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मत प्रतिशत में कांग्रेस घटी, भाजपा का ग्राफ बढा

* सबसे पुरानी पार्टी के सामने अपना गतवैभव वापस लाने की चुनौती
मुंबई/दि.16– प्रत्येक व्यक्ति आय के बारे में भारत के सबसे अमीर राज्य में महाराष्ट्र एक ओर कांग्रेस के किले के रुप में जाना जाता था. आज उसका राजकीय परिदृश्य पार्टी और प्रादेशिक गुट के एक अलग ही माहौल खडा कर दिया है. विशेषतः आज कांगे्रस की सतत कम होते जा रही वोट बैंक यहां भारतीय जनता पार्टी की बडी ताकत बन गई है. पूरानी बॉम्बे प्रात सिंध (अब पाकिस्तान) से उत्तर-पश्चिम कर्नाटक तक फैला हुआ था. वही कुछ स्थानों को छोड वर्तमान के गुजरात का संपूर्ण क्षेत्र व वर्तमान के महाराष्ट्र का लगभग दो तृतीयांश क्षेत्र पर कब्जा जमा हुआ था. विदर्भ के दो मराठी भाषिक प्रदेश, मध्य प्रांत का एक भाग(बाद में मध्यप्रदेश) और हैदराबाद संस्थान का एक भाग मराठवाडा प्रांत के बाहर स्थित था.

कांग्रेस का वर्चस्व का काल
महाराष्ट्र के निर्माण होने के बाद 1962 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 264 में 215 स्थानों पर जीती थी और मारतोराव शंभशियों कन्नमवार मुख्यमंत्री बने. आगे के वर्ष में उनकी अकाल मौत होने के बाद वसंतराव नाईक के पास मुख्यमंत्री पद सौंपा गया. वे लगभग 12 वर्ष इस पद पर रहें. 1967 के चुनाव में कांग्रेस को अन्य राज्य में पराजय का सामना करना पडा. मगर महाराष्ट्र में उसका वर्चस्व कायम रहा. 1969 में पार्टी दो गट में विभाजीत हो गई. कांग्रेस(ओ) का नेतृत्व मोरारजी देसाई व के कामराज इन पूराने नेताओं ने नेतृत्व किया और कांग्रेस (आर) जहां आर यानी रिक्विजिशनिस्ट इंदिरा गांधी ने तैयार की थी. सिंडिकेट नाम से प्रसिध्द कांग्रेस (ओ) ने अनेक राज्य में प्रवेश किया. मगर 1972 में के चुनाव में विधानसभा में एक भी जगह जीतने में कामयाब नहीं हो सके.इंदिरा की कांग्रेस ने 270 में से 222 स्थानों पर जीत दर्ज की. फरवरी 1975 में इमरजंसी की घोषणा के कुछ ही हफ्ते बाद इंदिरा गांधी व उनके पुत्र संजय के निकटवर्ती शंकरराव चव्हाण की नियुक्ती की गई.

हिंदुत्व का उदय
इस वातावरण में राज्य में हिंदू दक्षिणपंथीय की ताकत बढी. राजकीय व्यंगचित्रकार बालासाहब ठआकरे ने 1966 में मराठी राष्ट्रवादी शिवसेना की स्थापना की और पार्टी को 1972 में पहला विधायक मिला. शिवसेना के शुरूआत का काल वसंतदादा पाटील के नजदीक था. मगर 1980 में भाजपा के उदय के बाद दोनो पार्टी नैसर्गिक मित्र के रुप में एक हो गए. 1990 तक दोनों पक्षों ने जगह के क्रम में 52 और 42 तक बढाया. 199 में महाराष्ट्र सेना-भाजपा युति ने लगातार 73 और 65 जगह पर पर जीत कर सत्ता में आयी. सेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री व भाजपा के गोपीनाथ मुंडे उपमुख्यमंत्री बने. कांग्रेस को 80 जगह मिली थी. 1999 में सेना-भाजपा के साढे चार वर्ष की सत्ता के बाद राज्य में समय के पूर्व ही चुनाव हुए.

कांग्रेस में फूट और राष्ट्रवादी का जन्म
इस दौरान 1999 में सोनिया गांधी पार्टी की नेता बनने के बाद शरद पवार ने कांग्रेस छोड दी और पीएम संगमा व तारीक अनवर के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(एनसीपी) की स्थापना की. जिसके कारण 1999 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस, कांग्रेस व सेना-भाजपा युति बहुत के आकडे तक कम पड गई. ऐसी परिस्थिती में कांग्रेस व राष्ट्रवादी ने एक साथ आकर सरकार स्थापित की. कांग्रेस के विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री व राष्ट्रवादी के छगन भुजबल उपमुख्यमंत्री बने. इस कांग्रेस-राष्ट्रवादी आघाडी ने आगे 15 वर्ष राज्य की सत्ता भोगी.

मोदी के वर्षों में महाराष्ट्र
2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रचार का नेतृत्व का नेतृत्व नितीन गडकरी और अमित शहा ने किया था और उध्दव सेना के प्रभारी थे. नरेन्द्र मोदी लहर ने महाराष्ट्र में सेना-भाजपा युति की सत्ता लाई. अकेली भाजपा ने 122 स्थानों पर जीत हासील की तथा सेना को 66 स्थानों पर जीत मिली. इस समय केवल 44 वर्ष की रहने के बावजूद भाजपा के देवेन्द्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इसके बाद भाजपा और शिवसेना में मनमुटाव चलने लगा और नतीजतन 2019 में उध्दव भगवा पक्ष से निकलकर महाविकास आघाडी का हिस्सा बनकर मुख्यमंत्री बने. राष्ट्रवादी व शिवसेना में फूट पडने के बाद यह पहली विधानसभा चुनाव हो रही है.

 

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