किसी के कहने पर कोई अपनी जान नहीं देता
आत्महत्या के मामले को लेकर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण कथन
नई दिल्ली/दि. 2 – आत्महत्या से संबंधित एक मामले को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट ने बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. जिसमें कहा गया है कि, किसी को जान देने के लिए कहने का मतलब उसे आत्महत्या हेतु प्रवृत्त करना बिलकुल भी नहीं होता. इस मामले में कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दिलासा देते हुए उसके खिलाफ की गई कार्रवाई को रद्द कर दिया.
याचिकाकर्ता पर एक ज्युनियर पादरी को आत्महत्या हेतु प्रवृत्त करने का आरोप था. उक्त ज्युनियर पादरी एक शाला में मुख्याध्यापक के तौर पर कार्यरत था. उसके बावजूद उसके याचिकाकर्ता की पत्नी के साथ अवैध लैंगिक संबंध थे. इसके चलते 11 अक्तूबर 2019 की रात याचिकाकर्ता ने उस ज्युनियर पादरी को फोन लगाकर उसे खूब खरी-खोटी सुनाई. साथ ही अपनी पत्नी के साथ रहनेवाले संबंधो को लेकर जवाब पुछते हुए तैश में आकर कहा कि, तुम जैसे व्यक्ति ने फांसी लगाकर मर जाना चाहिए. इसके बाद उस ज्युनियर पादरी ने उसी रात 12 बजे के आसपास अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. इस मामले में जांच के बाद उडपी जिले की पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ ज्युनियर पादरी को आत्महत्या हेतु प्रवृत्त किए जाने का अपराधिक मामला दर्ज किया था. जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा कि, उसने केवल खुद तक पहुंची जानकारी के चलते उक्त पादरी को खरी-खोटी सुनाई थी. गुस्से में आकर मर जाने के लिए कहा था. लेकिन उसका उस पादरी को आत्महत्या हेतु उकसाने का कोई इरादा नही था.