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राज्य की पारिवारिक अदालतो में प्रति वर्ष 25 हजार से अधिक मुकदमे

मुंबई./दि. 18 – बदलते दौर व परिवेश के बीच आर्थिक व पारिवारिक वजहो को लेकर होनेवाले विवाद अब सीधे अदालतो में पहुंचने लगे है. विशेष तौर पर महानगरो में इसका प्रमाण काफी अधिक बढ गया है. केंद्रिय विधि व न्याय विभाग के आंकडो के मुताबिक राज्य में सन 2021 से 2023 तक तीन वर्षों के दौरान प्रति वर्ष पारिवारिक अदालतो में दायर होनेवाले मुकदमो की संख्या 29 से 38 हजार के बीच रही. जिसे देखते हुए सवाल पूछा जा सकता है कि, कहीं परिवारो को बांधकर रखनेवाले रिश्ते व नातो की पकड को ढीली नहीं हो रही.
बता दे कि, वैवाहिक व पारिवारिक विवादो का आपसी सामंजस्य के साथ निपटारा करने हेतु समूचे देशभर में पारिवारिक अदालतो की स्थापना की गई थी. पारिवारिक अदालत अधिनियम की धारा 3 (1) (अ) के अंतर्गत प्रत्येक राज्य के लिए पारिवारिक न्यायालय की स्थापना करना अनिवार्य है. देश में ऐसे न्यायालयो की संख्या 812 है. तथा महाराष्ट्र में 51 पारिवारिक न्यायालय है. मौजूदा दौर में बदलती जीवनशैली व भागदौड भरी जिंदगी के बीच परिवारो में कभी आर्थिक वजहो को लेकर तो कभी व्यक्तिगत कारणो के चलते तनाव एवं विवाद वाली स्थिति पैदा होती है. जिनका समय रहते समाधान नहीं होने पर ऐसे मामले पारिवारिक अदालतो में पहुंचते है. इससे पहले पारिवारिक मामलो को लेकर अदालत पहुंचनेवाले लोगों की संख्या काफी कम हुआ करती थी. लेकिन अब परिवार में छोट-मोटा विवाद होने पर भी लोकबाग विशेष कर पति-पत्नी सीधे अदालत में पहुंच जाते है.

* तीन साल में 20 लाख मुकदमे
देश के 812 पारिवारिक न्यायालयों में सन 2021 से 2023 के दौरान तीन वर्षो में 20 लाख 50 हजार से अधिक मुकदमे दर्ज हुए थे. वहीं इस दौरान महाराष्ट्र के 51 पारिवारिक न्यायालयों में 1 लाख 8 हजार से अधिक मुकदमे दर्ज हुए है. जिसके तहत सन 2021 में 29,321, 2022 में 40,186 व 2023 में 38,830 मुकदमे दर्ज हुए. साथ ही सन 2021 में 26,789, सन 2022 में 39,673 व 2023 में 40,399 मामलो का निपटारा भी किया गया. इसके अलावा शेष मामले फिलहाल अदालत के समक्ष विचाराधीन है.

* उल्लेखनीय है कि, नई पीढी में संयम काफी कम होता जा रहा. तथा स्वतंत्रता व समानता का अर्थ पढे-लिखे युवाओं द्वारा कुछ अलग तरीके से लगाया जाता है. ऐसे में युवाओं को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना आवश्यक है. यदि पति-पत्नी द्वारा आपसी सामंजस्य रखा जाए और दोनों ही एक-दूसरे का सम्मान करें तो निश्चित तौर पर कोई पारिवारिक विवाद अदालत तक नहीं पहुंचेगा, ऐसा कानूनविदो व समाज विज्ञानियों का मानना है.

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