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लेखा परिक्षण की त्रुटी मामले में न्यायालय मित्र की नियुक्ति

मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट का निर्णय

* अमरावती संभाग में पाई गई है 4235 करोड की गडबडी
नागपुर/दि. 24 – अमरावती संभाग के विविध स्थानीय संस्थाओं के लेखा परिक्षण में पाई गई त्रुटी में निवेशित रकम करीब 4235 करोड रुपयों पर जा पहुंची है. साथ ही इस रकम की वसूली नहीं करनेवाले अधिकारियों व कर्मचारियों पर अब तक कोई कार्रवाई भी नहीं हुई है, इस आशय का दावा करते हुए मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में एक जनहित याचिका दायर की गई है. ऐसे में मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने एड. नहुश खुबालकर की न्यायालयीन मित्र के तौर पर नियुक्ति की है.
बता दें कि, वाशिम जिला अंतर्गत कारंजा लाड निवासी सूचना अधिकार कार्यकर्ता शेखर काण्णव द्वारा यह जनहित याचिका दायर की गई है और शेखर काण्णव ने अदालत में खुद अपनी याचिका को लेकर पैरवी की. इस मामले में न्या. नितिन सांबरे व न्या. वृषाली जोशी की दो सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई. इस याचिका के अनुसार अमरावती संभाग के अमरावती सहित अकोला, यवतमाल, वाशिम व बुलढाणा जिलो की महानगर पालिकाओं व नगर परिषदों का लेखा परिक्षण संबंधित निकायों की कार्यकक्षा वाले लेखा परीक्षा कार्यालय द्वारा किया जाता है और लेखा परिक्षण पूर्ण हो जाने के बाद उसकी रिपोर्ट संबंधित स्थानीय स्वायत्त संस्था को भेजी जाती है. जिसमें रहनेवाली त्रुटियों की पूर्तता रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद अगले 120 दिनों में करना अनिवार्य होता है. स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के विविध विभागों का लेखा परिक्षण एक ही समय होता है. साथ ही प्रत्येक वर्ष के लेखा परिक्षण में पिछले वर्ष के जितने प्रलंबित परिच्छेद है उनकी संख्या दर्ज की जाती है. प्रति वर्ष इन प्रलंबित परिच्छेदों की संख्या में वृद्धि होती रहती है और इसमें करोडों रुपयों की रकम भी अटकी रहती है. इस बेहद महत्वपूर्ण आर्थिक मसले की ओर सरकार द्वारा स्थायी तौर पर अनदेखी किए जाने का आरोप इस याचिका में लगाया गया है. इस गंभीर मुद्दे को लेखर शेखर काण्णव ने आर्थिक अपराध शाखा व प्रथम श्रेणी न्यायदंडारी न्यायालय से भी इंसाफ मांगा था. परंतु अधिकार क्षेत्र की तकनीकी वजह को आगे करते हुए उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया. जिसे काण्णव ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी.

* कार्रवाई में इतने वर्ष क्यों लगे
न्यायालय द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बाद उत्तर देते समय रिपोर्ट का फालोअप किए जाने की जानकारी अदालत को दी गई. साथ ही यह जवाबदारी स्थानीय निधि लेखा विभाग के पास रहने की बात कही गई. परंतु इसका फालोअप होने के बावजूद योग्य कार्रवाई करने में इतने वर्ष क्यों लगे, ऐसा सवाल याचिकाकर्ता द्वारा उपस्थित किया गया. ऐसे में मामले की गंभीरता को देखते हुए उच्च न्यायालय ने एड. नहुश खुबालकर को न्यायालय मित्र के तौर पर नियुक्त किया, जो पूरे मामले का अध्ययन करते हुए आगामी 17 मार्च तक इस मामले को लेकर अपना पक्ष रखेंगे.

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