कभी अछूत रहे समाज का व्यक्ति आज मुख्य न्यायमूर्ति पद पर, यही हमारे संविधान की ताकत
ऑक्सफोर्ड यूनियन में बोले भारत के सीजेआई भूषण गवई

नई दिल्ली/दि.11 – किसी जमाने में भारत के लाखों नागरिकों को ‘अछूत और अपवित्र’ कहा जाता था. जो हमेशा ही भेदभाव का शिकार हुआ करते थे और उन्हें खुद अपने अधिकारों के लिए बात करने की भी अनुमति नहीं थी. लेकिन आज भारत के पास भारतीय संविधान के तौर पर एक ऐसा सामाजिक दस्तावेज है, जो सत्ता का संतुलन बनाए रखने और लोगों सम्मान बहाल करने के लिए जरुरी हस्तक्षेप करने का साहस भी रखता है और सभी को समानता का हकीकत में अधिकार दिलाता है. जिसके दम पर कभी अछूत रहे समाज का एक व्यक्ति नगर पालिका के स्कूल से पढाई-लिखाई पूरी करते हुए देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंच सकता है, यही भारतीय संविधान की सबसे बडी खूबसुरती व ताकत है. न्या. भूषण गवई ने उपरोक्त प्रतिपादन लंदन स्थित ऑक्सफोर्ड यूनियन नामक संस्था में आयोजित परिचर्चा में की.
बता दें कि, लंदन स्थित ऑक्सफोर्ड यूनियन एक ऐसी संस्था है, जहां लोग विभिन्न औपचारिक विषयों पर परिचर्चा करते है और इसी परिचर्चा में हिस्सा लेते हुए सीजेआई भूषण गवई ने संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के तौर पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की भूमिका पर भी प्रकाश डाला. सीजेआई भूषण गवई ने कहा कि, कई दशक पहले भारत के लाखों नागरिकों को अछूत कहते हुए उन्हें अपवित्र बताया जाता था और उन लोगों को खुद अपने लिए भी आवाज उठाने का अधिकार नहीं था. लेकिन आज हम यहां है. जहां उन्हीं लोगों से संबंधित एक व्यक्ति देश की न्यायपालिका में सर्वोच्च पदधारक के रुप में खुलकर बोल रहा है. यह कमाल भारत के संविधान ने किया है. जो भारतीय नागरिकों को बताता है कि, वे अपने लिए आवाज उठा सकते है तथा समाज व सत्ता के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी भागीदारी समान है.
इस समय सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति भूषण गवई ने यह भी कहा कि, भारतीय संविधान महज एक कानून चार्टर या राजनीतिक ढांचा नहीं है, बल्कि यह अपनेआप में एक भावना है, जीवनरेखा है तथा कागज पर शाही से उकेरी गई मौन क्रांति है. सीजेआई भूषण गवई ने यह भी कहा कि, भारतीय संविधान एक ऐसा सामाजिक दस्तावेज जो जाति, गरीबी, बहिष्कार व न्याय की क्रूर सच्चाइयों से अपनी नजर नहीं हटाता. वह इस बात का दिखावा भी नहीं करता कि, गहरी असमानता से ग्रथीत देश में सभी समान है. बल्कि इसकी बजाए यह हस्तक्षेप करने, पटकथा को फिर से लिखने, सत्ता को पुन: संतुलित करने और गरीमा को बहाल करने का साहस करता है. सीजेआई गवई ने यह भी कहा कि, प्रतिनिधित्व के विचार को डॉ. आंबेडकर के दृष्टिकोन में सबसे शक्तिशाली व स्थायी अभिव्यक्ति मिली है.
ऑक्सफोर्ड विश्व विद्यालय में मुख्य भाषण की शुरुआत उच्चतम न्यायालय में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड तन्वी दुबे की परिचयात्मक टिप्पणीयों से हुई. जिसमें न्यायिक प्रक्रिया के तहत प्रोद्योगिकी की भूमिका एवं समान प्रतिनिधित्व जैसे विषयों पर छात्रों के साथ बातचीत शामिल थी. सीजेआई भूषण गवई इस सप्ताह ब्रिटेन की अपनी यात्रा के दौरान संविधान एवं इसके स्थायी प्रभाव पर व्याख्यान दे रहे है. साथ ही मुख्य अतिथि के तौर पर विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा भी ले रहे है.