* अब संसद में ही होगा निर्णय
दिल्ली / दि. 20- धनगर समाज को अनुसूचित जनजाति में शामिल कर आरक्षण लागू करने की मांग करनेवाली अर्जी शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय ने नामंजूर कर दी. कोर्ट ने बंबई उच्च न्यायालय का फैसला कायम रखा तथा धनगर एवं धनगड एक ही समाज होने का तर्क अमान्य किया. न्यायाधीश जे.के. माहेश्वरी तथा न्या. संजय करोल की खंडपीठ ने आदिवासी हक संरक्षण समिति की ओर से वकील रविंद्र अडसुरे के युक्तिवाद पश्चात अर्जी खारिज कर दी.
मराठा समाज को ओबीसी श्रेणी देने के लिए पूरे राज्य में आंदोलन शुरू रहते धनगर समाज को आरक्षण देने की मांग उठाइ गई थी. इस संंबंध में चार याचिकाए हाईकोर्ट में दायर की गई. संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार 1950 में अनुसूचित जनजाति की सूची तैयार की गई थी. 1976 तक इस सूची में संशोधन किए गये थे. सूची में 36 वें नंबर पर धनगड जनजाति का समावेश किया गया. राज्य के धनगर समाज का सूची में समावेश नहीं हैं. राज्य में धनगड की बजाय धनगर है. इस समाज को अनुसूचित जाति में शामिल कर आरक्षण देने का मुददा उच्च न्यायालय में उपस्थित किया गया.
उच्च न्यायालय में न्या. गौतम पटेल और न्या. कमल खट्टा की खंडपीठ के सामने 8-10 दिन सदीर्घ सुनवाई हुई. खंडपीठ में गत 16 फरवरी को फैसला सुना दिया. धनगड समाज का आरक्षण धनगर समाज को नहीं दिया जा सकता, यह स्पष्ट कर दिया. जिसके विरोध ें में इरबा कोनापुरे ने सर्वोच्च न्यायालय का द्बार खटखटाया था.