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महाराष्ट्र में चुनाव से पहले शिंदे सरकार की मुश्किल

लक्ष्मण हाके और वाघमारे की भूख हड़ताल का नौवां दिन

* ओबीसी आरक्षण को बचाने के लिए भूख हड़ताल पर बैठे हैं
* महाराष्ट्र सरकार के मंत्रियों ने लक्ष्मण हाके से की बातचीत
* लोकसभा चुनावों में बुरी तरह से हार गए थे हाके
मुंबई/दि.21 – महाराष्ट्र में आरक्षण की लड़ाई खत्म होती नहीं दिख रही है. ओबीसी आरक्षण बचाने के लिए भूख हड़ताल पर बैठे पिछड़ा वर्ग के कार्यकर्ता लक्ष्मण हाके अब राज्य में आरक्षण आंदोलन का नया चेहरा बनकर उभरे हैं. लक्ष्मण हाके साफ किया है कि वह तब तक अनशन खत्म नहीं करेंगे जब तक कि, सरकार यह आश्वासन नहीं देती है कि, वह ओबीसी के मौजूदा आरक्षण से कोई छेड़छाड़ नहीं करेगी. लक्ष्मण हाके अपने सहयोगी नवनाथ वाघमारे के साथ जालना में अनशन पर बैठै हैं. लक्ष्मण हाके से अभी तक वंचित बहुजन आघाडी के प्रमुख प्रकाश आंबेडकर के साथ महाराष्ट्र सरकार में मंत्री अतुल सावे, उदय सामंत और गिरीश महाजन तथा विधान परिषद के सदस्य गोपीचंद पडलकर मुलाकात कर चुके हैं. हाके जालना जिले के वाडीगोद्री गांव में भूख हड़ताल पर हैं. हाके ने 13 जून को अनशन शुरू किया था. इससे पहले महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन की अगुवाई करते मनोज जारांगे पाटिल सुर्खियों में आए थे. उनके मुंबई कूच से सरकार हिल गई थी. तब उनके साथ आ रहे जनसमूह को रोकने के लिए सीएम एकनाथ शिंदे खुद नवी मुंबई में पहुंचे थे.
* कौन हैं लक्ष्मण हाके?
कुछ समय पहले तक लक्ष्मण हाके पुणे के फेर फर्ग्यूसन कॉलेज में प्रोफेसर थे.अब वे राज्य सरकार से मांग कर रहे हैं कि मराठा समुदाय को शिक्षा और रोजगार में आरक्षण देने में ओबीसी कोटे को नहीं छुआ जाएगा. लक्ष्मण हाके धनगर समुदाय से आते हैं. वह सोलापुर के जुजारपुर गांव के रहने वाले हैं. मराठी साहित्य में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद वह शिक्षण के पेशे में चले गए थे. अभी तक लक्ष्मण हाके की पहचान एक ओबीसी कार्यकर्ता की थी, लेकिन उनकी भूख हड़ताल ने उन्हें ओबीसी नेता बना दिया है. महाराष्ट्र के सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के नेता उनसे भूख हड़ताल खत्म करने का आग्रह कर रहे हैं.
* पांच साल रहे प्रोफेसर
हाके ने पुणे के कॉलेज में 2003 में प्रोफेसर के तौर पर सेवा शुरू की थी, लेकिन पांच साल बाद उन्होंने इस पेशे को छोड़ दिया था. हाके की पत्नी विद्या पुणे के वीआईटी कॉलेज में प्रोफेसर हैं. प्रोफेसर बनने से पहले वह गन्ना कटाई का काम भी कर चुके हैं. जनवरी 2021 में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए ओबीसी आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने के बाद हेक को महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के नौ सदस्यों में से एक नियुक्त किया गया था. इसके बाद उन्होंने मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान करने के लिए एक रिपोर्ट तैयार करने में राज्य सरकार के हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए पिछले साल दिसंबर में दो अन्य सदस्यों के साथ पद से इस्तीफा दे दिया था.
* दो बार लड़ चुके हैं चुनाव
2019 लक्ष्मण हाके शिवसेना के शाहजी बापू पाटिल के खिलाफ बहुजन विकास अघाडी (बीवीए) उम्मीदवार के रूप में संगोला से चुनाव लड़े थे. उनकी राजनीति में इंट्री काफी नीरस रही थी. तब उन्हें सिर्फ 267 वोट हासिल किए थे. इसके बाद वह अगस्त 2022 में शिवसेना (यूबीटी) में शामिल हो गए थे, लेकिन हाल ही में संपन्न चुनावों में माढा लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़े थे. लक्ष्मण हाके को सिर्फ 5134 वोट मिले थे. चुनाव में उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी. वह छठवें नंबर पर रहे थे. इस सीट से शरद पवार की एनसीपी से लड़े धैर्यशील मोहिते पाटिल को जीत मिली थी.
* खुद बचाना होगा आरक्षण
लक्ष्मण हाके ने 2019 में समुदाय की आवाज को बुलंद करने के लिए ओबीसी संघर्ष सेना नामक एक संगठन बनाया और कई आंदोलन किए थे. तब हाके ने कहा था कि महात्मा फुले, छत्रपति शाहू महाराज और बाबासाहेब अंबेडकर आपके आरक्षण को बचाने के लिए वापस नहीं आएंगे. इसके खुद बचाना होगा. राजनीति के मैदान में दो शिकस्त झेल चुके. लक्ष्मण हाके अब अपनी भूख हड़ताल की वजह से सुर्खियों में आ गए हैं. हाके को राज्य के ओबीसी नेताओं का समर्थन मिल रहा है.

 

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