कभी अमरावती से चलती थी मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री
पूरे मध्य भारत में अमरावती से होता था फिल्मो का डिस्ट्रीब्युशन

* 50 से 60 फिल्म वितरक सक्रिय थे फिल्म वितरण के व्यवसाय में
* मोहन चित्र, कल्याण पिक्चर्स व खजांची फिल्मस् सहित राठी व लड्ढा परिवार का था दबदबा
* फिल्मो के प्रति दर्शकों की दीवानगी के घटते ही फिल्म डिस्ट्रीब्युशन का व्यवसाय भी हुआ मंदा
* कई छोटे-बडे डिस्ट्रीब्युटर्स ने अब अपना कारोबार समेट लिया
* टॉकीजों के साथ ही डिस्ट्रीब्युटर्स के कार्यालय भी हो रहे बंद
अमरावती /दि.31- किसी जमाने में फिल्मों का अपना एक दौर हुआ करता था. साथ ही साथ उस जमाने में मनोरंजन के अन्य कोई साधन नहीं रहने के चलते लोगों में फिल्मों के प्रति हद दर्जे की दीवानगी भी हुआ करती थी. जिसके चलते प्रदर्शित होने के बाद कई फिल्मे दर्शकों की पसंद पर खरा उतरने के साथ-साथ कई-कई हफ्तों तक टॉकीजों में चलती रहती थी तथा 25 हफ्ते पूरे करते हुए सिल्वर ज्युबिली व 50 हफ्ते पूरे करते हुए गोल्डन ज्युबिली भी मनाया करती थी. उस जमाने में आलम यह था कि, कई-कई हफ्तों तक लगातार चलनेवाली फिल्मों के थिएटर में सभी शो लगभग हाऊस फुल रहा करते थे. जिसके चलते फिल्मों के प्रदर्शन एवं वितरण का व्यवसाय जबरदस्त फायदेवाला सौदा हुआ करता था. यही वजह थी कि, उस जमाने में जहां एक ओर अमरावती शहर में करीब 11 आलिशान टॉकीजे हुआ करती थी. वहीं अमरावती शहर में सेंट्रल सिने सर्कीट एसोसिएशन के सीपी एंड बेरार सर्कीट में फिल्मों का वितरण करनेवाले करीब 50 से 60 फिल्म डिस्ट्रीब्युटर्स भी हुआ करते थे. जिनके जरिए भुसावल से लेकर मौजूदा छत्तीसगढ एवं जबलपुर संभाग के क्षेत्रों तक फिल्मों का वितरण किया जाता था. ऐसे में कहा जा सकता है कि, उस समय मध्य भारत में फिल्मों का वितरण अमरावती से हुआ करता था और एकतरह से मुंबई की बॉलिवूड फिल्म इंडस्ट्री को अमरावती के फिल्म डिस्ट्रीब्युटर चलाया करते थे. परंतु गुजरते दौर के साथ जैसे-जैसे लोगों की फिल्मों के प्रति दीवानगी कम होने लगी और एक के बाद एक कई टॉकीजें भी बंद होने लगी. वैसे-वैसे कई फिल्म वितरकों ने भी फिल्म डिस्ट्रीब्युशन के व्यवसाय से किनारा करते हुए अन्य व्यवसायों का रुख करना शुरु कर दिया. ऐसे में अब कुछ गिने-चुने फिल्म वितरकों के अलावा अन्य कई छोटे-बडे फिल्म वितरक इस व्यवसाय से बाहर हो गए है.
