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राज्य पिछडा आयोग ने हाई कोर्ट में दायर किया हलफनामा

कहा- मराठा समाज में सर्वाधिक पिछडापन

* आरक्षण मिलना ही चाहिए
मुंबई/दि.2-महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एमएससीबीसी) ने आयोग ने मराठा समुदाय के लोगों को दिए गए आरक्षण को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के जवाब में हाई कोर्ट के निर्देशानुसार 26 जुलाई को एक हलफनामा दायर किया. दायर हलफनामा में महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एमएससीबीसी) ने बॉम्बे हाई कोर्ट से कहा है कि मराठा समुदाय के लोगों में, असाधारण पिछड़ापन है. पूरे समुदाय को नीची नजर से देखा जाता है, इसलिए वे शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण के हकदार हैं.
इसमें यह भी कहा गया कि है सामान्य वर्ग के लोगों की आत्महत्याओं के 10 वर्षों के आंकड़ों के अनुसार, खुदकुशी करने वाले 94 प्रतिशत से अधिक लोग मराठा समुदाय के थे. मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र उपाध्याय, न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदौस पूनीवाला की पूर्ण पीठ के समक्ष राज्य सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों और नौकरियों में मराठा समाज को 10 फीसदी आरक्षण देने वाले कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. याचिकाओं में महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम 2024 की संवैधानिकता को भी चुनौती दी गई है. याचिकाओं में महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को भी पार्टी बनाया गया है.सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सुनील शुक्रे का आयोग का प्रमुख बनाया गया है. आयोग ने मराठा समाज के लिए आरक्षण की सिफारिश की थी. याचिका में आयोग द्वारा आरक्षण को लेकर अपनाई गई कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए हैं.
* हलफनामें में ये कहा
हलाफनामे में आयोग ने कहा कि उसने परिणात्मक शोध अध्ययन किया. पिछली समितियों की रिपोर्टों और सिफारिशों का भी अध्ययन किया. आयोग ने कहा, मौजूदा प्रगतिशील आर्थिक परिस्थितियों के विपरीत, मराठों की दयनीय आर्थिक स्थिति उनके असामान्य और असाधारण आर्थिक पिछड़ेपन को दर्शाती है. आंकड़ों से पता चलता है कि मराठा समुदाय को मुख्यधारा के समाज के अंधेरे छोर पर धकेल दिया गया है. अब इसे किसी भी वास्तविक अर्थ में समाज की मुख्यधारा का हिस्सा नहीं माना जा सकता है. किसी राज्य में आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा केवल निर्देशात्मक है, अनिवार्य नहीं. यह सामान्य मानदंड हो सकता है. आयोग ने कहा, हालांकि, असाधारण या असामान्य परिस्थितियों में, 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने पर कोई रोक नहीं है. हलफनामे में कहा गया है, मराठा समुदाय के बीच आत्महत्याओं की अत्यधिक घटनाओं के बारे में आंकडों से भी पता चला है, जो अधिक अवसाद और हताशा का संकेत हैं.
* आत्महत्या करने वाले ज्यादातर मराठा किसान
हलफनामे में कहा गया है कि मराठों समेत सामान्य वर्ग के लोगों द्वारा की गई आत्महत्याओं के 10 वर्षों के आंकड़ों से पता चलता है कि आत्महत्या करने वाले केवल 5.18 प्रतिशत लोग गैर-मराठा सामान्य वर्ग से थे. अधिकांश लोग, यानी 94.11 प्रतिशत मराठा समुदाय से थे. आयोग के अनुसार 2018 से 2023 तक, अन्य श्रेणियों के किसानों की तुलना में आत्महत्या करने वाले मराठा किसानों का प्रतिशत अधिक था.
* अवैध रेहड़ी-पटरी वालों लेकर लगाई फटकार
बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार को अनधिकृत रेहड़ी-पटरी वालों के खिलाफ अधिनियम के प्रावधानों को पूरी तरह से लागू करने में विफल रहने और इसके बजाय बीएमसी के साथ आरोप- प्रत्यारोप में उलझने के लिए फटकार लगाई. अदालत ने कहा कि इससे आम नागरिक लगातार परेशान हो रहे हैं. कोर्ट ने समय-समय पर पारित समय-समय पर पारित अपने आदेशों के क्रियान्वयन न होने पर निराशा व्यक्त करते हुए चेतावनी दी कि यदि उसे मजबूर किया गया तो वह अवमानना के प्रावधानों का इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं हटेगा.न्यायमूर्ति एम. एस. सोनक और न्यायमूर्ति कमल खाता की खंडपीठ ने कहा कि,राज्य के अधिकारी 10 साल पहले लागू किए गए स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने में विफल रहे हैं. जबकि नागरिकों को महानगर में सार्वजनिक सड़को पर अनधिकृत रेहड़ी-पटरीवालों के खतरे का सामना करना पड़ रहा है. पीठ ने कहा कि, यह दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है कि सरकार ने 2014 में संसद से पारित अधिनियम को लागू नहीं किया. पीठ ने राज्य सरकार से 30 सितंबर से पहले इस संबंध में योजना बनाने को कहा है. हाई कोर्ट ने पिछले साल सड़कों पर अनधिकृत रेहड़ी- पटरीवालों के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया था.

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