महाराष्ट्र

2030 तक विश्व के स्मृति भ्रंश का रुप गंभीर

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से भय

पुणे/दि.11 – स्मृति भ्रंश (डिमेन्शिया) के रुप में पहचाने जाने वाली बीमारी के लिए उचित नियोजन निर्माण करने बाबत अधिकांश देश गंभीर नहीं है. विश्व के सिर्फ 62 देशों ने इन मरीजों की जानकारी का संकलन किये जाने के साथ ही इनमें से 56 प्रतिशत देश उच्च आय गट के तो 42 प्रतिशत देश अल्प और मध्यम आय गट के हैं.
2030 तक विश्व के स्मृति भ्रंश मरीजों की संख्या 78 दशलक्ष तक पहुंचने की संभावना है. विश्व स्वास्थ्य संगठना व्दारा तैयार की गई रिपोर्ट से यह बात सामने आयी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठना के डिमेन्शिया विषयक 2025 तक कृति लेखाजोखा के हिस्से के रुप में इस बीमारी के विश्व भार बाबत (ग्लोबल बर्डन ऑफ डिमेन्शिया) जानकारी का संकलन किया जा रहा है.
विश्व भार की दृष्टि से मृत्यु के सातवें क्रमांक के तो अपंगत्व या परावलंबित्व होने का सबसे प्रमुख कारण डिमेन्शिया है.इन मरीजों के साथ ही उनके परिवार व समाज पर भी इस बीमारी का सामाजिक, आर्थिक व मानसिक असर होने लगता है. प्रत्येक मरीज में डिमेन्शिया यह बीमारी अलग पद्धति का असर दिखाती है. तीसरे चरण के बाद याददाश्त का प्रमाण गंभीर होत है. वहीं पूर्ण परावलंबित्व भी आता है. विश्व स्वास्थ्य संगठना का कहना है कि शीघ्र ही निदान व उचित औषधोपचार का कुछ प्रमाण में इस बीमारी में बढ़ोत्तरी की गति रोकने में उपयोग होता है.

लक्षण…

प्राथमिक चरण पर कुछ पैमाने पर विस्मरण, समयानुसार आंकलन न होना या हमेशा के परिचय के स्थान पर भी गड़बड़ाने के लक्षण दिखाई देते हैं. दूसरे चरण में नाम, व्यक्ति को भूलने, संभ्रम, संवाद साधने के रुकावटे दिखाई देती है. तीसरे और गंभीर चरण के डिमेन्शिया मरीजों को दैनंदिन बात करने में असमर्थ होना.

आज की स्थिति में…

स्मृति भ्रंश यह प्रमुख रुप से वयोवृद्ध गट के नागरिकों में दिखाई देता है. सद्य स्थिति में विश्व में 55 दशलक्ष स्मृति भ्रंश के मरीज है. याददाश्त (अल्झायमर) यह डिमेन्शिया का एक प्रमुख लक्षण होकर उससे ग्रसित करीबन 60 से 70 मरीजों में विस्मरण पाया गया.

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