अब सभी का ध्यान महापौर पद के आरक्षण की ओर
खुला प्रवर्ग रहने पर जमकर होगी रस्साकशी

अमरावती/दि.15 – अमरावती महानगरपालिका के चुनाव हेतु हाल ही में प्रभागों के लिए आरक्षण का ड्रॉ निकाला गया. जिसके बाद अब सभी का ध्यान महापौर पद के आरक्षण की ओर लगा हुआ हैं. साथ ही यह भी तय माना जा रहा है कि यदि इस बार अमरावती मनपा का महापौर पद सर्वसाधारण प्रवर्ग के लिए खुला रहता है तो इस पद पर आसीन होने के लिए दावेदारों के बीच अभी से ही जबर्दस्त रस्साकशी शुरू हो जाएगी. बता दे कि वर्ष 2017 में हुए मनपा चुनाव के बाद अमरावती मनपा में भाजपा की स्पष्ट बहुमत वाली सत्ता थी. परंतु विगत 8-9 वर्षों के दौरान शहर की राजनीतिक स्थिति में काफी बडा बदलाव आ गया है. जिसके चलते अब मनपा में किसकी सत्ता आती हैं और किसे महापौर पद बनने का मौका मिलता है, इसे लेकर अभी से ही राजनीतिक कयास लगाए जा रहे है.
याद रहे कि वर्ष 2022 से 2025 के दौरान अमरावती मनपा में जनता द्बारा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का सभागृह अस्तित्व में नहीं रहने के चलते इस दौरान महापौर पद रिक्त पडा रहा और भाजपा के चेतन गावंडे अमरावती मनपा के आखरी महापौर साबित हुए. महापौर पद के लिए अमरावती में हमेशा ही राजनीतिक दलों एवं दावेदारों के बीच जबर्दस्त रस्साकशी होती आयी है. विगत दो दशकों के दौरान पूर्व पालकमंत्री डॉ. सुनील देशमुख व जगदिश गुप्ता तथा विधायक संजय खोडके जैसे दिग्गज नेताओं के बीच जबर्दस्त राजनीतिक प्रतिस्पर्धा रही. जिसके चलते अपने दल अथवा गठबंधन के उम्मीदवार को महापौर पद दिलाने हेतु तीनों नेताओं के बीच शह और मात वाली राजनीतिक चलती रही. इसके अलावा जिस समय मनपा में निर्दलिय पार्षदों का अच्छा खासा बोलबाला था, तब अधिक से अधिक नगर सेवकों को अलग-अलग तरह के प्रलोभन देते हुए अपनी ओर मिलाने और पाला बदलने वाली राजनीति भी जमकर हुई. हालांकि वर्ष 2002 के बाद निर्दलियों का महत्व कम हुआ और तोडफोड वाली राजनीति पीछे छुट गई तथा पक्षीय बलाबल वाले दौर का प्रारंभ हुआ.
ज्ञात रहे कि 15 अगस्त 1983 को अमरावती महानगरपालिका की स्थापना हुई थी. परंतु इसके बाद अगले करीब 9 वर्षों तक अमरावती मनपा में प्रशासक राज चलता रहा और सन 1992 में अमरावती महानगपालिका का पहला आम चुनाव हुआ. उस समय महापौर व उपमहापौर पद का कार्यकाल केवल 1 वर्ष का हुआ करता था और तब नगरसेविक निर्वाचित हुए. पूर्व विधायक व कांग्रेस नेता डॉ. देविसिंग शेखावत को अमरावती के प्रथम महापौर पद पर विराजमान होने का बहुमान प्राप्त हुआ. जिसके बाद प्रभाकर सव्वालाखे (निर्दलिय), गोविंद अग्रवाल (कांग्रेस), विद्याताई देशपांडे (भाजपा) व किरणताई महल्ले (भाजपा) को मनपा के पहले सदन में अगले एक-एक वर्ष के लिए महापौर बनने का अवसर मिला. इसके बाद जब वर्ष 1997 में अमरावती मनपा का दूसरा आम चुनाव हुआ तो उस समय राज्य में भाजपा- शिवसेना युती की सरकार थी और भाजपा के लिए बेहद अनुकूल स्थिति थी. जिसके चलते भाजपा ने उस समय 23 सीटे जितकर शिवसेना व निर्दलियों के समर्थन से अमरावती मनपा में सत्ता स्थापित की थी. जिसके चलते पहले वर्ष में भाजपा के प्रवीण काशिकर व दूसरे वर्ष में भाजपा के नितीन वानखडे महापौर बने, परंतु तीसरे वर्ष एक बडा उलटफेर हुआ और कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता में आने से रोक दिया. जिसके बाद कांग्रेस के समर्थन से निर्दलिय पार्षद विलास इंगोले महापौर बने और उसी समय महापौर का कार्यकाल ढाई वर्ष कर दिया गया. जिसके चलते विलास इंगोले को अगल तीन वर्षों तक महापौर पद पर बने रहने का मौका मिला. पश्चात वर्ष 2002 में हुए चुनाव में कांग्रेस को सर्वाधिक सीटे मिली थी. जिसके बाद डॉ. दिपाली गवली व मिलींद चिमोटे महापौर बने थे. वही 2007 में हुए चुनाव पश्चात कांग्रेस के अशोक डोंगरे को महापौर बनने का अवसर मिला था. जबकि वर्ष 2017 में हुए चुनाव में भाजपा ने स्पष्ट बहुमत के साथ मनपा की सत्ता हासिल की थी तथा 2017 से 2022 के दौरान संजय नरवने व चेतन गावंडे महापौर रहे.
उल्लेखनीय है कि अमरावती मनपा में अब तक 5 महिलाओं को महापौर बनने का मौका मिला है. साथ ही अब तक अमरावती मनपा का महापौर पद अलग-अलग समय पर अलग-अलग प्रवर्गों के लिए भी आरक्षित रहा. ऐसे में अब करीब 9 वर्ष के अंतराल पश्चात होने जा रहे अमरावती मनपा के चुनाव में महापौर पद किस प्रवर्ग के लिए आरक्षित होता है इसे लेकर जबर्दस्त उत्सुकता देखी जा रही है. साथ ही महापौर पद को लेकर आरक्षण की स्थति स्पष्ट होने के बाद ही नए राजनीतिक समिकरणों में बनने में तेजी आएगी. यह भी अभी से तय है.





