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तेज धूप वाले मराठवाड़ा, विदर्भ में अज्ञात कारणों से होती है किडनी की बीमारी

श्रमजीवियों को सीकेडीयू बीमारी का धोखा ः हवामान बदलने का परिणाम ः देरी से निदान के कारण सीधे डायलिसिस की नौबत

औरंगाबाद/दि.12– मराठवाड़ा- विदर्भ समान गर्म भागों मे अज्ञात कारणों से होेने वाली किडनी की बीमारी का धोखा बढ़ा है. घंटों कड़ी धूप में काम करते समय पानी न पीने के कारण क्रॉनिक किडनी डिसिसेज ऑॅफ अननोन इटिओलॉजी यानि सीकेडीयू नामक बीमारी श्रम जीवियों में बढ़ते दिखाई दे रही है. मधुमेह, किडनी स्टोन, स्थूलता एवं रक्तदाब यह मूत्रपिंड के विकार हेतु रिस्क फेक्टर होता है. इसके अलावा होने वाली किडनी की बीमारी को सीकेडीयू कहा जाता है. 1999 में इसका विश्व का पहला मरीज पाया गया. विशिष्ट लक्षण व कारण ज्ञात न होने से सीकेडीयू गंभीर होने की बात औरंगाबाद के एमजीएम रुग्णालय के नॅफ्रोलॉजी विभाग प्रमुख प्रा. डॉ. सुधीर कुलकर्णी ने बताई.
* किड़नी बीमारी के 560 मरीजों में से 40% मरीजों को सीकेडीयू बीमारी
मराठवाड़ा, विदर्भ का उष्ण तापमान सीकेडीयू के लिए पोषक साबित हो रहा है. इसे हीट स्ट्रेस नेफ्रोपॅथी भी कहा जाता है. एमजीएम अस्पताल ने 2014-15 में किडनी की बीमारी वाले 560 मरीजों का अभ्यास किया. इनमें 40 प्रतिशत मरीजों को सीकेडीयू होने की बात सामने आयी. उनकी उम्र 21 से 40 के दरमियान थी. अधिकांश मरीज चौथे-पांचवें स्टेज पर दाखल हुए. उनकी किडनी का आकार संकुचित हो गया था. इनमें 90 प्रतिशत किसान, खेत मजदूर, 45 प्रतिशत अशिक्षित, 39 प्रतिशत तंबाखू, 15 प्रतिशत मद्य सेवन करने वाले एवं अधिकांश कुएं या बोअर का पानी पीने वाले थे. किडनी के मरीज को थकावट, रक्ताक्षय की शिकायत वाले मरीजों की पेशाब में प्रोटीन व युरिक एसिड पाया जाता है. क्रिएटनिन का सामान्य प्रमाण 0.7 से 1.3 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर होता है. सीकेडीयू के मरीज में वह 8-10 होता है. इसलिए डायलिसिस करना पड़ता है.
* कारण – पानी कम पीना, रासायनिक खाद
इसमें मरीज पानी कम पीता है. मीठे पेय का सेवन करते है. अधिक मद्यसेवक करते है. रासायनिक खाद, किटकनाशक की बोतल, कॅडमियम, आर्सेनिक, फ्लोराइड यह भारी धातु भूजल को दूषित करते हैं. पीने के पानी के साथ शरीर में जाते है, ग्लायफॉस्फेट व सिलिका भी धोखादायक होता है.
* बचाव- साफ पानी
धोखा टालने के लिए काम के मर्यादित घंटे, हर घंटे बाद साफ पानी पीना, 2 घंटे में विश्रांति लेकर छांव में बैठना फायदेमंद होता है.

मरीजों की संख्या में वृद्धि ः 560 मरीजों का अभ्यास
औरंगाबाद 101 (40%)
जालना    34 (60%)
बीड       15 (25%)
परभणी  15 (45%)
नांदेड़     12 (36%)
विगत 5 वर्षों में मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. 2019 में प्रति वर्ष 100 से अधिक मरीज पाये जा रहे हैं. इसके अतिरिक्त पंजीकृत न होने वाले मरीजों की संख्या अधिक है.

आंध्र में विधवाओं का गांव ः 90% पुरुषों को किडनी की बीमारी, सैकड़ों बली
श्रीलंका, निकारगुवा, इजिप्ता के अल-मिनीया प्रांत में धूप में काम करने वाले कामगारों को यह बीमारी होने की बात सामने आयी है. विश्व स्वास्थ्य संगठना ने इन भागों को सीकेडीयू के लिए हाय रिस्क झोन घोषित किया है. तमिलनाडू के उड्डानम व आंध्र के श्रीकाकुलम गांवों को नॅफ्रोपॅथी विलेज के रुप में घोषित किया गया. इस गांवों में 90 प्रतिशत पुरुषों को किडनी की बीमारी होने से उनकी मृत्यु हुई है. इन गांवों को विधवाओं के गांव के रुप में पहचाना जाता है.
* बड़ी संख्या में सीकेडीयू के मरीज
हवामान बदलने के असर के रुप में सीकेडीयू की ओर देखा जा सकेगा. अति गर्म भागों में सर्वाधिक मरीज हैं. लक्षण स्पष्ट न होने से मरीज देरी से दाखल होते हैं. मराठवाड़ा सहित राज्य के अन्य भागों में भी मरीजों की संख्या बढ़ने के साथ ही इस पर और अधिक संशोधन करना जरुरी है.
– प्रा. डॉ. सुधीर कुलकर्णी,
नॅफ्रोलॉजी विभाग प्रमुख, एमजीएम मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल

 

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