अमरावतीमहाराष्ट्र

बाघ व तेंदूओं सहित वन्यप्राणी भी भटक रहे पानी की तलाश में

भीषण गर्मी वाले मौसम दौरान व्याघ्र प्रकल्प के जलस्त्रोत सूखे

अमरावती/दि.06– अमरावती जिले सहित समूचे विदर्भ क्षेत्र में मई माह के पहले सप्ताह में ही तेज धूप व भीषण गर्मी असहनीय साबित होने लगे है. जिससे इंसानों के साथ-साथ जंगलों में रहने वाले वन्य प्राणियों के भी बेहद बुरे हाल बेहाल हो रहे है. साथ ही व्याघ्र प्रकल्प एंव जंगलों में बाघों व तेंदूओं सहित सभी वन्य प्राणियों को अपनी प्यास बुझाने के लिए इधर से उधर भटकना पड रहा है.

विशेष उल्लेखनीय है कि, विदर्भ में मौसम अच्छा खासा गर्म रहने को ध्यान में रखते हुए दिल्ली स्थित राष्ट्रीय व्याघ्र प्राधिकरण ने इस बार जनवरी माह में ही वन्य प्राणियों की तृष्णा तृप्ति हेतु सुक्ष्म नियोजन करने के निर्देश जारी किये थे. ताकि गर्मी के मौसम दौरान जंगलों एवं व्याघ्र प्रकल्पों में वन्यप्राणियों को पानी के लिए इधर से उधर भटकना ना पडे. वहीं इस दौरान विदर्भ में अप्रैल माह के दौरान हुई बेमौसम बारिश के चलते प्राकृतिक व कृत्रिम जलस्त्रोतों में भरपूर पानी उपलब्ध था. जिसकी वजह से व्याघ्र प्रकल्प सहित प्रादेशिक वनविभागों द्वारा जंगलों में पानी की जरुरत को लेकर कोई ध्यान नहीं दिया गया. वहीं अब जैसे ही मई माह के प्रारंभ से सूरज ने आग उगलनी शुरु की और तेज धूप व भीषण गर्मी पडनी शुरु हुई, वैसे ही जंगलों में सभी प्राकृतिक व कृत्रिम जलस्त्रोत सूखने शुरु हो गये और कई स्थानों पर तो ऐसे जलस्त्रोतों में तो पानी पूरी तरह से सूख गया है. जिसकी वजह से जंगलों में रहने वाले वन्य प्राणियों को अपनी प्यास बुझाने के लिए बूंद-बूंद पानी की तलाश में इधर से उधर भटकना पड रहा है.

* ट्रैंकरों से जलापूर्ति में भी काफी गडबडी
व्याघ्र प्रकल्प के नैसर्गिक व कृत्रिम जलस्त्रोतों में यदि पानी को लेकर कोई समस्या पैदा होती है, तो समय पडने पर ट्रैंकरों से जलापूर्ति करने के निर्देश वन्यजीव विभाग के वरिष्ठाधिकारियों द्वारा दिये गये है. परंतु व्याघ्र प्रकल्प अथवा जंगल क्षेत्र के जलस्त्रोतों में वन्यप्राणियों की प्यास बुझाने हेतु ट्रैंकरों से की जाने वाली जलापूर्ति की यदि सघन जांच की जाये, तो काफी बडा घोटाला व गडबडियां भी सामने आ सकते है, ऐसी जानकारी स्थानीय वनविभाग के एक अधिकारी ने अपना नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर दी. वहीं दूसरी ओर इस संदर्भ में राज्य के वन्यजीव विभाग के प्रधान मुख्य वनसंरक्षक महिप गुप्ता से जानकारी हेतु संपर्क करने का प्रयास किये जाने पर उन्होंने खुद को एक बैठक में व्यस्त बताते हुए बातचीत करना टाल दिया.

* मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प में लिटमस पेपर नहीं
किसी भी जलस्त्रोत में कहीं किसी वन्यजीव तस्कर द्वारा वन्यजीवों का शिकार करने हेतु जहर तो नहीं मिलाया गया है, जिसकी जांच करने के लिए वनकर्मचारियों द्वारा पानी की लिटमस पेपर टेस्ट करना अनिवार्य किया गया है. परंतु मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प अंतर्गत सिपना, गुगामल, अकोट व मेलघाट इन चार वन्यजीव विभागों के कर्मचारियों को जलस्त्रोतों में रहने वाले पानी की जांच हेतु लिटमस पेपर ही नहीं मिलता, ऐसी जानकारी भी सामने आयी है. ऐसे में यदि किसी जलस्त्रोत के पानी में वन्यजीव तस्करों द्वारा विष प्रयोग किया जाता है और इसकी वजह से किसी बाघ की मौत होती है, तो इसकी जिम्मेदारी किस पर रहेगी. यह भी अपने आपमें एक बडा सवाल है. इसके साथ ही यह जानकारी भी सामने आयी है कि, लिटमस पेपर के साथ-साथ वन कर्मचारियों के पास पोशाख और स्वसंरक्षण हेतु हथियार भी नहीं है.

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