सीजेआई गवई ने पहले ही फैसले से दिया नारायण राणे को झटका
वन विभाग की जमीन हडपने को लेकर की गई मिलीभगत पर लगाई फटकार

नई दिल्ली/दि.15 – देश के 52 वे मुख्य न्यायाधीश के तौर पर गत रोज ही शपथ ग्रहण करने के उपरांत न्या. भूषण गवई ने आज अपने नए कार्यकाल के पहले दिन पहला ही फैसला महाराष्ट्र से संबंधित एक मामले को देकर दिया. जिसमें सीजेआई भूषण गवई ने तत्कालीन राजस्व मंत्री व अब भाजपा नेता नारायण राणे को जबरदस्त झटका देते हुए 30 वर्ष पुराने मामले में महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए. सन 1998 में युति सरकार के कार्यकाल दौरान नारायण राणे के राजस्व मंत्री रहते समय पुणे के कोंढवा परिसर स्थित वन विभाग की 30 एकड जमीन एक बिल्डर को देने का निर्णय लिया गया था. जिसे मामले की सुनवाई पश्चात सीजेआई भूषण गवई ने रद्द करते हुए उक्त जमीन एक बार फिर वन विभाग को वापिस दिए जाने का आदेश दिया है. जिसके चलते सीजेआई गवई के पहले ही फैसले से भाजपा सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को जबरदस्त झटका लगा है. खास बात यह भी है कि, इस मामले को न्या. भूषण गवई ने नेताओं, प्रशासकीय अधिकारियों व निजी बिल्डरों की आपसी मिलीभगत का बेहतरीन उदाहरण बताते हुए संबंधितों को इसके लिए कडी फटकार भी लगाई.
इस संदर्भ में मिली जानकारी के मुताबिक पुणे के कोंढवा परिसर स्थित 30 एकड जमीन वन विभाग की रहने के बावजूद उसे चव्हाण नामक व्यक्ति को देने का निर्णय नारायण राणे ने सन 1998 में राजस्व मंत्री होने के नाते दिया था और चव्हाण नामक उक्त व्यक्ति ने वह 30 एकड जमीन अपनी कृषि भूमि रहने का दावा किया था. परंतु जमीन के अपने कब्जे में आते ही चव्हाण नामक उस व्यक्ति ने वह जमीन दो करोड रुपए में रिचीरिच सहकारी संस्था को बेच डाली. साथ ही आश्चर्यवाली बात यह रही कि, कुछ ही दिनों के भीतर पुणे के तत्कालीन संभागीय आयुक्त राजीव अग्रवाल, जिलाधीश विजय माथनकर व उपवनसंरक्षक अशोक खडसे ने उक्त जमीन गैर कृषि भूमि रहने का प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया. जिसके चलते उक्त जमीन पर निर्माण कार्य शुरु करने का रास्ता खुल गया. जहां पर सिटी ग्रुप के अनिरुद्ध देशपांडे, ऑक्सफोर्ड प्रॉपर्टीज व रहेजा बिल्डर्स द्वारा साथ आकर स्थापित की गई रिचीरिच सोसायटी द्वारा 1550 फ्लैट्स, तीन क्लब हाऊसेस व 30 रो-हाऊसेस एवं शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का समावेश रहनेवाल प्रकल्प बनाया जाना था, परंतु इस फैसले के खिलाफ पुणे के सजग चेतना मंच ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी और सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए मई 2002 में इसकी जांच हेतु एक समिति गठित की थी और समिति ने अपनी रिपोर्ट में नारायण राणे सहित संबंधित अधिकारियों पर कडी कार्रवाई करने की सिफारिश की थी. परंतु इस मामले में केवल उपवनसंरक्षक अशोक खडसे पर ही अपराध दर्ज हुआ था. वहीं यह बात भी सामने आई थी कि, अदालत की दिशाभूल करने हेतु ब्रिटिशकालिन रिकॉर्ड के साथ छेडछाड की गई है. ऐसे में अब करीब 30 वर्ष बाद मामले की सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुनाते हुए सीजेआई भूषण गवई ने उक्त जमीन वन विभाग को वापिस देने का निर्णय सुनाया है. साथ ही सरकारी जमीनों को हडपने हेतु राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों व निजी बिल्डरों के बीच रहनेवाली मिलिभगत को लेकर भी कडी फटकार लगाई है.