महाराष्ट्र विधान परिषद में अब एक भी मुस्लिम विधायक नहीं
राज्य के इतिहास में पहला मौका
मुंबई /दि.11- महाराष्ट्र विधानसभा के कुछ विधायकों का कार्यकाल दो सप्ताह पहले खत्म हो गया था. जिनमें मुस्लिम समाज से आने वाले बाबा जानी दुर्रानी व वजाहत मिर्जा इन दो विधायकों का भी समावेश था. इन दोनों विधायकों का कार्यकाल खत्म होने के चलते विधान मंडल का वरिष्ठ सदन रहने वाले विधान परिषद में मुस्लिम विधायकों की संख्या शुन्य हो गई. साथ ही कल होने जा रहे विधान परिषद की 11 सीटों के चुनाव में भी कोई मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में नहीं है. जिसके चलते अगले कुछ माह तक विधान परिषद में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं रहने का दृश्य दिखाई देगा. विधान परिषद के इतिहास में यह पहला मौका है. जब सदन में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है.
विधान परिष में मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व खत्म होने के बाद विधानसभा में समाजवादी पार्टी के विधायक रइस शेख ने चिंता व्यक्त करते हुए महाविकास आघाडी के प्रमुख नेताओं को पत्र लिखा है. शेख द्वारा शिवसेना उबाठा के पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे, कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले व राकांपा शरद पवार गुट के प्रदेशाध्यक्ष जयंत पाटिल को लिखे गये पत्र में महाविकास आघाडी द्वारा मुस्लिम समाज को योग्य प्रतिनिधित्व दिये जाने की मांग की है. साथ ही शेख ने यह भी कहा कि, महाराष्ट्र विधान परिषद का 100 वर्ष लंबा इतिहास है और राज्य में 11.56 फीसद मुस्लिम जनसंख्या है. जिसके चलते आज तक वरिष्ठ सभागृह में मुस्लिम प्रतिनिधित्व हमेशा ही रहा है और अब महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य के वरिष्ठ सभागार में कोई मुस्लिम सदस्य नहीं रहना अपने आप में विचारणीय विषय है. इसके साथ ही शेख ने इस बात को लेकर भी रोष जताया कि, राज्य के 14 संसदीय क्षेत्रों में मुस्लिम बहुल मतदाता रहने के बावजूद भी लोकसभा चुनाव में महाविकास आघाडी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दिया था और आज तक महाराष्ट्र में मुस्लिम समाज से केवल 15 यानि 2.5 फीसद सांसद ही चुने गये है. जबकि महाराष्ट्र राज्य के अस्तित्व में आने के बाद से यानि सन 1960 से लेकर अब महाराष्ट्र से कुल 567 सांसद चुने गये. इसी तरह विधानसभा में भी इस समय गिनकर 10 मुस्लिम सदस्य है. जबकि राज्य की 11 करोड जनसंख्या में 10 में से 1 मुस्लिम मतदाता है. इसके बावजूद भी मुस्लिम समाज को विधानसभा में योग्य प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है और इस राज्य की विधान परिषद में एक भी मुस्लिम सदस्य नहीं है. जिसका सीधा मतलब है कि, राज्य के राजनीतिक दलों द्वारा मुस्लिमों की अनदेखी की जा रही है.