मुंबई /दि.४–दो साल पहले हुई महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (Maharashtra Public Service Commission) की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बावजूद नियुक्ति के इंतजार में थक कर एक 24 साल के युवक ने आत्महत्या कर ली है. शोक में डूबे युवक के परिवार का आरोप है कि उसकी आत्महत्या के लिए सरकार और सिस्टम का नाकारापन जिम्मेदार है. इस घटना से अन्य परीक्षार्थी और विद्यार्थी भी आक्रोश में हैं और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से सवाल पूछ रहे हैं.
पुणे के हडपसर फुरसुंगी इलाके में रहने वाले स्वप्निल लोनकर ने एमपीएससी की प्रिलिम्स और मेन्स दोनों परीक्षाएं अच्छे नंबरों से पास की थी. लेकिन कोरोना की वजह से दो साल से इंटरव्यू नहीं हुआ है. इंटरव्यू इस प्रतियोगिता परीक्षा का आखिरी पड़ाव होता है. इसके बाद ऐसे अभ्यर्थियों की नियुक्ति राज्य के अलग-अलग विभागों में उच्च अधिकारियों के रूप में होती है. इस इंतज़ार से निराश होकर स्वप्निल ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. इस घटना से विद्यार्थियों में सरकार के खिलाफ गुस्सा है.
आत्महत्या करने से पहले स्वप्निल ने एक सुसाइड नोट छोड़ा है. इसमें उसने लिखा है, “एमपीएससी एक मायाजाल है. इसके झांसे में ना आओ, मैं घबराकर या परेशान होकर नहीं जा रहा हूं. मेरे पास इंतजार करने का वक्त नहीं है. जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता जाता है, उम्र और बोझ बढ़ता जाता है. आत्मविश्वास कम होता जाता है. उम्र के 24 साल और पास हुए 2 साल हो गए. परीक्षा के लिए लिया हुआ पहाड़ जैसा कर्ज प्राइवेट नौकरी कर कभी नहीं चुकाया जा सकता. परिवार वालों की बढ़ती उम्मीदें, मन में नकारात्मक विचार काफी दिनों से आ रहे थे. लेकिन उम्मीद थी कि जल्दी कुछ अच्छा होगा. लेकिन अब कुछ अच्छा होने के आसार नहीं दिख रहे. मेरी आत्महत्या के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है. यह मेरा खुद का फैसला है. मुझे माफ कर दो. 100 लोगों की जान बचानी थी, डोनेशन करके, 72 लोग बचे हुए हैं, हो सके तो उन तक पहुंचो, कई जिंदगियां बच जाएंगी.”
पुणे के हडपसर पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक मृतक स्वप्निल लोनाकर के पिता की एक प्रिंटिंग प्रेस है. बुधवार को जब पूरा परिवार वहीं गया हुआ था. तो स्वप्निल ने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. सबसे पहले स्वप्निल की बहन ने दोपहर में घर आकर देखा कि स्वप्निल ने अपने कमरे में फांसी लगाई हुई है. बहन ने तुरंत अपने माता-पिता को सूचित किया. तुरंत स्वप्निल को अस्पताल ले जाया गया. लेकिन तब तक स्वप्निल की जान जा चुकी थी.
महाराष्ट्र में एमपीएससी की परीक्षा लाखों विद्यार्थी देते हैं. इनमें से ज्यादातर ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं और शहरों में काफी कठिनाइयों से अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं. परिवार का जीवन स्तर कुछ खास नहीं होने की वजह से एक-एक साल का खर्च देना इनके माता-पिता के लिए मुश्किल होता है. कई विद्यार्थियों के मन में सवाल है कि खेती-किसानी करने वाले पिता को वे घर जाकर क्या जवाब दें? कई विद्यार्थियों ने गांव वालों के सवालों भरी नज़रों से बचने के लिए गांव जाना बंद कर दिया है. स्वप्निल एक ग्रामीण पृष्ठभूमि का विद्यार्थी तो नहीं था. लेकिन उसकी आर्थिक पृष्ठभूमि इन्हीं विद्यार्थियों की तरह थी. ऐसे में परीक्षा पास करने के बाद भी दो साल तक इंटरव्यू नहीं हुआ, नियुक्ति नहीं हुई. इससे निराशा स्वाभाविक है.
फिर भी ये विद्यार्थी और परिक्षार्थी किसी तरह से अपने संघर्ष को अपने उत्कर्ष में रूकावट बनने नहीं दे रहे हैं, और लगातार इससे जूझते हुए आगे निकलते जा रहे हैं. लेकिन इन्हें अफसोस है कि स्वपनिल टूट गया. वह इतना बड़ा कदम उठा लेगा, यह किसी ने नहीं सोचा था.