पॉपलेट को राज्य मछली का दर्जा
पॉपलेट संवर्धन हेतु राज्य सरकार का निर्णय
* मछूआरों में देखी जा रही खुशी की लहर
मुंबई/दि.5 – मछली खाने के शौकीन लोगों की पहली पसंद रहने वाले और अपने चमकदार स्वरुप की वजह से बेहद आकर्षक दिखाई देने वाले सरंगा यानि सिल्वर पॉपलेट मछली को राज्य मछली का अधिकृत दर्जा देने की घोषणा राज्य के मत्स्य व्यवसाय मंत्री सुधीर मुनगंटीवार द्बारा की गई है. इस घोषणा के चलते मत्स्य प्रेमियों के साथ-साथ उफनती समुद्री लहरों में जाकर पॉपलेट मछली पकडकर लाने वाले तटीय क्षेत्रों के मछूआरों में भी खुशी की लहर देखी जा रही है.
उल्लेखनीय है कि, विगत कुछ वर्षों के दौरान पॉपलेट मछली की संख्या लगातार घट रही है. ऐसे में पॉपलेट के अनियंत्रित व अशास्त्रीय मच्छीमारी पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही अन्य उपाय राज्य सरकार द्बारा किए जा रहे है. जिसकी जानकारी देते हुए मुंबई में मत्स्य पालन, पशु पालन व दुग्ध व्यवसाय क्षेत्र के किसान क्रेडिट कार्ड के संदर्भ में आयोजित राष्ट्रीय परिषद में मंत्री सुधीर मुनगंटीवार द्बारा उपरोक्त घोषणा की गई. ज्ञात रहे कि, देश के कई राज्यों में कुछ चुनिंदा मत्स्य प्रजातियों का संवर्धन करते हुए उनके उत्पादन को प्रोत्साहन देने हेतु संबंधित प्रजातियों की मछलियों को राज्य मत्स्य घोषित किया गया है. इसी तर्ज पर पॉपलेट मछली का जतन करने के साथ-साथ सागरी परिसंस्था का रक्षण करने, छोटी मछलियों की मच्छीमारी को नियंत्रित करने तथा शाश्वत मच्छीमारी को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से सिल्वर पॉपलेट को महाराष्ट्र का राज्य मत्स्य घोषित करने की मांग साथपाटी स्थित मच्छीमारी संघ की ओर से मंत्री सुधीर मुनगंटीवार से की गई थी. इस मांग को स्वीकार कर लिया गया है. ऐेसे में अब महाराष्ट्र के सागरी क्षेत्र में पॉपलेट मछली के अधिवास का संरक्षण करने हेतु अब विविध उपायों पर काम करना संभव होगा. इसके साथ ही सागरी पर्यावरण में संतुलन बनाए रखते हुए तटीय क्षेत्र में रहने वाले टोली समाजबंधुओं, मच्छीमारों की स्वयंसेवी संस्थाओं तथा सरकारी महकमों को सहभागी करते हुए सिल्वर पॉपलेट प्रजाती की मछलियों का संवर्धन करने हेतु वातावरण निर्मिति भी की जा सकेगी. ऐसा दावा विशेषज्ञों द्बारा किया गया है.
* 4 दशकों से घट रहा उत्पादन
पॉपलेट मछली की वैश्विक स्तर पर व्यवसायिक रुप से मांग अधिक रहने के चलते विगत कुछ दशकों से पॉपलेट मछली के अनियंत्रित व अशास्त्रीय मच्छीमारी का प्रमाण बढ गया है. जिसके तहत पॉपलेट मछली का पूर्ण विकास होने से पहले ही छोटी पॉपलेट मछली पकडने का चलन बढ गया है. जिसकी वजह से पॉपलेट मछली के वार्षिक उत्पादन में 50 फीसद से अधिक की कमी आयी है. वर्ष 1962 से 1976 के दौरान 8312 टन, वर्ष 1991 से 2000 के दौरान 6592 टन, वर्ष 2001 से 2010 के दौरान 4445 टन तथा वर्ष 2010 से 2018 के दौरान 4154 टन पॉपलेट मछली का औसत वार्षिक उत्पादन दर्ज किया गया.
* पॉपलेट की खासियत
पॉपलेट नामक मछली को महाराष्ट्र के पालघर तथा तटीय क्षेत्र में सरंगा के तौर पर पहचाना जाता है. स्थानीय बाजार में पॉपलेट मछली की अच्छी खासी मांग रहती है तथा व्यवसायिक तौर पर भी महाराष्ट्र से भी सबसे अधिक निर्यात पॉपलेट मछली का ही होता है. इसके अलावा तटीय क्षेत्रों की कोली व मच्छीमार संस्कृति में भी इस मछली का वैशिष्ट्यपूर्ण स्थान है.
बॉक्स
* पॉपलेट के विषय में….
– पॉपलेट यह महाराष्ट्र में सबसे अधिक निर्यात होने वाली मछली है.
– महाराष्ट्र में वर्ष 1980 से पॉपलेट मछली का उत्पादन घट रहा है.
– व्यापार पद्धति में हुए बदलाव का पॉपलेट उत्पादन पर विपरित असर
– मच्छीमारी की पद्धति में हुए बदलाव से नुकसान
– नये निर्णय से पॉपलेट का संवर्धन होने में मदद मिलने की उम्मीद