भाजपा ने तीन बार किया था राकांपा को फोडने का प्रयास
सांसद सुप्रिया सुले ने किया रहस्योद्घाटन
* बोली – दो असफलताओं के बाद भाजपा ने इस बार अपनाई तगडी रणनीति
* अजित पवार को अब भी बताया परिवार व पार्टी का हिस्सा
* कहा – अजित पवार ने अपनाया अलग रास्ता, पार्टी नहीं छोडी
पुणे/दि.24 – भारतीय जनता पार्टी द्बारा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में तोडफोड करने के लिए इससे पहले भी दो बार प्रयास किए जा चुके है, जो असफल साबित हुए थे. वहीं इस बार भाजपा ने कुछ अलग व तगडी रणनीति अपनाई. जिसकी वजह से राकांपा नेता अजित पवार ने पार्टी लाइन से हटकर थोडा अलग रास्ता अख्तियार करते हुए हमारे विरोधी दलों से हाथ मिलाया गया है. लेकिन अजित पवार आज भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता है और हमारे परिवार का अभिन्न हिस्सा है. साथ ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में किसी भी तरह की टूट नहीं हुई है. इस आशय का प्रतिपादन राकांपा सुप्रीमो शरद पवार की बेटी व सांसद सुप्रिया सुले द्बारा किया गया.
पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने हेतु पहुंची सांसद सुप्रिया सुले ने राकांपा में हुई बगावत, अजित पवार के सत्ता में शामिल होने की वजह, पार्टी के भविष्य, कानूनी लडाई और पवार परिवार के बारे में अपनी बात रखते हुए कहा कि, अजित पवार द्बारा लिया गया निर्णय बेहद निराशाजनक है और संवाद साधना यह वापिस आने का मार्ग नहीं हो सकता. साथ ही वे पहले की तरह परिवार व पार्टी में वापिस आएंगे अथवा नहीं इस बारे में फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जा सकती. लेकिन हमें यह पूरा विश्वास है कि, हम अपनी ओर से अपने परिवार को एकजूट रखने का पूरा प्रयास करेंगे तथा राजनीति को अपने घर में नहीं आने देंगे. हमारी लडाई वैचारिक है. अत: परिवार रिश्तों को अलग रखते हुए हम अपनी वैचारिक लडाई को जारी रखेंगे.
उल्लेखनीय है कि, विगत दिनों शरद पवार व अजित पवार के बीच पुणे में हुई गुप्त भेंट को लेकर राज्य में अच्छा खासा हंगामा मचा था और मविआ में शामिल रहने वाली कांग्रेस व शिवसेना उबाठा ने इस मुलाकात को लेकर अपनी नाराजगी जताई थी. जिसके संदर्भ में सुप्रिया सुले ने कहा कि, लोकतंत्र में कोई भी व्यक्ति किसी को भी किसी से मिलने से कैसे रोक सकता है. यद्यपि हम आघाडी में शामिल मित्र दलों के प्रति उत्तरदायी है और यदि उन्हें इस मुलाकात की वजह से अस्वस्थता महसूस हो रही है, तो यह स्वाभाविक भी है. परंतु यह भी नहीं भूला जाना चाहिए कि, शरद पवार और अजित पवार के बीच चाचा-भतीजे का रिश्ता है और हम एक परिवार है. राजनीति स्तर पर कोई मदभेद होने का यह मतलब नहीं है कि, हमारे पारिवारिक रिश्ते भी खत्म हो गए है. अत: चाचा-भतीजे की उस मुलाकात को राजनीति से हटकर अलग नजरीए से भी देखे जाने की जरुरत है. इसके साथ ही राकांपा नेत्री सुप्रिया सुले ने कहा कि, उनकी नजर में अजित पवार आज भी राष्ट्रीवादी कांग्रेस पार्टी के सम्मानित और वरिष्ठ नेता है. लेकिन उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर एक बेहद निराशाजनक कदम उठाया है. परंतु उसकी वजह से पार्टी में कोई टूट नहीं हुई है और पूरी पार्टी अब भी सांसद शरद पवार के नेतृत्व में एकजूट है. साथ ही शरद पवार ही पार्टी में सर्वोच्च नेता है.
* अजित पवार ने की थी बगावत
बता दें कि, राकांपा नेता अजित पवार ने 2 जुलाई को अपने चाचा शरद पवार के साथ बगावत कर दी थी और महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल हो गए थे. पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी. जबकि उनके साथ 8 और विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली थी. अजित पवार ने दावा किया था कि उनके पास 40 विधायकों का समर्थन है. इस मामले में दोनों पार्टियों ने चुनाव आयोग का भी रुख किया है. ऐसे में सुप्रिया सुले का ये बयान काफी अहम माना जा रहा है. क्योंकि ये बयान ऐसे वक्त पर आया, जब एनसीपी चीफ शरद पवार भतीजे अजित पवार की बगावत के बाद पार्टी को फिर से खड़ा करने की चुनौती से जूझ रहे हैं. हालांकि, बगावत के बाद अजित पवार चार बार अपने चाचा शरद पवार से मुलाकात कर चुके हैं. हर बार शरद पवार ने इसे पारिवारिक बैठक बताया है.
* महाराष्ट्र में राकांपा कितनी ताकतवर?
उल्लेखनीय है कि, महाराष्ट्र में 2019 में विधानसभा चुनाव हुए थे. इस दौरान बीजेपी ने सबसे ज्यादा 105 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 सीटों पर जीत मिली थी. 288 सीटों वाले राज्य में कांग्रेस के खाते में 44 सीटें आई थीं. बीजेपी और शिवसेना ने एकसाथ मिलकर ये चुनाव लड़ा था. हालांकि, नतीजों के बाद दोनों पार्टियों के बीच सीएम पद को लेकर विवाद हो गया था. इसके बाद अजित पवार शरद पवार से बगावत कर देवेंद्र फडणवीस के साथ आ गए थे और उन्होंने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी. हालांकि, दो दिन बाद ही समर्थन न जुटा पाने के बाद अजित पवार ने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. इस सरकार में उद्धव ठाकरे सीएम और अजित पवार डिप्टी सीएम बने थे. हालांकि, शिवसेना में एकनाथ शिंदे गुट ने बगावत कर दी थी. इसके बाद शिंदे ने पिछले साल जून में 40 विधायकों के साथ बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी.