‘अब ये शुरुआत है लडाई की, स्वाभिमान की, और अंतिम फैसले की’

अंबोडा में बच्चू कडू की दहाड

* सातबारा कोरा का यलगार
यवतमाल/दि.15-किसान भयमुक्त, कर्जमुक्त जीवन क्यों नहीं चाहता? उसके बच्चे शिक्षित और सम्मानजनक जीवन क्यों नहीं चाहते? सरकार हमेशा ‘सही समय’ का इंतजार क्यों करती है जब कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे होते हैं? ये सवाल नहीं, सरकार की संवेदनहीनता पर सीधा आरोप हैं! आज भी किसान की उपज का कोई मोल नहीं, वह कर्ज के बोझ तले दबा है. फिर भी सरकार कहती है, सही समय आने पर हम कर्ज माफकर देंगे, ऐसा कहते हुए पूर्व विधायक एवं प्रहार जनशक्ति पक्ष के नेता ओमप्रकाश उर्फ बच्चू कडू ने सरकार से सीधे सवाल किया कि, सैकडों किसानों ने जान गंवाने के बाद क्या सरकार को सही समय सुझेगा? यवतमाल जिले के महागांव तहसील अंतर्गत आने वाले अंबोडा में बच्चू कडू की दहाड गूंजी.
इस समय सातबारा कोरा सभा में किसानों का सरकार के खिलाफ विद्रोह दिखा. इस सभा का नारा रहा कि, अब लूट का कोई बहाना नहीं, अब पीछे हटना नहीं है. अंबोडा में हजारों की संख्या में डटे किसानों ने साबित कर दिया कि जाति, पंथ, धर्म, पार्टी को भूलकर, किसान एकजुट होकर किसी भी सरकार को हिला सकते हैं. ये एक बैठक नहीं थी, ये वो दहाड थी जिसने सरकार को जगा दिया. अब ये शुरुआत है लड़ाई की, स्वाभिमान की, और अंतिम फैसले की, यह गूंज सुनाई दी. सरकार की कपटपूर्ण नीतियों पर आक्रोश भरे सवाल उठ रहे हैं.
अंबोडा सिर्फ एक सभा नहीं थी, यह एक क्रांति थी, यह किसानों के मन का विस्फोट था. सातबारा कोरा आंदोलन के इस पड़ाव पर किसान कह रहे हैं, अब लडाई पीछे नहीं हटेगी, जब तक लूट बंद नहीं होगी.
बच्चू कडू और उनके हजारों साथी गत सप्ताह भर में सैकडों किमी से अधिक फासला पैदल तय कर चुके हैं. सोमवार शाम महागांव में विशाल जनसभा के साथ अभियान परिपूर्ण होने किंतु किसान कर्ज माफी तक आंदोलन जारी रखने की घोषणा प्रहार ने की है. इसके बाद बच्चू कडू महागांव तहसील के अंबोडा में पहुंचे. जहां सभा में हजारों की किसानों ने एकता का परिचय दिया. बतादें कि, बच्चू कडू ने भाउसाहब पंजाबराव देशमुख के जन्मगांव पापल से यह पदयात्रा शुरू की थी.
संघर्ष खत्म नहीं होगा
विधायक रोहित पाटिल ने सरकार पर साफ शब्दों में निशाना साधते हुए कहा, सरकार अब किसानों की इस विशाल एकता को देख चुकी है. इस उपेक्षा को रोकें, वरना यह एकता आपका सिंहासन हिला देगी. किसान अब सिफ गुहार नहीं लगा रहे, अपना गुस्सा दिखा रहे हैं, सरकार से अपनी लूट का हिसाब मांग रहे हैं. ‘सातबारा कोरा’ कोई मांग नहीं, चेतावनी है. जब तक किसान का जीवन कजर्र्मुक्त नहीं होगा, तब तक सडकों पर संघर्ष खत्म नहीं होगा.

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