डॉ. अनिल बोंडे को क्यों मिला राज्यसभा का टिकट
न पंकजा मुंडे, न विनोद तावड़े, टिकट कैसे आयी अमरावती के हिस्से में
मुंबई/दि.30- महाराष्ट्र की सियासत में इन दिनों संभाजीराजे छत्रपति को किसी भी दल द्वारा राज्यसभा के लिए टिकट न देने के चलते बवाल मचा हुआ है, क्योंकि शिवसेना और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने उन्हें टिकट नहीं दिया है. हालांकि बीजेपी ने अमरावती के डॉ. अनिल बोंडे को राज्यसभा का टिकट दिया है. इसके साथ ही उम्मीदवारी की आस लगाए विनोद तावड़े और पंकजा मुंडे को फिर से नाउम्मीद होना पड़ा है.
बता दें कि, अमरावती जिले से बीजेपी के बड़े नेता रहनेवाले डॉ. अनिल बोंडेे ने अमरावती दंगों के दौरान हिंदुत्व का मुद्दा उठाया था तथा उनके केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ भी अच्छे संबंध हैं. उल्लेखनीय है कि, बीजेपी के कोटे से राज्यसभा के लिए दो सीटों में से एक सीट पहले से ही केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के लिए फिक्स थी. ऐसे हालात में दूसरी जगह है किसे दी जाएगी, इस पर अटकलों का दौर चल रहा था. इस फेहरिस्त में राज्य के पुर्व मंत्री पंकजा मुंडे व विनोद तावड़े सहित विजया रहाटकर जैसे नेताओं के नाम चर्चा में शामिल थे. लेकिन राज्यसभा के लिए यह उम्मीदवारी अमरावती के भाजपा नेता डॉ. अनिल बोंडे को दी गई है. ऐसे में अब हर कोई इस सवाल का जवाब जानना चाह रहा है कि, आखिर डॉ. अनिल बोंडे को बीजेपी ने राज्यसभा का टिकट क्यो दिया?
इस सवाल के जवाब में राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक पांच प्रमुख वजहे है. जिसकी वजह से पार्टी ने डॉ. अनिल बोंडे पर दांव खेला है. सबसे प्रमुख वजह यह है कि, डॉ. अनिल बोंडे महाराष्ट्र में बीजेपी की तरफ से एक बड़ा ओबीसी चेहरा हैं. राज्य में ओबीसी आरक्षण के बगैर स्थानीय निकाय चुनावों का आयोजन करवाया जाना है. ऐसे में अनिल बोंडे को राज्यसभा उम्मीदवारी देकर बीजेपी द्वारा एक तरह से ओबीसी वोट बैंक को साधने की कोशिश की जा रही है. बीजेपी को उम्मीद है कि आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में भी ओबीसी समाज को बेहतर मौके दिए जा सकते हैं. बोंडे को टिकट देकर बीजेपी खासतौर पर ओबीसी समाज में एक अलग स्थान बनाने की कोशिश में जुटी हुई है. इसके पहले भी विदर्भ में हुए कई जिला परिषद चुनावों के दौरान आरक्षण न होते हुए बीजेपी ने सावधानीपूर्वक सभी समाज को प्रतिनिधित्व दिया था. बीजेपी को उम्मीद है कि आगामी चुनाव में यह कदम कुछ हद तक फायदा दिला सकता है.
इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि डॉ. अनिल बोंडे द्वारा साल 2021 में अमरावती के दंगों में ली गयी हिंदुत्व की भूमिका भी उन्हें राज्यसभा का टिकट दिलाने के पीछे एक बड़ी वजह है. त्रिपुरा में हुई कथित हिंसा के बाद महाराष्ट्र के अमरावती में मोर्चा निकाला गया था, जिसमें हिंसा होने की बात सामने आई थी. जिसके खिलाफ बीजेपी की ओर से बंद का आवाहन किया था. इस दौरान बीजेपी और आरएसएस पर हिंसा करने का आरोप लगा था. तब अनिल बोंडे के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया गया था और उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी. उनके साथ कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था. उस दौरान कांग्रेस और एनसीपी नेताओं ने बोंडे पर जमकर आरोप लगाए थे. बोंडे ने भी उनपर जुबानी हमला किया था.
सबसे प्रमुख बात यह भी है कि, डॉ. अनिल बोंडे के केेंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से काफी घनिष्ठ संबंध है. डॉ. अनिल बोंडे ने साल 1998 में शिवसेना में प्रवेश किया था, जिसके बाद उन्होंने साल 2004 में शिवसेना के टिकट पर चुनाव लड़ा था. हालांकि इस चुनाव उन्हें हार का स्वाद चखना पड़ा था. साल 2009 में उन्हें शिवसेना ने टिकट नहीं दिया, जिसकी वजह से उन्होंने पार्टी छोड़कर खुद की संग्राम पार्टी बनाई और शिवसेना-बीजेपी की युति वाले उम्मीदवार को चुनाव में पराजित किया. साल 2014 के चुनाव के समय नितिन गडकरी की उपस्थिति में उन्होंने बीजेपी में प्रवेश किया और साल 2014 में मोर्शी से चुनाव जीता था.. साल 2019 के आखिरी समय में चार महीनों के लिए अनिल बोंडे को कृषि मंत्री भी बनाया गया था. हालांकि 2019 के चुनावों में उन्हें देवेंद्र भूयार से करारी शिकस्त मिली थी. बावजूद इसके वो पार्टी में काफी सक्रिय रहे. इसका भी उन्हें लाभ मिला है.
मुख्य धारा की राजनीति में सक्रिय रहने के साथ-साथ डॉ. अनिल बोंडे ने किसानों की समस्याओं को भी बडे प्रभावी तरीके से उठाया और देखते ही देखते वे राज्य में किसानों की आवाज बन गये. डॉ. बोंडे को खेती-किसानी और उससे जुड़ी समस्याओं की अच्छी समझ है. जिसके चलते बीजेपी ने किसानों का प्रतिनिधि चेहरा समझ कर उन्हें यह मौका दिया है. कृषि कानूनों के रद्द होने के बाद बीजेपी हर राज्य में किसान मोर्चा को मजबूत बनाने की कोशिश कर रही है, जिसके तहत साल 2019 में बीजेपी ने अनिल बोंडे को राष्ट्रीय किसान मोर्चा का सचिव बनाया था और उन्हें गुजरात व मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव प्रभारी की जवाबदारी भी दी गई थी.
डॉ. बोंडे को राज्यसभा का प्रत्याशी बनाये जाने के पीछे एक वजह यह भी हो सकती है कि, आज वे अमरावती में भाजपा का सबसे बडा चेहरा है. अमरावती शहर की राजनीति में फिलहाल कांग्रेस की यशोमति ठाकुर, प्रहार संघटन के बच्चू कडू, कांग्रेस-एनसीपी के समर्थन से चुनी गई निर्दलीय सांसद नवनीत राणा, शिवसेना के आनंदराव अडसुल जैसे बड़े नेता शामिल हैं. ऐसे हालात में विदर्भ का एक बड़ा शहर होने के नाते डॉ. अनिल बोंडे के जरिये जरिये बीजेपी खुद को मजबूत करने की कोशिश में जुटी है. हालांकि फिलहाल राणा दंपति बीजेपी समर्थक भूमिका में हैं. ऐसे में यह भी कयास लगाये जा रहे है कि, भाजपा ने डॉ. बोंडे को राज्यसभा भेजकर एक तरह से नवनीत राणा के लिए रास्ता साफ कर दिया है.