केवल महिला को ही अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार
हाई कोर्ट ने कहा

नागपुर/दि.27 – बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक नाबालिग पीडिता को गर्भपात की अनुमति दे दी है. हालांकि, गर्भपात कराना है या नहीं, इसका अंतिम निर्णय महिला स्वयं लेगी. हाईकोर्ट ने कहा कि केवल एक महिला को ही अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार है. यह याचिका पीडिता ने अपनी मां के माध्यम से दायर की थी. मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अनिल पानसरे और न्यायमूर्ति राज वाकोडे की पीठ के समक्ष हुई. सहमति से हुए गर्भधारण की जिम्मेदारी दोनों पक्षों की होती है. हालांकि, अत्याचार से उत्पन्न अनचाहे गर्भ का पूरा भार पूरी तरह से महिला पर ही पडता है, क्योंकि उसे गंभीर मानसिक व शारीरिक क्षति पहुंचती है. न्यायालय के आदेश अनुसार 19 नवंबर को स्थापित हुए मेडिकल बोर्ड ने रिपोर्ट दी. उसके अनुसार, पीडिता पूरी तरह स्वस्थ है. भ्रूण में कोई असामान्यता नहीं है. हालांकि, वह भ्रूण को जन्म नहीं देना चाहती. कम उम्र और कुंवारी माता बनने के सामाजिक कलंक के कारण वह गर्भ को जन्म नहीं देना चाहती. इसके लिए पीडिता के अभिभावकों ने भी सहमति दी है. 25वें सप्ताह में गर्भपात कराने से भ्रूण की जान को कोई खतरा नहीं होता. फिर भी, अदालत ने पीडिता की इच्छा का सम्मान करते हुए गर्भपात की अनुमति दे दी. अदालत ने पीडिता और उसके माता-पिता की लिखित सहमति से अमरावती महिला अस्पताल में तुरंत सुरक्षित गर्भपात कराने, भ्रूण का डीएनए परीक्षण कराने और पुलिस को रिपोर्ट सौंपने के आदेश देकर याचिका हल की है. याचिकाकर्ता की ओर से एड. विश्वेश नायक और राज्य सरकार की ओर से अनूप बदर ने पक्ष रखा.





