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मराठी को अभिजात दर्जा का मामला फिर अधर में

केंद्र सरकार बदलने जा रही मानक

पुणे/दि.10 – मराठी सहित देश की कुछ प्रादेशिक भाषाओं को अभिजात दर्जा मिलने की प्रतिक्षा रहने के बीच ही अब केंद्र सरकार ने इस हेतु तय किये गये मानक व मापदंड को बदलने का निर्णय लिया है. जिसके चलते यह मसला एक बार फिर अधर में लटकने जा रहा है.
जानकारी के मुताबिक केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय की भाषा विशेषज्ञ समिति ने विगत वर्ष एक रिपोर्ट पेश की थी. जिसमें अभिजात दर्जा देने के मानकों में कुछ बदलाव सुझाये गये थे. जिस पर फिलहाल विचार जारी रहने की जानकारी सामने आयी है. इन बदलावों व संशोधनों के चलते अब पूरी प्रक्रिया नये सिरे से करनी पड सकती है. जिसके चलते अभिजात भाषा का मुद्दा और भी कुछ समय के लिए अधर में लटका रहने के संकेत दिखाई दे रहे है. वहीं दूसरी ओर अभिजात मराठी के लिए प्रयास करने वाले समिति ने पुराने प्रस्ताव पर ही अभिजात दर्जा मिलना आवश्यक रहने की बात कही है.
बता दें कि, 21 जून 2023 को हुई बैठक में यह मुद्दा सबसे पहले रखा गया था. जिसके बाद इसे लेकर नये सिरे से चर्चा शुरु हुई और अब केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के बाद नये मानकों को लेकर अधिसूचना जारी की जाएगी. इसका एक अर्थ यह भी है कि, सरकार के समक्ष अभिजात दर्जा मिलने हेतु विचाराधीन रहने वाली भाषाओं विशेषकर मराठी को अभिजात भाषा का दर्जा मिलने हेतु नये मानक लागू होने तक प्रतिक्षा करनी पड सकती है. ज्ञात रहे कि, भाषातज्ञ समिति ने केंद्रीय गृह व सांस्कृतिक मंत्रालय के प्रतिनिधि तथा 4 से 5 भाषा विशेषज्ञ का समावेश होता है. साथ ही साहित्य अकादमी के अध्यक्ष को इस समिति का भी अध्यक्ष बनाया जाता है.
ज्ञात रहे कि, तमिल, संस्कृत, तेलगू, कन्नड, मलियारम व उडिया भाषाओं को अभिजात भाषा का दर्जा देने का निर्णय वर्ष 2014 में ही हो गया था. वहीं मराठी, बंगाली, आसामी व मैथिली भाषाओं को अभिजात भाषा का दर्जा दिये जाने की मांग विगत कुछ वर्षों से की जा रही है. जिसमें मराठी भाषा को अभिजात दर्जा दिये जाने के अनुसार विगत करीब 10 वर्षों से भी अधिक समय से प्रलंबित है. जबकि इसे लेकर रंगनाथ पठारे की विशेषज्ञ समिति ने केंद्र सरकार के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश कर दी थी और इस मामले में फॉलोअप हेतु राज्य सरकार ने एक समिति भी तय की थी. सेवानिवृत्त अधिकारी ज्ञानेश्वर मूले के अध्यक्षता वाली समिति ने सभी त्रृटियों को दूर करते हुए प्रस्ताव भी पेश किया है.

* पहले तय किये गये मानकों के आधार पर ही मराठी से संंबंधित प्रस्ताव को मान्य किया जाना चाहिए. ऐसी मांग पूरे महाराष्ट्र की है. इस काम में पहले ही काफी समय नष्ट हो चुका है तथा पुराने प्रस्ताव के लिए पुराने मानक ही लागू होने चाहिए. जिसके लिए केंद्रीय स्तर पर गतिमान ढंग से काम होना चाहिए.
– ज्ञानेश्वर मूले,
अभिजात भाषा हेतु स्थापित समिति के अध्यक्ष.

* मराठी अपने आप में वैश्विक भाषा है. अत: अन्य भाषाओं हेतु तय किये गये नियम मराठी पर नहीं लादे जाने चाहिए. मराठी के लिए नया प्रस्ताव तैयार करने की कोई जरुरत नहीं है, बल्कि पुराने प्रस्ताव पर ही मराठी को अभिजात भाषा का दर्जा मिलना चाहिए.
– संजय नहार,
अभिजात भाषा हेतु स्थापित समिति के सदस्य.

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