कृष्णा नदी के तट पर काकरवाल गांव निवासी के यज्ञ नारायण भट्ट
वैष्णवाचार्य प. पू. गो. 108 यशोवर्धनराव ने बताया

* गोवर्धननाथ हवेली सत्संग मंडल की ओर से श्रीमद वल्लभाचार्य महाप्रभु का 548वां प्रागट्य महोत्सव
अमरावती/दि.22- श्रीवल्लभ के प्रतापी पूर्वज आंध्रप्रदेश में व्योमस्तंभ पर्वत के समीप कृष्णा नदी के दक्षिण तट पर काकरवाड नामक गांव में यज्ञनारायण भट्ट रहते थे, जिसमें अधिकांश ब्राम्हण थे. ये शुद्ध वैष्णव, वेल्लनाडू (तैलन्द्) ब्राम्हण, कृष्णयजुवेदी, बैत्तरीय शाखाध्यायी और भारद्वाज गोत्र के थे. कका पहले मूल पुरुष है, को बातें पू.पा.गो. 108 भरतकुमार ईमहाराज (पुणे-चेन्नई) के लालजी द्वारा युवा वैष्णवाचार्य प. पू. गो. 108 ही यशोवर्धनराव (सिद्धांतवावा) महोदयश्री ने कही.
स्थानीय रागली प्लॉट स्थित गोवर्धननाथ हवेली में सोमवार को प.पू. गो 108 पुरुषोतमलाल महाराज के शुभ आशीर्वाद से गोवर्धननाथ हवेली सासंग मंडल द्वारा अखंड भूमंडलाचार्यवयं जगदगुरु श्रीमद वल्लभाचार्य महाप्रभु का 548वां प्रागट्य महोत्सव आरंभ हुआ. इस अवसर पर शहर में पहली बार पधारे पू.पा.गो. 108 भरतकुमार महाराज के सालजी युवा वैष्णवाचार्य प. पू. 108 यशोवर्धनराय (सिद्धांतबाबा) के सानिध्य में चतुर्दिवसीय अलौकिक कार्यक्रम का पहला दिन महोदयश्री के पचनामृत से पूर्ण हुआ.
पू.पा.गो. 108 भरतकुमार महाराज के लालजी युवा वैष्णवाचार्य प. पू. गो. 108 यशोवर्धनराय ने बताया कि गतनारायण भट्ट श्रीवल्लभ से पांचवी पीढ़ी पर थे. कई वर्षों तक ब्रम्हचर्य व्रत के पश्चात उन्होंने देवपुर के सुधर्मा की पुत्री नर्मठ से विवाह किया. ये एक विरक्त से अत्यंत प्रभावित हुए थे. उससे दीक्षा लेकर वे प्रतिवर्ष सोमयज्ञ करने लगे. उन्होंने अपने जीवन में बत्तीस सोमयज्ञ किये, बज्ञनारायण भट्ट साक्षात वेद के अवतार थे कुछ अज्ञानियों ने उनकी परीक्षा लेने के लिए उनसे पाडा के मुख से वेदपाठ करवाने को कहा. उन्होंने पाहा को आदेश दिया और देखते ही देखते पाडा धाराप्रवाह सस्वर वेदपाठ करने लगा. यज्ञनारायण भट्ट अपने अंतिम सोमयज्ञ (32वें) की पूणाहुति कर रहे थे. सारा वातावरण सरवर वेदध्वनि से गूंज रहा था. उसी समय यज्ञकुण्ड में से अनन्ताग्नि का प्रकाश हुआ, जिसने सबको अचंभित कर दिया. भगवान कृष्ण ने उसमें से आविर्भूत होकर यज्ञनारायण भट्ट को कहा कि डामें तुम्हारी निष्काम भक्ति से प्रसन्न हुआ है आपके वश द्वारा सोमयज्ञ पूर्ण होने पर में स्वयं आपके वश में, धर्म की रक्षा के लिए पुत्र रूप में प्रकटूंगा. ह इतना कह कर सब के देखते ही देखते भगवान अनाध्यांन हो गये. इसी वज्ञ कुण्ड में से यज्ञनारायण भट्ट को एक सुंदर भगवत्स्यरूप प्राप्त हुआ. यह स्वरुप आज सप्तम पोठ, कामवन (वज) में श्रीमहाप्रभु के सप्तम निधि श्रीमद मोहन के रुप में विराजमान है. इन सभी प्रसंगों का वर्णन करने के साथ ही महोदयश्री ने संवत 1535 में चंपारण्य में श्रीवल्लभाचार्य का प्रागट्य किस प्रकार हुआ, इसका भी अलौकिक रुप से वर्णन किया. साथ ही उन्होंने पृथ्वी की तीन बार की जाने वाली परिक्रमा का महात्म बताते हुए देवी जीव के उद्धार के लिए यह किस प्रकार लाभकारी है, इसकी जानकारी दी. मंगलवार, 22 अप्रैल को दोपहर 4.30 से शाम 7 बजे तक महाप्रभु के अनन्य सेवक राणाव्याम एवं अच्युतदास सारस्वत ब्राम्हण के जीवन चरित्र पर आधारित नाटिका प्रस्तुत होगी जिसमें अच्युतदास की वार्ता में महाप्रभु के अभिनय के रुप में स्वयं सिद्धांतवावा महोदयश्री प्रस्तुति देने, जिसका ज्यादा से ज्यादा वैष्णव लाभ लें. ऐसा आवाहन गोवर्धननाथ हवेली सत्संग मंडल ने किया है. कार्यक्रम की शुरूआत में संयोजन समिति के सदस्यों ने महोदयश्री का स्वागत किया. कार्यक्रम की प्रस्तावना तथा आभार डॉ. घनश्याम बाहेती ने माना. इस अवसर पर मुकेशभाई ऑफ ने महोदयश्री का विशेष रुप से धन्यवाद माना. बता दें कि, पू.पा.गो. 108 भरतकुमार महाराज (पुणे-चेन्नई) के लालजी युवा वैष्णावाचार्य प. पू. गो. 108 यशोवर्धनराय (सिद्धांतवावा) महोदयली का महोत्सव निमित्त गोर्वधननाथ हवेली में मुकाम है. वैष्णव हवेली में चरणस्पर्श का लाभ ले सकते हैं.
कार्यक्रम का संयोजन महेशभाई सेठ, विशेष सहयोग डॉ. घनश्याम बाहेती, हितेशभाई राजकोटिया, कन्हैयाभाई पच्चीगर, तुषारभाई श्रॉफ, राजूभाई पारेख, हरीशभाई सांगाणी, किरण गगलानी, शिल्पाचेन पारेख, पूवीर्वेन गगलानी, राधाबेन बाहेती, दीप्तीवेन मुंघडा, लताबेन मुंधडा, नेहाचेन हिंडोचा, दीपाचेन करवा, सोमाजेन पच्चीगर, भावनाबेन जड़िया, राजकोटिया, हार्दिका मुंडा, नयनाचेन शाह, चेतनबेन जसापरा, प्रमुख मार्गदर्शक केशवलालभाई सेठ, प्रदीपभाई वैद्य, नितिनभाई गगलानी, मुकेशभाई ऑफ वरुणभाई महाजन, कृष्णाभाई राठी विशेष रुप से सहयोग दे रहे हैं.