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मंदिरों को मॉल व तीर्थक्षेत्रों को पर्यटन स्थल न बनाये

प्रथम हिंदू राष्ट्र संसद में आदर्श मंदिर व्यवस्थापन पाठ्यक्रम की उठी मांग

* गोवा में चल रहा है दसवां अ. भा. हिंदू राष्ट्र अधिवेशन
पणजी/दि.14- प्राचीन समय में अंगकोरवाट व हंपी जैसे स्थानों पर भव्य मंदिरों का निर्माण करनेवाले राजाओं व महाराजाओं द्वारा उत्तम व्यवस्थापन करते हुए इन मंदिरों के जरिये गौशाला, अन्नछत्र, धर्मशाला व शिक्षा केंद्र चलाये जाते थे. जिनके माध्यम से समाज को बहुमूल्य सहायता की जाती थी और इसी वजह के चलते पूरा हिंदू समाज मंदिरों के साथ जुडा रहता था. किंतु अब मंदिरों का इतना अधिक व्यापारीकरण हो गया है कि, वे मंदिर की बजाय शॉपिंग मॉल बनने लगे है. साथ ही तीर्थक्षेत्रों को भी विकास के नाम पर पर्यटन स्थल बनाया जा रहा है. जिसे रोकना बेहद आवश्यक है. ऐसे में सभी मंदिरों के विश्वस्तों व पुरोहितों द्वारा मंदिरों का आदर्श व्यवस्थापन किया जाना चाहिए. जिसे साध्य करने हेतु ‘मंदिरों का आदर्श व्यवस्थापन’ (दि टेम्पल मैनेजमेंट) नामक पाठ्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए. इस आशय का प्रस्ताव प्रथम हिंदू राष्ट्र संसद में रखा गया. जिसे सर्वसम्मति के साथ पारित किया गया.
बता देें कि, हिंदू जनजागृति समिती द्वारा गोवा राज्य के कोंडा में दसवें अखिल भारतीय हिंदू राष्ट्र अधिवेशन का आयोजन किया गया है. जिसमें पहली बार हिंदू राष्ट्र संसद आयोजीत की जा रही है. इस अधिवेशन के दूसरे दिन मंदिरों के सुव्यवस्थापन विषय पर विविध मंदिरों के विश्वस्तों, अधिवक्ताओं तथा हिंदुत्वनिष्ठों द्वारा अध्ययनपूर्ण विचार व्यक्त किये गये.
अधिवेशन के दूसरे दिन आयोजीत संसद में सभापति के तौर पर ओडिशा के अनिल घीर, उपसभापति के तौर पर हिंदू जनजागृति समिती के धर्म प्रचारक निलेश सिंघपाल तथा सचिव के तौर पर आनंद जखोटिया ने कामकाज संभाला. करीब ढाई घंटे तक चली प्रदीर्घ चर्चा के पश्चात इस हिंदू राष्ट्र संसद में हिंदू मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त कर भक्तों के स्वाधीन करने मंदिर के कामकाज हेतु केवल हिंदुओं की ही नियुक्ति करने तथा मंदिर परिसर में मांस व मदिरा की बिक्री तथा अन्य धर्मों के प्रसार पर प्रतिबंध लाये जाने का प्रस्ताव पारित किया गया. इस अवसर पर अलग-अलग हिंदू संस्थाओं, संगठनों एवं धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में मंदिरों का व्यवस्थापन किस तरह से किया जाता है, इसके संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किये.

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