला लिया था, तब खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री व शिवसेना के पार्टी प्रमुख उध्दव ठाकरे ने अनिल परब के मोबाईल से भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस को फोन क्यों लगाया था? और यह क्यो कहा था कि, वे एकनाथ शिंदे को छोडकर भाजपा के साथ हाथ मिलाने के लिए तैयार है और भाजपा को चाहिए कि, एक बार फिर शिवसेना के साथ युती करते हुए राज्य में सरकार बनाई जाये.
अपने इस दावे की पुष्टि करते हुए दीपक केसरकर ने यह भी कहा कि, उध्दव ठाकरे कभी भी अपने मोबाईल फोन से किसी से बात नहीं करते और उन्होंने भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस से बात करने के लिए भी अनिल परब के मोबाईल का प्रयोग किया था. ऐसे में अनिल परब के मोबाईल का सीडीआर खंगाला जाये, ताकि पूरा सच सबके सामने आये.
आदित्य ठाकरे द्वारा लगाये गये आरोपों पर जोरदार प्रत्युत्तर देते हुए दीपक केसरकर ने कहा कि, शिंदे गुट में शामिल सभी विधायक और शिवसैनिक आज भी ठाकरे परिवार का सम्मान करते है. क्योंकि हम सभी शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे के सच्चे शिवसैनिक है. हमारी आपत्ति शुरू से ही शिवसेना द्वारा भाजपा का साथ छोडकर कांग्रेस व राकांपा के साथ गठबंधन करने को लेकर थी. जिसके बारे में पार्टी और सरकार में दूसरे नंबर का महत्वपूर्ण स्थान रखनेवाले एकनाथ शिंदे ने पार्टी प्रमुख उध्दव ठाकरे से उस समय कई बार बात भी की थी, जब उध्दव ठाकरे बीमारी से ठीक हो गये थे. ऐसे में यह कहना भी पूरी तरह से गलत है कि, उध्दव ठाकरे की बीमारी के मौके का फायदा उठाते हुए बगावत की गई.

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