सरकारी संपत्ति को पिता की संपत्ति मान रहे अधिकारी
अवैध निर्माण पर हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी
मुंबई/दि.७ – बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सरकारी अधिकारी राज्य की संपत्ति को अपने पिता व्दारा अर्जित की गई संपत्ति मान रहे हैं. हाईकोर्ट ने नियमोें की अनदेखी कर महानगर में तेजी से हो रहे अवैध निर्माण को देखते हुए यह तल्ख टिप्पणी की है. इसके साथ ही अनाधिकृत निर्माण को लेकर राज्य सरकार व मुंबई महानगरपालिका को कड़ी फटकार लगाई.
इससे पहले राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि जिन झोपड़ी धारकों के पास वैध फोटो पास हैं. उसे स्लम कानून के तहत संरक्षित ढांचा माना गया है. इसलिए 1 जनवरी 2000 के पहले बने ऐसे ढांचे को नहीं गिराया जा सकता है. इस पर मामले की न्यायमित्र के रुप में पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता शरण जगतियानी ने कहा कि कानून के तहत झोपड़े को संरक्षण दिया ग या है. पर कोई कानून स्थानीय निकाय अथवा मुंबई महानगरपालिका को बढ़ते अवैध निर्माण को लेकर कोर्ट को सौंपी गई रिपोर्ट को पूरी तरह से न्यायसंगत ठहराया. इन दलीलों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारी अधिकारी राज्य सरकार को अपने पिता व्दारा अर्जित की हुई संपत्ति मान रहे. जिसके चलते नियमों का पालन किये बिना तेजी से अवैध निर्माण बढ़ रहा है.
* सिंगापुर के हाऊसिंग मॉडल से प्रेरणा ले सरकार
खंडपीठ ने मुंबई महानगर क्षेत्र में अवैध निर्माण व मालवणी में गिरी इमारत हादसे की घटना का स्वतः संज्ञान लिया है और इसे जनहित याचिका में परिवर्तित किया है. खंडपीठ ने कहा कि मुंबई इकलौता ऐसा शहर है जहां अतिक्रमण करने वाले को मुफ्त में मकान मिलता है. खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार ऐसा कानून लाये जिससे इमारत गिरने के चलते लोगों की होने वाली मौत को रोका जा सके. खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को गरीबों को घर देने के मामले में सिंगापुर के हाउसिंग मॉडल से प्रेरणा लेनी चाहिए.