एक साल से ‘उन’ 25 मृतकों के परिजन कर रहे मुआवजा मिलने की प्रतिक्षा
समृद्धि एक्सप्रेस वे पर सालभर पहले लक्झरी बस हुई थी जलकर खाक
* बस में फंसे 25 यात्रियों की जिंदा जलकर हुई थी मौत
* सरकार ने 5-5 लाख रुपए का मुआवजा देने की घोषणा की थी
बुलढाणा/दि.2 – आज से ठीक एक वर्ष पहले समृद्धि एक्सप्रेस वे पर नागपुर से पुणे की ओर जा रही विदर्भ ट्रैवल्स की बस एक भीषण हादसे का शिकार हुई थी और इस बस में लगी आग में जिंदा जलकर बस मे ंसवार 25 यात्रियों की मौत हो गई थी. उस समय मारे गये 25 यात्रियों के परिजनों को 5-5 लाख रुपए की मुआवजा राशि देने की घोषणा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा की गई थी. लेकिन आज एक वर्ष बीत जाने के बावजूद भी संबंधित परिजनों को मुआवजे की राशि प्राप्त नहीं हुई है और वे आज भी मुआवजा मिलने की प्रतिक्षा कर रहे है.
बता दें कि, 30 जून 2023 की रात विदर्भ ट्रैवल्स की लक्झरी बस नागपुर से पुणे जाने हेतु रवाना हुई थी. समृद्धि महामार्ग से गुजरते वक्त बुलढाणा जिले में सिंदखेड राजा के निकट पिंपलखुटा परिसर से होकर गुजरते वक्त 1 जुलाई को तडके 1.30 बजे यह बस अचानक ही सडक पर पल्टी खा गई. इस हादसे के बाद बस का डीजल टैंक फट गया और बस में आग लगी. जिसके चलते बस में सवार 25 यात्री जिंदा जलकर कोयले में तब्दील हो गये. मृतकों में एक छोटी बच्ची सहित 15 महिलाओं व 10 पुरुषों का समावेश था. वहीं बस चालक शेख दानिश शेख इस्माइल सहित कैबिन में बैठे कुछ लोगों ने बस से बाहर छलांग लगाकर अपनी जान बचाई थी. पश्चात हादसे की जानकारी मिलने पर दुर्घटना स्थल का दौरा करने पहुंचे राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख रुपए का मुआवजा देने की घोषणा की थी. परंतु एक भी परिवार को आज तक मुआवजे की राशि नहीं मिली है.
वहीं दूसरी ओर मृतकों के परिजनों को मुआवजा व इंसाफ दिलाने हेतु ‘जस्टीस फॉर 25 पिपल ग्रुप’ की स्थापना की गई. जिसके बैनलतले शीतकालीन अधिवेशन से पहले मृतकों के परिजनों ने 7 दिसंबर 2023 से वर्धा जिलाधीश कार्यालय के समक्ष अनशन करना शुरु किया गया, जो करीब 104 दिनों तक चलता रहा. साथ ही विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष विजय वडेट्टीवार ने भी शीतकालीन सत्र में यह मुद्दा उठाया था. परंतु इसके बावजूद भी न्याय नहीं मिलने के चलते इस ग्रुप के चंद्रशेखर मडावी ने विगत 26 जनवरी को जिलाधीश कार्यालय के समक्ष फांसी लगाने का प्रयास किया था. जिनके खिलाफ अपराध दर्ज किया गया था. इस दौरान आंदोलन का दबाव बढते रहने के चलते परिवहन विभाग ने 31 जनवरी को एसआईटी स्थापित की तथा 17 अप्रैल को इस मामले की जांच की गई. परंतु जांच की रिपोर्ट ही पेश नहीं हुई. वहीं इससे पहले मार्च माह के दौरान लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हो जाने के चलते मृतकों के परिजनों पर आंदोलन नहीं करने हेतु दबाव बनाया गया. जिसके चलते मृतकों के परिजनों को अपना अनशन स्थगित करना पडा.
* बेटे के मृत्यु पत्र हेतु बुजुर्ग मां-बाप काट रहे चक्कर
एक वर्ष पहले घटित हादसे में नागपुर के कौस्तुभ काले की मौत हुई थी. जिसके 80 वर्षीय बुढे माता-पिता अपने बेटे का मृत्यु प्रमाणपत्र प्राप्त करने हेतु कई बार बुलढाणा जिले के चक्कर काट चुके है. परंतु उन्हें अब तक कौस्तुभ काले का मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं दिया गया है. क्योंकि बुलढाणा पुलिस ने अब तक डिटेल एक्सीडेंटल रिपोर्ट भी पेश नहीं किये है. इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि, उस हादसे में अपने प्रियजनों को खो चुके परिजनों के प्रति सरकार एवं प्रशासन द्वारा कितनी संवेदनहीनता दिखाई जा रही है.
* पोर्श मामले जैसी तत्परता क्यों नहीं?
विशेष उल्लेखनीय है कि, विगत मई माह के दौरान पुणे में एक घटित पोर्श कार हादसा मामले के दो मृतकों के परिजनों को सरकार द्वारा तुरंत ही 10-10 लाख रुपयों की मदद प्रदान की गई. परंतु समृद्धि महामार्ग पर भीषण हादसे को घटित हुए 365 दिनों यानि एक साल का समय बीत चुका है. परंतु इसके बावजूद भी राज्य सरकार द्वारा खुद अपनी भी घोषणा पर अमल नहीं किया गया है.
* कई परिवारों का सहारा छिना, अब जिंदगी को लेकर चल रहा संघर्ष
एक वर्ष पूर्व घटित हादसे में मारी गई तेजस्वीनी राउत पुणे में नौकरी करते थे. जिसके भरोसे पूरा घर चलता था. तेजस्वीनी की मौत के बाद उसकी मां पर लोगों के घर जाकर बर्तन-कपडे धोने की नौबत आ पडी है, ताकि वह अपना और अपने गतिमंद बेटे का भरण पोषण कर सके. इसी तरह उस हादसे का शिकार हुए प्रथमेश खोडे की मां भी अब निराधार जीवन जी रही है. इसी तरह एकलौता बेटा रहने वाले तेजस पोकले की मौत के बाद उसके माता-पिता भी बेसहारा हो गये है. उस हादसे में मारा गया करण बुदबावरे अनुकंपा तत्व पर डाक विभाग में नौकरी पर लगा ही था और कुछ ही समय बाद उस हादसे का शिकार हुआ. करण की मां बुजुर्ग रहने के चलते उन्हें सरकारी सेवा में नहीं लिया जा सकता. जिसके चलते वह बुजुर्ग महिला मजदूरी का काम करते हुए एकांकी जीवन जी रही है. उसके अलावा अपने परिवार का कमाउ सदस्य रहने वाले सुशिल खेलकर की मौत के बाद उसके माता-पिता की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से डांवाडोल हो चुकी है. लगभग यह स्थिति उस हादसे का शिकार हुई जोया शेख नामक युवती के परिवार की भी है. यदि सरकार द्वारा इन सभी परिवारों को मुआवजे के तौर पर आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है, तो उनके जीवन में रहने वाला संघर्ष कुछ हद तक कम हो सकता है.