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अपात्रता का मुद्दा फिर कोर्ट ले जाने की रणनीति

युक्तिवाद, प्रतिप्रश्न में समय जाया किया जा रहा

* स्पीकर ने कहा-विलंब होगा
मुुंबई/दि.24- प्रदेश में अयोग्य विधायक सुनवाई जिस ढंग से हो रही है माना जा रहा है कि स्पीकर राहुल नार्वेकर फैसले का दारोमदार पुन: सर्वोच्च न्यायालय के जिम्मे सौंपने की तैयारी कर रहे हैं. नार्वेकर ने गुरुवार को सुनवाई हेतु 18 दिनों का शेड्यूल जारी किया था. 28 नवंबर से 22 दिसंबर तक सुनवाई होनी है. सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला करने के लिए स्पीकर को 31 दिसंबर की समय सीमा दे रखी है. जिसके कारण भाजपा बहुत सावधानी से कदम उठा रही है. भाजपा को दक्षिण मुंबई लोकसभा क्षेत्र से नार्वेकर को मैदान में भी उतारना है. इसलिए सुनवाई में सुनियोजित विलंब किए जाने की चर्चा यहां चल रही है.
* मई में आया था सत्ता संघर्ष का फैसला
शिवसेना में विभाजन पश्चात दोनों गुटों की खीचतान पर सर्वोच्च न्यायालय ने लंबे युक्तिवाद पश्चात गत मई माह में फैसला सुनाया था. अध्यक्ष पर भी कुछ निर्णयों को लेकर टिप्पणीयां की थी. स्पीकर ने सदन के नेता पद पर एकनाथ शिंदे का चयन और भरत गोगावले को शिवसेना शिंदे गट का व्हिप नियुक्त करने पर कोर्ट ने अवैध बताया था. जिससे अध्यक्ष पद के चुनाव में भरत गोगावले व्दारा नार्वेकर को वोट देने का व्हिप अपने आप में अवैध हो जाता है. ऐेसे में राजन सालवी और नार्वेकर के बीच हुए चुनाव में नार्वेकर की विजय भी गैर कानूनी हो सकती है. इन सभी मुद्दों को देखते हुए नार्वेकर के स्पीकर पद पर ही प्रश्न उठाए जा सकते हैं. उन्हीं के पास विधायक अयोग्यता की सुनवाई देने से सर्वोच्च न्यायालय की कडे निर्णय की आशंका हो रही है. किसी भी पक्ष में निर्णय देने पर उसे अदालत में चुनौती दी जाने की पूर्ण संभावना है.
भाजपा के समर्थन से स्थापित सरकार के मुखिया व उनके सहयोगी विधायकों को कैसे अयोग्य करार दे, यह पशोपेश में भाजपा और स्पीकर हैं. महाशक्ति आपके साथ है, यह कहने वाले भाजपा विधायक व्दारा शिंदे गट के विधायकों को अयोग्य ठहराया गया तो भाजपा ने धोखा दिया, यह सोच शिंदे गट में आ सकती है. भाजपा को इसी बात का डर है. इसका बडा असर लोकसभा चुनाव में भी होने की आशंका है.
उसी प्रकार शिंदे गट के समर्थन में निर्णय देने पर सर्वोच्च न्यायालय में उसे ललकारा जाएगा. फिर न्यायालय की कडी टिप्पणियां सहन करनी पड सकती है अत: समय सीमा तक निर्णय में विलंब करने की रणनीति अपनाए जाने का दावा सियासी व विधि जानकार कर रहे हैं. विधायक अयोग्यता की गेंद सर्वोच्च न्यायालय के पाले में डालने का यह प्रयास है.

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