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बांग्लादेशियों व रोहिंग्याओं के खिलाफ सरकार का बडा कदम

फर्जी जन्म प्रमाणपत्र रखनेवालों के खिलाफ अब कडे नियम

* पर्याप्त सबूत नहीं रहने पर होगी फौजदारी कार्रवाई
मुंबई/दि. 12 – विगत कुछ माह से महाराष्ट्र सहित देशभर में अवैध तरीके से घूसपैट करते हुए रहनेवाले बांग्लादेशियों व रोहिंग्याओं की संख्या बढती जा रही है. जिनके खिलाफ कडी कार्रवाई किए जाने की मांग भी लगातार उठाई जा रही है. जिसे ध्यान में रखते हुए अब महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य में अवैध तरीके से रहनेवाले बांग्लादेशियों व रोहिंग्याओं के खिलाफ एक बेहद महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है. जिसके तहत जन्म-मृत्यु पंजीयन अधिनियम में अभूतपूर्व बदलाव किए गए. ताकि बांग्लादेशियों व रोहिंग्याओं को फर्जी दस्तावेजो के आधार पर सहज तरीके से जन्म प्रमाणपत्र हासिल करने से रोका जाए.
उल्लेखनीय है कि, कई बांग्लादेशी व रोहिंग्या नागरिक फर्जी जन्म प्रमाणपत्र हासिल करते हुए महाराष्ट्र में रह रहे है. ऐसे कुछ मामले हाल-फिलहाल के दिनों में सामने आए है. जिनपर प्रतिबंध लगाने हेतु राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जन्म-मृत्यु पंजीयन अधिनियम में अभूतपूर्व बदलाव करने का निर्णय लिया है. जिसके चलते अब जन्म अथवा मृत्यु होकर एक वर्ष से अधिक की कालावधि बित जाने के बाद यदि संबंधितों द्वारा प्रमाणपत्र हेतु आवेदन किया जाता है और यदि आवेदक के खिलाफ इसके लिए पर्याप्त व पुख्ता सबूत नहीं रहते है तो ऐसे आवेदक के खिलाफ सीधे फौजदारी कार्रवाई करने का निर्णय लिया गया है.
जन्म-मृत्यु पंजीयन अधिनियम 1969 के प्रावधानानुसार तथा महाराष्ट्र जन्म-मृत्यु पंजीयन नियम 2000 के अनुसार एक वर्ष से अधिक विलंब से जन्म-मृत्यु की जानकारी दर्ज करने की कार्यपद्धति निश्चित की गई है. इसके तहत जिस स्थान पर जन्म हुआ है उस स्थान की जानकारी की पडताल करते हुए प्रमाणपत्र दिया जाएगा. इसके लिए ग्रामसेवक, जन्म-मृत्यु निबंधक, तहसीलदार, उपविभागीय अधिकारी व जिलाधीश द्वारा किस पद्धति के कामकाज किया जाए यह बतानेवाली कार्यपद्धति निश्चित की जाएगी. यदि किसी भी जानकारी में कोई त्रुटी पाई जाती है अथवा आवेदन की कोई जानकारी गलत मिलती है तो ग्रामसेवक से लेकर मनपा के जन्म-मृत्यु निबंधक तक सभी को कारण सहित जन्म-मृत्यु अनुपलब्धता प्रमाणपत्र देना होगा. इस संबंधित आवेदन की जांच पुलिस विभाग द्वारा की जाएगी और इसके लिए पुलिस का अभिप्राय अनिवार्य व बंधनकारक किया गया है. साथ ही जन्म-मृत्यु की जानकारी दर्ज करने से संबंधित मामले अर्धन्यायिक रहने के चलते ऐसे मामलो को बेहद सुक्ष्म तरीके से देखने का आदेश भी जारी किया गया है.

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