नागपुर/दि.19– भारतीय संस्कृति में बहू को बेटी ही माना जाता है और वह भी परिवार का एक सदस्य ही होती है. इस आशय का विचार व्यक्त करते हुए मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने एक पीडित विधवा बहू को नौकरी देने के दावे पर आगामी 6 अक्तूबर तक निर्णय लेने का आदेश वेस्टर्न कोलफिल्डस लिमिटेड यानि वेकोली को दिया है. इस मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने यह भी कहा कि, परिवार की व्याख्या में बहू का समावेश नहीं होता. केवल इस वजह को आगे करते हुए उसके दावे को खारिज नहीं किया जा सकता. बल्कि बेटी के दावे की तरह ही बहू के दावे को जांचा जाना चाहिए.
जानकारी के मुताबिक चंद्रपुर जिले की रहने वाली वर्षा गिलबिले के ससुर नामदेव गिलबिले (76) की पैली पारडी में खेत जमीन थी. जिसे वेकोली ने अधिग्रहित किया था. वेकोली की पुनर्वसन नीति अंतर्गत प्रकल्प पीडित को भरपाई तथा उसे या उसके परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी दी जाती है. जिसके अनुसार नामदेव गिलबिले को जमीन का मुआवजा दिया गया. वहीं नौकरी के लिए नामदेव गिलबिले के बेटे माधव गिलबिले ने दावा किया. परंतु अपनी बीमारी के चलते माधव गिलबिले नौकरी करने में असक्षम था. ऐसे में माधव की पत्नी यानि नामदेव गिलबिले की बहू वर्षा गिलबिले को नौकरी दिए जाने की मांग की गई. परंतु परिवार की व्याख्या में बहू का समावेश नहीं होता. इस वजह को आगे करते हुए 17 अक्तूबर 2019 को यह दावा खारिज कर दिया गया. पश्चात 30 अक्तूबर 2019 को माधव का निधन हो गया. ऐसे में नामदेव गिलबिले ने अपनी विधवा बहू को नौकरी दिलाने हेतु काफी प्रयास किए. जिसका कोई फायदा नहीं होने पर आखिरकार उन्होंने उक्त न्यायालय में याचिका दायर की. जहां पर न्या. अतुल चांदुरकर व न्या. वृषाली जोशी ने इस मामले की सुनवाई करते हुए वेकोली को भारतीय संस्कृति का हवाला दिया और बहू को परिवार का ही घटक बताते हुए याचिकाकर्ता के दावे पर विचार करने का निर्देश जारी किया.