घर में ईसा मसीह का फोटो लगाने से जात प्रमाणपत्र को किया था खारिज
अमरावती जात प्रमाणपत्र जांच समिति का विवादास्पद फैसला
* हाईकोर्ट ने दिया झटका, याचिकाकर्ता युवती को मिली राहत
* दो सप्ताह में जाति प्रमाणपत्र देने का निर्देश हुआ जारी
नागपुर /दि.20- घर में ईसा मसीह का फोटो लगाए जाने की वजह को आगे करते हुए अमरावती जिला जाति प्रमाणपत्र जांच समिति ने जिले में रहने वाली 17 वर्षीय युवती को अनुसूचित जाति को जाति प्रमाणपत्र देने से इंकार कर दिया था. जिसके खिलाफ उक्त युवती ने मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुरी खंडपीठ में याचिका दायर की थी. इस याचिका पर सुनवाई के पश्चात नागपुर हाईकोर्ट ने जाति प्रमाणपत्र जांच समिति को जोरदार झटका देते हुए समिति के निर्णय को रद्द कर दिया. साथ ही दो सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता युवती को अनुसूचित जाति का जाति प्रमाणपत्र देने का निर्देश जारी किया.
जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण और जस्टिस उर्मिला जोशी फाल्के की बेंच ने विगत 10 अक्तूबर को 17 वर्षीय युवती द्बारा दायर याचिका को सुनवाई हेतु स्वीकार किया था. साथ ही सुनवाई के दौरान नागपुर बेंच ने कहा कि घर में जीसस की फोटो होने का यह मतलब यह नहीं कि, संबंधित व्यक्ति ने धर्म परिवर्तन कर लिया है और घर में सिर्फ तस्वीर से यह साबित नहीं होता कि उस व्यक्ति ने ईसाई धर्म अपना लिया है. कोर्ट ने आगे कहा कि पिटीशनर का धर्म बौद्ध और जाति महार है. उन्हें 2 हफ्ते में कास्ट सर्टिफिकेट दिया जाना चाहिए.
इस मामले में याचिकाकर्ता युवती की ओर से अमरावती जिला जाति प्रमाणपत्र जांच समिति के सितंबर 2022 के आदेश को चुनौती दी गई थी. इस आदेश में उसकी जाति को महार (अनुसूचित जाति) के रूप में अमान्य घोषित किया गया था. याचिकाकर्ता के मुताबिक, उनका परिवार महार जाति का है, उन्होंने कास्ट सर्टिफिकेट के लिए अपलाई किया था. जाति प्रमाणपत्र जांच समिति की जांच के दौरान उनके घर आए सतर्कता अधिकारी ने पाया कि उनके घर जीसस की तस्वीर लगी है. ऐसे में उन्होंने मान लिया कि उसके पिता और दादा ने धर्म परिवर्तन किया है, इसलिए उन्हें सितंबर 2022 में अनुसूचित जाति से अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में शामिल कर लिया गया. याचिकाकर्ता का दावा है कि, उन्हें जीसस की तस्वीर किसी ने गिफ्ट की थी.
ऐसे में कोर्ट ने जांच के बाद कहा कि कोई भी समझदार व्यक्ति यह स्वीकार या विश्वास नहीं करेगा कि केवल इसलिए कि घर में जीसस की तस्वीर है, इसका मतलब यह होगा कि एक व्यक्ति ने खुद को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर लिया है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ बपतिज्मा का कोई सबूत नहीं है. ऐसे में जिला प्रमाणपत्र जांच समिति का आदेश रद्द किया जाता है और दो हफ्ते के अंदर उन्हें महार से संबंधित जाति प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया जाता है.