इस संदर्भ में दैनिक अमरावती मंडल ने किसी समय सुभाष घई, इंदर कुमार व बोनी कपूर जैसे बडे फिल्म निर्माता व निर्देशकों की कई बडी- बडी फिल्मों का प्रदर्शन कर चुके मोहन चित्र के संचालक कमलकिशोर कासट से फिल्म वितरण व्यवसाय के उस सुनहरे दौर व मौजूदा स्थिति को लेकर बातचीत की, तो कमलकिशोर कासट ने बताया कि, उनका परिवार फिल्म वितरण व्यवसाय के क्षेत्र में सन 1962 से सक्रिय हुआ था तथा 70 से 80 के दशक को फिल्म वितरण व प्रदर्शन के व्यवसाय का सबसे सुनहरा दौर व चरमबिंदू कहा जा सकता है. जब एक के बाद एक लगभग सभी फिल्मे हिट व सुपर हिट हुआ करती थी. उस दौर में राज कपूर, देवानंद, दिलीप कुमार, राजेंद्र कुमार, राजेश खन्ना, सुनील दत्त, अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, जितेंद्र, धर्मेंद्र, शशी कपूर, ऋषि कपूर, मिथून चक्रवर्ती जैसे अभिनेताओं तथा वैजयंती माला, हेमा मालिनी, माला सिन्हा, आशा पारेख, नंदा, वहिदा रहेमान, नूतन, रेखा, जया भादुरी, मौसमी चटर्जी, नर्गीस, रिना रॉय, डिंपल कापडिया, मुमताज, परवीन बॉबी, जिनत अमान जैसी अभिनेत्रीयों अभिनेत्रीयों का अपना एक स्टारडम व जलवा हुआ करता था. इसके बाद 90 के दशक में गोविंदा, अनिल कपूर, संजय दत्त, शाहरुख खान, आमीर खान, सलमान खान जैसे अभिनेताओं तथा जया प्रदा, श्रीदेवी, मीनाक्षी शेषाद्री, माधुरी दीक्षित, उर्मिला मार्तोंडकर जैसी अभिनेत्रीयों ने भी इस सिलसिले को कुछ हद तक आगे बढाया. जिनके प्रति दर्शकों में हद दर्जे तक दीवानगी हुआ करती थी. साथ ही उस दौर में चूंकि फिल्म निर्माण से जुडा प्रत्येक घटक बडे समर्पित भाव से एवं कल्पक तरीके से अपना काम किया करता था. जिसके चलते जहां फिल्म के निर्माता-निर्देशक फिल्म के गुणवत्तापूर्ण निर्माण के लिए अपनी पूरी ताकत झोंका करते थे. वहीं फिल्म के गीतकार व संगीतकार भी अपने शब्दों व धुनों से फिल्म को एक से बढकर एक गीतों से सजाया करते थे. साथ ही साथ उस दौर के ख्यातनाम गायक-गायिकाओं द्वारा अपनी सुमधूर व सुरिली आवाज से कर्णप्रिय गीत दिया करते थे. यही वजह है कि, उस दौर के कई गीत और डॉयलॉग आज भी लोकप्रिय है. जिनसे उन फिल्मों की उस दौर में लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता था.
इस बातचीत में कमलकिशोर कासट ने कहा कि, पहले जहां मनोरंजन के लिए फिल्मे ही एकमात्र साधन हुआ करती थी. वहीं गुजरते वक्त के साथ मनोरंजन के साधनों में इजाफा होता चला गया. जिसके तहत पहले हर घर में टीवी आया और अब हर हाथ में अत्याधुनिक मोबाइल हैंडसेट व स्मार्ट फोन है, जो इन दिनों मनोरंजन का सबसे सशक्त डिजिटल माध्यम है. जिस पर ओटीटी कंटेंट बडी आसानी के साथ उपलब्ध है. ऐसे में अब लोगों को फिल्मे देखने के लिए टॉकीज जाने की जरुरत ही नहीं पडती और वे विभिन्न एप के जरिए अपने घर बैठे अपने मोबाइल हैंडसेट व स्मार्ट फोन पर अपनी पसंदीदा फिल्म देख सकते है. साथ ही इन दिनों स्मार्ट टीवी का पर्याय भी उपलब्ध हो गया है. उस पर भी घर बैठे फिल्मे देखी जा सकती है. इसके साथ ही कमलकिशोर कासट का यह भी कहना रहा कि, पहले यद्यपि मनोरंजन के साधन कम थे, लेकिन लोगों के पास अपने खुद के लिए वक्त हुआ करता था और वे टॉकीज में जाकर तीन घंटे की फिल्म देखा करते थे. लेकिन आज घर बैठे फिल्म देखने का पर्याय उपलब्ध रहने के बावजूद लोगों के पास पहले की तरह वक्त ही कहां है.
इन सभी बातों का फिल्म वितरण के व्यवसाय पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष असर पडने की बात को स्वीकार करते हुए कमलकिशोर कासट ने बताया कि, किसी समय अमरावती सहित भुसावल को मध्य भारत में फिल्म वितरण व्यवसाय का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता था. जिसके तहत अमरावती में मोहन चित्र, कल्याण फिल्मस्, खजांची फिल्मस्, एस. आर. एंड संस, जय फिल्मस् व लड्ढा ब्रदर्स जैसे फिल्म वितरकों सहित 50 से 60 फिल्म डिस्ट्रीब्युटर हुआ करते थे. वहीं भुसावल में विश्वज्योति, फेमस, सर्वोदय व राजश्री फिल्मस् जैसे बडे वितरकों सहित अन्य कई छोटे-मोटे डिस्ट्रीब्युटर हुआ करते थे. उस जमाने में जहां मोहन चित्र द्वारा सुभाष घई, इंद्र कुमार, बोनी कपूर व नाडीयादवाला सन्स जैसे निर्माता-निर्देशकों की फिल्मों का वितरण किया जाता था. वहीं खजांची फिल्मस् के पास यशराज फिल्म व केसी बोकाडिया तथा नरसिंगदास लड्ढा एंड सन्स के पास आरके फिल्मस् जैसे बडे बैनरों वाली फिल्मों के डिस्ट्रीब्युशन का जिम्मा हुआ करता था. इसके अलावा कल्याण फिल्मस् व जय फिल्मस् द्वारा भी कई हिट व सुपर हिट फिल्मों के वितरण का जिम्मा संभाला गया. उस जमाने में फिल्मों की रील वाली पेटियों का चलन हुआ करता था. लेकिन जैसे-जैसे सूचना व तकनीक के साधन उन्नत होते चले गए, वैसे-वैसे रील की पेटियों का चलन बंद हो गया और फिल्मों का वितरण सैटेलाइट के जरिए डिजिटली होने लगा. जिससे पूरे व्यवसाय का स्वरुप ही बदल गया. इसके अलावा अब पहले की तरह दमदार कहानी और शानदार गीत-संगीत वाली फिल्मों का निर्माण होना भी बंद हो गया. जिसके चलते बॉक्स ऑफीस पर कलेक्शन घटने लगा. जिसकी वजह से खर्चा निकालना भी मुश्किल काम हो गया. ऐसे में मोहन चित्र सहित कई छोटे-बडे फिल्म वितरकों ने फिल्म डिस्ट्रीब्युशन के व्यवसाय से अपने हाथ खींच लिए.
* अच्छा कंटेंट रहेगा तो आज भी चलती है फिल्मे
इस बातचीत में कमलकिशोर कासट ने कहा कि, यदि आज भी अच्छे कंटेंट वाली फिल्मे आती है तो ऐसी फिल्मों को बडी संख्या में दर्शक मिलते है. इसे छावा, सैंयारा, पठान व वॉर सहित साऊथ में बनी बाहुबली व पुष्पा जैसी फिल्मों के दोनों हिस्सों को मिली जबरदस्त सफलता को देखते हुए समझा जा सकता है, परंतु तकलिफ यह है कि, इन दिनों ऐसे अच्छे कंटेंट वाली फिल्मे बेहद कम बनती है. साथ ही साथ फिल्मों का निर्माण भी काफी महंगा सौदा हो गया है. ऐसे में फिल्मों की बजाए अब ओटीटी कंटेंट ज्यादा बेहतर प्रदर्शन कर रहे है.
