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निराशा पर ‘प्रेरणा’ का डोज

राज्य के 11 जिलों में अमल, किसान आत्महत्याओं को रोकने की चुनौती कायम

अमरावती/दि.10- निराशा के गर्त में फंसे किसानों की आत्महत्याओं को रुकवाने हेतु राज्य सरकार द्बारा प्रेरणा नामक प्रकल्प शुरु किया गया है. जिसके क्रियान्वयन के लिए विदर्भ क्षेत्र के 6 व मराठवाडा क्षेत्र के 8 ऐसे 14 जिलों का चयन किया गया है. इस प्रकल्प के तहत स्वास्थ्य विभाग द्बारा गांव-गांव जाकर किसानों से संपर्क साधते हुए उनका समुपदेशन किया जाता है. परंतु यद्यपि सरकार द्बारा इन सभी 14 जिलों में 10-10 हजार से अधिक किसानों का समूपदेशन करने के संदर्भ में दांवा किया गया है. परंतु हकीकत यह है कि, इसके बावजूद किसान आत्महत्याएं अब तक रुकी नहीं है. अकेले अमरावती जिले में ही जारी वर्ष के दौरान करीब 60 से अधिक किसानों द्बारा मौत को गले लगाया जा चुका है.

बता दें कि, हमेशा ही गीले अथवा सूखे अकाल वाली स्थिति की वजह से किसानों को फसलों की बर्बादी का सामना करना पडता है. वहीं यदि खेतों में उत्पादन ज्यादा होता है, तो बाजार में दाम कम मिलते है और जब बाजार में दाम अधिक होते है, तो हाथ में उपज भी नहीं रहती. हर साल लगभग इससे भी मिलती-जुलती स्थिति रहने के चलते किसानों के सिर पर कर्ज का बोझ बढने लगता है. साथ ही परिवार की जरुरतें कैसे पूरी की जाए. यह चिंता उन्हें खाने लगती है. जिसके चलते तनाव और निराशा का शिकार होकर किसानों द्बारा आत्मघाती कदम उठा लिए जाते है. ऐसे में सरकार ने इस समस्या का समाधान खोजने हेतु एक आयोग गठित किया था. जिसकी रिपोर्ट से कई प्रावधानो को लागू करते हुए किसान आत्महत्याओं को रोकने का सतत प्रयास किया जा रहा है. परंतु अब भी इस आंकडे को शून्य स्तर पर लाने में सरकार को सफलता नहीं मिली है.

बता दें कि, किसान आत्महत्याओं के बढते मामलों को देखते हुए सरकार द्बारा गठित प्रत्येक रिपोर्ट में किसानों की आत्महत्या के लिए निराशा को सबसे प्रमुख वजह बताया गया है. जिसे ध्यान में रखते हुए सरकार द्बारा वर्ष 2015 से प्रेरणा प्रकल्प को अमल में लाना शुरु किया गया. इस प्रकल्प को सभी जिलों में जिला सरकारी अस्पतालों के मार्फत चलाया जा रहा है और प्रकल्प को क्रियान्वित करने हेतु जिलास्तर पर स्वास्थ्य विभाग की टीम तैयार की गई है. जिसमें मानसोपचार विशेषज्ञ का समावेश किया गया है. यह दल गांव-गांव जाकर किसानों से मुलाकात करते हुए उनसे चर्चा करता है और उनकी समस्याओं को जानने व समझने का प्रयास करते हुए निराशा व तनाव का शिकार रहने वाले किसानों को समुपदेशन करता है. इसके साथ ही गांव-गांव में विविध शिविर भी आयोजित किए जाते है और प्रतिमाह एक दिन ग्रामीण अस्पताल के बाह्यरुग्ण विभाग में मानसिक स्वास्थ्य जांच हेतु विशेष सत्र रखा जाता है. इसके अलावा आशा वर्कर्स के जरिए भी तनाव एवं निराशा का शिकार रहने वाले किसानों की खोजबीन की जाती है तथा 14416 क्रमांक पर हेल्पलाइन की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है.

इस उपक्रम के तहत व्यक्तिगत समूपदेशन, पारिवारिक समूपदेशन, समूह समूपदेशन पद्धति का अवलंब किया जाता है. जिसके जरिए सौम्य नैराश्य, मध्यम नैराश्य व तीव्र नैराश्य ऐसे तीन हिस्सों में मरीजों का वर्गीकरण किया जाता है और इस इलाज से उनका समूपदेशन करते हुए उन्हें निराशा से बाहर लाने का प्रयास किया जाता है. परंतु इसके बावजूद भी किसान आत्महत्याओं के आंकडें बदलने और कम करने में अब तक सफलता नहीं मिली है.

* ग्रामीण क्षेत्र के गांव-गांव में हमारी टीम पहुंचकर निराशा का शिकार रहने वाले किसानों की खोजबीन करती है. साथ ही ऐसे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की ओर ध्यान देने के साथ ही उनका योग्य समूपदेशन व उपचार किया जाता है. ऐसे मरीजों को अकेलापन महसूस न हो और वे उपचार के नाम पर किसी भी तरह की अंधश्रद्धा का शिकार न हो, इस बात की ओर सर्वाधिक ध्यान दिया जाता है. राज्य सरकार द्बारा चलाए जा रहे प्रेरणा उपक्रम पर प्रभावी अमल का प्रयास किया जा रहा है. परंतु कई बार किसानों द्बारा समूपदेशन व उपचार लेने से इंकार किया जाता है. जिसकी वजह से सर्वेक्षण के काम में थोडी बहुत मुश्किलें आती है.
– भावना पुरोहित,
वरिष्ठ मानस समूपदेशक,
जिला सामान्य अस्पताल

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