मराठा समाज को आरक्षण की आवश्यकता नहीं

हाईकोर्ट में युक्तिवाद

* मुख्य प्रवाह में लाने का साधन रहा है आरक्षण
मुंबई / दि. 22- मराठा समाज को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछडा मानकर 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के राज्य शासन के निर्णय को चुनौती देनेवाली याचिका पर बंबई हाईकोर्ट में शुक्रवार को सुनवाइ हुई. इस समय कहा गया कि ओबीसी में ही मराठा समाज को आरक्षण दिया जा सकता था. अलग से 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का निर्णय गलत होने का युक्तिवाद याचिकाकर्ता के वकील ने किया.
न्या. रवीन्द्र घुगे, न्या. एन. जे. जामदार और न्या. संदीप मारणे की पूर्णपीठ ने सुनवाई की याचिकाकर्ता के वकील प्रदीप संचेती ने जयश्री पाटिल प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्बारा दिए गये निर्णय का उदाहरण रखा. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि पिछडे वर्ग में उप वर्गीकरण किया जा सकता है. इसलिए वास्तविक रूप से शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछडे मराठा समाज को ओबीसी में आरक्षण दिया जा सकता है. आरक्षण का मूल उद्देश्य पिछडा समाज को मुख्य प्रवाह में लाना और समान अवसर प्रदान करना है.
एड संचेती ने कोर्ट के सामने सरकारी नौकरी में मराठा समाज का हिस्सा साबित करने के लिए आंकडे भी रखे. उन्होंने तर्क दिया कि अन्य समाज की तुलना में किसी समाज का सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व अधिक रहने पर ऐसे समाज को आरक्षण की क्या आवश्यकता है. संचेती ने यह भी कहा कि मराठा समाज को पिछडा सिध्द करने के लिए जो असाधारण और अपवादात्मक परिस्थिति के मापदंड आवश्यक है. वह मापदंड यह समाज पूर्ण नहीं करता. अगली सुनवाई शीघ्र रखी गई है.

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