पुणे/ दि. 7– राज्य में जैसे नारायण गांव का टमाटर, अली बाग का सफेद प्याज, वसई का केला प्रसिध्द है. वैसे ही करमाला का लाल रतालू भी प्रसिध्द है. करमाला तहसील में पिछले चार दशको से रतालू की खेती की जा रही है. आषाढी एकादशी पर करमाल के रतालू की सार्वधिक मांग की जाती हैै. राज्यभर के बाजारों में करमाला का रतालू प्रसिध्द है. आषाढी यात्रा के समय पर रतालू की फसल आना शुरू हो जाती है.
करमाला तहसील के मोरवड, मांजरगांव, राजुरी, रितेवाडी, उडंरगांव, सोनगांव, उबंरड इन गांवों में पिछले 40 सालों से रतालू की खेती की जा रही है. इसमें प्रमुख रूप से मोरवड गांव के माली समाज के किसानों द्बारा पारंपरिक पध्दति से रतालू की बुआई की जाती थी. किंतु अब परिसर के गांव में अन्य किसानों द्बारा भी रतालू की बुआई की जा रही है. उडंरगांव के रतालू उत्पादक किसान सिध्दार्थ कांबले ने कहा कि रतालू की फसल से बारिश के मुहाने पर अच्छी आमदनी हो जाती है.
बुआई से लेकर बाजार में पहुंचने तक 800 रूपये का खर्च प्रति कट्टा आता है. बाजार मेें 30 से 32 रूपये किलो के दाम मिल जाते है. प्रत्येक कट्टे पर 400 से 500 रूपये बच जाते है. किंतु इसके लिए बडी संख्या में मनुष्य बल की आवश्यकता पडती है. अब खेतों में काम करने के लिए मजदूर भी नहीं मिल रहे है और न ही रतालू भरने के लिए कट्टे उपलब्ध है. 6 महिनों के मेहनत के पश्चात एक कट्टे के पीछे 400 से 500 रूपये मिल जाते है, ऐसा रतालू उत्पादक किसान कांबले ने कहा.