* उस दौर की थी बात ही कुछ अलग
फिल्म वितरण व्यवसाय के गुजरे दौर को याद करते हुए कमलकिशोर कासट ने कहा कि, उस दौर में कई ऐसी फिल्मे रही, जिनका वितरण व प्रदर्शन आज भी अपने-आप में यादगार कहा जा सकता है. सबसे बडा उदाहरण तो फिरोज खान की ‘कुर्बानी’ फिल्म के प्रदर्शन को कहा जा सकता है. जिसके शो ‘राऊंड द क्लॉक’ चले थे, यानि सुबह 6 बजे इस फिल्म का पहला शो प्रदर्शित हुआ था और अगले दिन सुबह 6 बजे तक एक के बाद एक लगातार शो चले थे. कुछ इसी तरह के अनुभव अमिताभ बच्चन की ‘कुुली’, दिलीप कुमार की ‘कर्मा’, ऋषि कपूर की ‘प्रेमरोग’ आमीर खान की ‘कयामत से कयामत तक’ व ‘दिल’, सलमान खान की ‘मैने प्यार किया’, जैकी श्रॉफ की ‘हीरो’, अनिल कपूर व माधुरी दीक्षित की ‘तेजाब’ तथा मल्टीस्टारर ‘साजन’ जैसी फिल्मों के प्रदर्शन के समय भी मिले थे, जब इन फिल्मों ने रिकॉर्डतोड भीड खींची थी. इसके अलावा ‘हम आपके है कौन’ तथा ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ जैसी फिल्मों ने तो प्रदर्शन कालावधि और टिकट विक्री को लेकर नए रिकॉर्ड भी बना दिए थे. लेकिन अब वे तमाम बाते गुजरे दौर वाली बाते हो गई है, क्योंकि जिन टॉकीजों में कभी ऐसी फिल्मों का प्रदर्शन होने पर रिकॉर्डतोड भीड उमडा करती थी. आज उन टॉकीजो में सन्नाटा पसरा पडा है. साथ ही कई टॉकीजें तो बंद भी हो गई है. साथ ही साथ फिल्म वितरण का व्यवसाय भी अब लगभग खत्म ही हो चुका है.
* मौजूदा दौर में नए तरह की चुनौतियां
फिल्म वितरण के व्यवसाय में कभी सिरमौर रहे मोहन चित्र के संचालक कमलकिशोर कासट ने बताया कि, पहले जहां फिल्म के बडे-बडे निर्माताओं द्वारा अलग-अलग सर्कीट के लिए फिल्म के वितरण व प्रदर्शन के अधिकार बेचे जाते थे. वहीं अब कई प्रोडक्शन हाऊसो ने अपने खुद के डिस्ट्रीब्युशन नेटवर्क खडे कर लिए है. साथ ही कई फिल्म प्रोड्यूसर अपनी फिल्मों को ऑल इंडिया रिलिज किया जाता है. जिसके तहत किसी एक कंपनी को फिल्म के सैटेलाईट अधिकार दे दिए जाते है और उस कंपनी द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों के लिए कुछ निश्चित शो के अधिकार बेचे जाते है. ऐसे में इस व्यवसाय का पूरा स्वरुप और तरीका ही बदल गया है. जिसके चलते अब भी इस व्यवसाय में सक्रिय फिल्म वितरक व्यवसायियों के सामने अब नए तरह की चुनौतियां है. जिनसे नई पीढी के फिल्म वितरक व्यवसायी जूझ रहे है तथा अपने अस्तित्व को टिकाए हुए है.
* ‘क्यों हो गया ना’ की अमरावती में ही हुई थी भव्य लाँचिंग
इस बातचीत में कमल कासट ने यह भी बताया कि, किसी समय अमरावती शहर में विवेक ओबेरॉय व ऐश्वर्या रॉय अभिनित ‘क्यों हो गया ना’ नामक फिल्म की भव्य लाँचिंग हुई थी. जिसके लिए विवेक ओबेरॉय व ऐश्वर्या रॉय अमरावती आए थे. जिन्होंने जिला स्टेडियम पर शानदार परफार्मस् भी दी थी. उस फिल्म का वितरण भी मोहन चित्र ने ही किया था और वह पूरे अमरावती शहर के लिए आज भी एक यादगार लम्हा है.





