मोदी की हैट्रीक या ‘इंडिया’ को बढत?
चुनावी नतीजों को लेकर धडकनें तेज, सभी का बहुत कुछ लगा है दांव पर
* सातवें चरण का मतदान निपटते ही एग्झिट पोल पर टिकी सभी की निगाहें
* महाराष्ट्र में शिवसेना व राकांपा के दोनों धडों की स्वीकार्यता पर भी नजर
* छोटे दलों के प्रदर्शन को लेकर भी उत्सुकता, राजनीतिक कयासबाजी का दौर हुआ तेज
नई दिल्ली/दि.1 – लोकसभा चुनाव अब अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है. एनडीए 400 पार का नारा देकर चुनाव मैदान में उतरा है, तो वहीं विपक्षी इंडिया ब्लॉक को गठबंधन का सहारा है. वहीं अब लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण की वोटिंग के बीच एग्जिट पोल का इंतजार है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 400 पारा का नारा देकर चुनाव मैदान में उतरा है, तो कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्षी इंडिया ब्लॉक को गठबंधन का सहारा है. बीजेपी ने इस बार अकेले 370 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. पार्टी का टारगेट गठबंधन सहयोगियों के साथ 400 से अधिक सीटें जीतने का है. दूसरी तरफ, विपक्षी पार्टियों को गठबंधन के सहारे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है.
इस बार केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली से लेकर हरियाणा और गुजरात तक आम आदमी पार्टी और कांग्रेस जैसे धुर विरोधी गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे हैं. सातवें और अंतिम चरण का मतदान समाप्त होने के बाद अलग-अलग एजेंसियों के एग्जिट पोल नतीजे भी सामने आ जाएंगे. एग्जिट पोल नतीजों में ये अनुमान होंगे कि किस दल को कितनी सीटें मिल सकती हैं. एग्जिट पोल के अनुमानों से पहले आइए ये जान लेते हैं कि इस बार के चुनाव में किसका क्या दांव पर है?
‘अबकी बार, 400 पार’ का नारा देकर चुनाव मैदान में उतरी बीजेपी के सामने 2019 के मुकाबले इस बार अपनी सीटें बढ़ाने की चुनौती है. 2014 के चुनाव में बीजेपी को 31.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 282 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में पार्टी ने अपने पिछले प्रदर्शन में सुधार करते हुए 37 फीसदी से अधिक वोट शेयर के साथ 303 सीटें जीतीं. पार्टी की स्थापना के समय से ही लगभग हर चुनाव के मेनिफेस्टो में शामिल रहे राम मंदिर और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का वादा पूरा कर चुनाव मैदान में उतरी बीजेपी के सामने वोट शेयर और सीटें बढ़ने का ट्रेंड बरकरार रखना बड़ी चुनौती होगी.
उधर कांग्रेस का प्रदर्शन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में खराब रहा है. 2014 में 44 सीटों पर सिमटी कांग्रेस 2019 में पूरा जोर लगाने के बाद 52 सीटों तक पहुंची. लेकिन पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी जैसी परंपरागत सीट से चुनाव हार गए थे. 2019 चुनाव के बाद से अब तक अलग-अलग राज्यों में कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं. कांग्रेस को इस बार यूपी से लेकर दिल्ली और गुजरात तक, गठबंधन सहयोगियों के सहारे बेहतर प्रदर्शन की आस है.
इधर महाराष्ट्र में शिवसेना पर कब्जे की जंग में चुनाव आयोग ने फैसला एकनाथ शिंदे के पक्ष में सुनाया था. शिवसेना के नाम और निशान पर चुनाव आयोग का फैसला पक्ष में आया लेकिन जनता की अदालत का फैसला किसके पक्ष में आता है, ये इन चुनाव नतीजों से पता चलेगा. शिंदे की पार्टी एनडीए में है. उद्धव की शिवसेना (यूबीटी) कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी के साथ विपक्षी गठबंधन में है. दोनों ही दलों की ओर से चुनाव प्रचार के दौरान तल्ख जुबानी जंग देखने को मिली. उद्धव की पार्टी के तमाम नेता शिंदे को गद्दार बताते रहे. शिंदे और उनकी पार्टी के नेताओं के निशाने पर भी उद्धव और उनकी पार्टी ही रही. महाराष्ट्र की कई लोकसभा सीटों पर मुख्य मुकाबला इन दोनों दलों के बीच ही है. ऐसे में इस चुनाव को जनता की अदालत में असली शिवसेना की लड़ाई के रूप में भी देखा जा रहा है. शिवसेना का कोर वोटर शिंदे या उद्धव, किसके साथ जाता है? ये देखने वाली बात होगी.
साथ ही साथ महाराष्ट्र में शिवसेना के बाद शरद पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को भी टूट का सामना करना पड़ा था. अजित पवार ने एनसीपी के दो-तिहाई विधायकों के समर्थन से बगावत कर शिंदे सरकार का समर्थन कर दिया था. एनसीपी पर कब्जे की जंग चुनाव आयोग की चौखट तक भी पहुंची और आयोग से फैसला अजित के पक्ष में आया. शरद पवार ने अपनी ही बनाई पार्टी का नाम निशान गंवाने के बाद एनसीपी (शरद पवार) पार्टी बनाकर उम्मीदवार उतारे हैं. ये चुनाव नतीजे एनसीपी किसकी, इसे लेकर जनादेश के रूप में भी देखे जा रहे हैं.