हलफनामे के साथ भूमिका स्पष्ट करने कहा
मुंबई/दि.1 – मुंबई महानगरपालिका के साथ ही राज्य की 24 महानगरपालिकाओं व जिला परिषदों सहित पंचायत समितियों के चुनाव अब तक क्यों नहीं लिए गए. इस संदर्भ में 2 सप्ताह के भीतर प्रतिज्ञा पत्र के जरिए अपनी भूमिका स्पष्ट करने का आदेश मुंबई उच्च न्यायालय ने राज्य निर्वाचन आयोग को दिया है.
संविधान के मुताबिक चुनाव करवाना अनिवार्य रहने के बावजूद विगत 2 वर्षों से स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव नहीं हुए है. जिसके चलते मुंबई निवासी रोहण पवार ने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की है. जिसमेें उन्होंने कहा है कि, प्रत्येक 5 वर्ष में चुनाव करवाने को लेकर संविधान द्बारा तय किए गए नियम का राज्य निर्वाचन आयोग ने उल्लंघन किया है. साथ ही आयोग का यह कृत्य देशद्रोह के समकक्ष है. अत: इस मामले में फौजदारी अपराध दर्ज किया जाना चाहिए. इस याचिका पर न्या. अजय गडकरी व न्या. प्रकाश नाइक की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई. इसके समय आयोग की ओर से एड. सचिंद्र शेट्ये तथा याचिकाकर्ता की ओर से एड. प्रकाश आंबेडकर ने युक्तिवाद किया. इस समय एड. आंबेडकर ने कहा कि, निर्वाचन आयोग के अधिकारों का कोई भी हनन नहीं किया जा सकता और निर्वाचन प्रक्रिया को चलाने संदर्भ में आयोग का अधिकार अबाधित है. परंतु इसके बावजूद भी निर्वाचन आयोग द्बारा चुनाव नहीं कराए जा रहे है. जिसके चलते विगत 2 वर्षों से स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव अधर में अटके पडे है और संबंधित क्षेत्रों का विकास प्रभावित हुआ है. इस समय सभी स्वायत्त संस्थाओं में कामकाज का पूरा जिम्मा प्रशासन के पास है और सर्वसामान्य व्यक्ति सीधे प्रशासक तक नहीं पहुच सकता. इस समय राजनीतिक उठापठक की वजह से चुनाव अटके हुए है और राज्य निर्वाचन आयोग ने प्रत्येक 5 वर्ष में चुनाव लेने हेतु संविधान द्बारा तय किए गए नियम का जानबुझकर उल्लंघन किया है. अत: संवेधानिक कर्तव्यों की अनदेखी करने वाले निर्वाचन आयोग के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करने संबंधित आदेश अदालत द्बारा जारी किया जाना चाहिए.
वहीं इस मामले में राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से बताया गया कि, निर्वाचन प्रक्रिया पूर्ण करने हेतु कम से कम 6 माह का समय लगता है. मुंबई मनपा के सभागृह का कार्यकाल खत्म होने से पहले यह प्रक्रिया शुरु होने वाली थी. लेकिन उससे पहले ही महाविकास आघाडी ने प्रभाग संख्या को 227 से बढाकर 236 करने का निर्णय लिया और आयोग ने इसी हिसाब से अपनी प्रक्रिया भी शुरु की. उस समय सर्वोच्च न्यायालय ने भी निर्वाचन कार्यक्रम शुरु करने की अनुमति दी थी. लेकिन राज्य में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद नई सरकार ने प्रभाग संख्या को पूर्ववत करने का निर्णय लिया. जिसकी वजह से पिछली निर्वाचन प्रक्रिया को रोक दिया गया और राजनीतिक उठापठक के चलते स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव लेने में काफी तरह की दिक्कतें पेश आयी. ऐसे में अब तक स्थानीय निकायों के चुनाव नहीं लिए जा सके है और अगले आदेश मिलने की प्रतिक्षा की जा रही है.