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एक सांसद वाले अजित पवार के 42 विधायक कैसे जीते?

अब मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने ईवीएम को लेकर जताया संदेह

* मनसे को पडे वोट प्रत्याशियों को नहीं मिलने की बात कही
मुंबई/दि. 30 – महाराष्ट्र में विधानसभा का चुनावी नतीजा घोषित होने के साथ ही एक अजीबोगरीब सन्नाटा पसर गया. जो अब तक जारी है, जबकि जो चुनाव जीतता है वह जमकर जल्लोष मनाता है, ऐसे में यह सवाल पूछा जाना बेहद जरुरी है कि, चुनाव के निपटते ही महाराष्ट्र में इतना सन्नाटा क्यों है. इस आशय का प्रतिपादन करते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे ने ईवीएम मशीन को लेकर भी अपना संदेह जताया और कहा कि, लोकसभा में अजित पवार गुटवाली राकांपा का महज एक सांसद चुना गया था वहीं विधानसभा में अजित पवार गुट के 42 विधायक चुने गए, ऐसा कैसे हुआ यह अपनेआप में संशोधन का विषय हो सकता है.
इसके साथ ही राज ठाकरे ने कुछ स्थानों पर हुए मतदान का उदाहरण देते हुए कहा कि, कई स्थानों पर मतदाताओं ने मनसे प्रत्याशियों के पक्ष में अच्छी-खासी वोटिंग की. लेकिन वह मतदान मनसे प्रत्याशियों के खाते में जमा ही नहीं हुआ. यदि इसी तरह से चुनाव होते रहे तो आगे चलकर चुनाव नहीं लडना ही सबसे बेहतर पर्याय रहेगा.
वरली में संपन्न मनसे के राज्यस्तरीय सम्मेलन में राज ठाकरे ने कहा कि, कांग्रेस नेता बालासाहब थोरात लगातार 7 बार विधायक चुने गए और हर बार 70 से 80 हजार वोटों की लीड से चुनाव जीते. जबकि उन्हें इस बार के चुनाव में 10 हजार वोटों की लीड से हार का सामना करना पडा. इसी तरह मनसे प्रत्याशी राजू पाटिल को उनके गांव के 1400 मतदाताओं में से एक भी मतदाता का वोट नहीं मिला. साथ ही मराठवाडा में 5500 वोट अपने पास रखनेवाले नगरसेवक को विधानसभा के चुनाव में महज ढाई हजार वोट ही मिले. इसके अलावा इतने वर्षों से राजनीति करनेवाले शरद पवार की पार्टी को महज 10 सीटों पर जीत मिलती है, जबकि लोकसभा चुनाव में शरद पवार गुटवाली राकांपा के 8 सांसद चुने गए थे. साथ ही चार माह पूर्व हुए लोकसभा चुनाव में राज्य से सर्वाधिक 13 संसदीय क्षेत्रों में जीत हासिल करनेवाली कांग्रेस के विधानसभा चुनाव में केवल 15 विधायक चुनकर आते है. वहीं लोकसभा में महज एक सीट पर जीत हासिल करनेवाले अजित पवार की पार्टी के 42 विधायक चुने गए. यह सब समझ से परे हैं. यही वजह है कि, अब समूचे महाराष्ट्र द्वारा ईवीएम मशीन से निकले चुनावी नतीजों पर संदेह जताया जा रहा है. ऐसे में सरकार एवं निर्वाचन आयोग ने जनभावना को गंभीरता से लेना ही चाहिए.

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