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नामांतर के निर्णय में कर दी थी भूल

शरद पवार ने तीन दशकों बाद व्यक्त किया खेद

* मराठा-ओबीसी आरक्षण में सरकार को सलाह
छत्रपति संभाजीनगर/दि.27- राकांपा शरद पवार गट के सर्वेसर्वा शरद पवार ने तीन दशक पहले मराठवाडा विश्वविद्यालय के नामांतर से पहले स्थानीय लोगों और संबंधित पक्षों से समुचित चर्चा नहीं करने एवं मुंबई में बैठे-बैठे अचानक निर्णय घोषित कर देने की बात को गलती माना. इस पर खेद व्यक्त किया. आज यहां पत्रकार परिषद को संबोधित करते हुए पवार ने राज्य से संबंधित विविध विषयों पर चर्चा की. उन्होंने मराठा-ओबीसी आरक्षण का मामला राज्य सरकार को संवाद के जरिए हल करने की सलाह भी दी.
* मराठवाडा में गरीबों ने भुगता
पवार ने कहा कि, उन्होंने विधान मंडल के सदस्यों से चर्चा कर विद्यापीठ नामांतर का फैसला किया था. इस निर्णय का परिणाम मराठवाडा में हुआ. कुछ गरीब लोगों को इन परिणामो की कीमत चुकानी पडी. निर्णय में जिनकी नाराजगी थी, उनसे मैने बिलकुल बात नहीं की थी. इसके बाद मैने स्वयं बाकी सभी कार्यक्रम रोके. मराठवाडा के लगभग सभी कालेज में खुद गया और विद्यार्थियों से सुसंवाद किया. एक वर्ष पश्चात जिन लोगों ने निर्णय का विरोध किया था उन्होंने सहमती दर्शा दी. आज मराठवाडा में कुछ जगह आरक्षण का मुद्दा चल रहा है. नई पीढी से संवाद करने की आवश्यकता है.
* आरक्षण पर बातचीत की सलाह
मराठा के साथ ही लिंगायत, धनगर, मुस्लिम को आरक्षण दिए जाने की मांग मनोज जरांगे ने की है. पवार ने कहा कि, समाज-समाज में अंतर आ गया, उसे दोबारा पटरी पर लाने की जरुरत है. सरकार ने जो संवाद रखना चाहिए वह नहीं रखा जा रहा है. जरांगे के मुख्यमंत्री से संवाद हो रहे है. मगर सरकार में शामिल लोग जरांगे की मांग का सरासर विरोध कर अलग बात कर रहे है. इसी से विवाद उपजा और बढा. मराठा और ओबीसी आरक्षण पर सामूहिक चर्चा कर राज्य में सामाजिक ऐक्य का वातावरण रहने की दृष्टि से निर्णय करने की सलाह पवार ने दी.

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