एक ही हैं मराठा और कुणबी, निजाम के गैजेटीयर में है दर्ज
सन 1884 में औरंगाबाद में थे 2,88,824 कुणबी
छ. संभाजी नगर/दि.14 – मराठा और कुणबी दो अलग-अलग समाज नहीं, बल्कि एक ही है. निजाम काल में मराठा रहने वाले लोगों को ही कुणबी कहा जाता था और उन्हें कई तरह की सहुलियत भी मिलती थी. साथ ही निजामकाल में कुणबी रहने वाला समाज ही मराठा माना जाता था. इसे लेकर सन 1884 का गैजेटीयर उपलब्ध है. उस गैजेटीयर के ई-एडिशन में मराठा व कुणबी के एक ही रहने वाले उल्लेख को वर्ष 2006 में हटाया गया. परंतु मराठा व कुणबी के एक ही रहने से संबंधित कई उल्लेख इस गैजेट में पाए जाते है.
मराठा आरक्षण न्याय अधिकार परिषद के अध्यक्ष प्रा. रवींद्र बनसोड ने पत्रकार परिषद से संंबंधित जानकारी दी. इससे संबंधित जानकारी देते हुए कहा कि, निजामकाल से वास्ता रखने वाले ‘गैजेटीयर ऑफ द निजाम्स डोमेंसियन्स औरंगाबाद डिस्ट्रीक्ट – 1884’ के अनुसार अकेले औरंगाबाद जिले में ही कुणबी समाज की जनसंख्या 2 लाख 88 हजार 884 थी, जो कुल जनसंख्या की तुलना में 40.63 थी. यह कुणबी समाज ही हकीकत में मराठा समाज है.
* सन 1881 की जनगणना में भी एक ही जाति दर्ज
मराठा कन्ट्री, मराठा बुक्स व मराठा ब्राह्मण ऐसा उल्लेख भी गैजेटीयर में है. कुणबी शब्द का उल्लेख आज की मराठा जाति के लिए ही रहने की बात विविध संदर्भों से स्पष्ट होती है. ऐसा भी प्रा. बनसोड ने बताया.
– इस संदर्भ में डॉ. रमेश सूर्यवंशी ने संशोधन किया है. जिनके पास इस गैजेट की मूल प्रतिलिपी है. जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि, सन 1881 की जनगणना में भी कुणबी व मराठा समाज को एक माना गया है.
* मराठा व कुणबी अलग-अलग नहीं
– जलगांव के वकील ने दिए 50 साल के सबूत
वहीं दूसरी ओर जलगांव निवासी वरिष्ठ विधिज्ञ गोपाल जलमकर ने गैजेट व अदालती निर्णय का हवाला देते हुए बताया कि, सन 1881 से 1931 तक 50 वर्ष के गैजेट में मराठा समाज के कुणबी रहने का स्पष्ट उल्लेख है. इसके अलावा वर्ष 1881 की जनगणना में मराठाओं का कुणबी में ही समावेश करते हुए जनगणना की गई थी. जिससे स्पष्ट होता है कि, मराठा व कुणबी दो अलग-अलग जातियां नहीं है, बल्कि मराठा व कुणबी एक ही है.
एड. जलमकर द्बारा दिए गए सबूतों के मुताबिक बॉम्बे गैजेटीयर के खंड 19 व पृष्ठ 75 के मुताबिक समूचे सातारा जिले में मराठा समाज रहने की बात कहीं गई है. जिन्हें वर्ष 1981 की जनगणना मेें कुणबी अंतर्गत शामिल किया गया था. इसके अलावा बॉम्बे गैजेटीयर, पुणे खंड – 18 के भाग-1 में कुणबी शब्द में कुणबी व मराठा ऐसे दो मुख्य वर्ग शामिल है. जिसके अलावा मुंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद खंडपीठ ने भी अपने निर्णय में स्पष्ट किया था कि, खेतीबाडी करने वाले मराठा यानि कुणबी होते है. इन सबके साथ ही काशीराव बापूजी देशमुख द्बारा सन 1927 में लिखे गए ‘क्षत्रियों का इतिहास’ नामक ऐतिहासिक ग्रंथ में मराठा व कुणबी एक ही रहने से संबंधित कई संदर्भ दिए गए है. जिसमें वर्धा के सत्र न्यायालय द्बारा दिए गए आदेश का भी संदर्भ है. इसके साथ ही महात्मा फुले द्बारा वर्ष 1883 में लिखी गई ‘शेतकरियों का आसूड’ नामक किताब में दर्ज जानकारी के मुताबिक भी मराठा यह कुणबी ही रहने की बात साबित होती है.
* मराठा आंदोलन पर त्वरित योग्य कदम उठाएं
– हाईकोर्ट ने दिए राज्य सरकार को निर्देश
प्रत्येक व्यक्ति को शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन करने का अधिकार है. परंतु ऐसे आंदोलन की वजह से यदि राज्य में कानून व व्यवस्था की स्थिति बिगडती है और शांति भंग होती है, तो राज्य सरकार ने सामंजस्यपूर्ण ढंग से योग्य कदम उठाने चाहिए. साथ ही अनशनकर्ता को आवश्यक वैद्यकीय मदद भी उपलब्ध करानी चाहिए. इस आशय का निर्देश मुंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति देवेंद्रकुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति अरुण पेडनेकर की खंडपीठ ने गत रोज राज्य सरकार को दिए.
मराठा आरक्षण को लेकर किए जा रहे आंदोलन के चलते कानून व व्यवस्था की स्थिति के लिए खतरा पैदा हो गया है. जिसे देखते हुए राज्य सरकार को ठोस कदम उठाने हेतु निर्देश दिए जाए. इस आशय की याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई थी. जिसे सुनवाई हेतु स्वीकार करने के साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश जारी किए.
* न मुख्यमंत्री पहुंचे, न प्रतिनिधि मंडल आया
मराठा आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटिल से मिलने हेतु मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे व उपमुख्यमंत्री अजित पवार सहित अन्य कुछ मंत्रियों के आने की बात कहीं गई थी. जिसके चलते अंतरवाली सराटी गांव में पुलिस सहित स्वयंसेवकों की फौज भी तैनात कर दी गई थी. परंतु अनशन स्थल पर न मुख्यमंत्री पहुंचे, न ही कोई सरकारी प्रतिनिधि मंडल आया. ऐसे में अंतरवाली सराटी गांव के लोग पूरा दिन मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री सहित प्रतिनिधि मंडल के आने का इंतजार ही करते रहे. हालांकि पूर्व मंत्री अर्जुत खोतकर ने बुधवार की दोपहर मनोज जरांगे पाटिल के साथ चर्चा की.