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इतनी सहजता से अन्न यज्ञ कैसे चलाते हैं मनीष

केल्या ने होत आहे रे...

* पीडीएमसी में दो वर्षो से रोज सैकडों को भोजन
अमरावती/दि.9– अमरावती की धरा के संत गाडगेबाबा ने कहा है केल्या ने होत आहे रे आधी केले पाहिजे. अंबानगरी मेें अनेक ने उनसे प्रेरणा ली है. वे अपना नियमित कार्य करते हुए समाजसेवा के क्षेत्र में भी यथोचित योगदान करते हैं. नानाविध नाम गिनाए जा सकते हैं. अमरावती मंडल ने ऐसे भीड से अलग कुछ कर गुजरनेवालों की कहानी समय-समय पर दी है. इसी कडी में आज का चर्चित चेहरा मनीष चौबे हैं. सामान्य परिवार के मनीष चौबे की पहल से गत 2 वर्षो से एक दिन भी बगैर खलल पंजाबराव देशमुख वैद्यकीय महाविद्यालय अस्पताल में गरजमंदों के लिए शाम के भोजन की व्यवस्था कर रखी है. माना कि अनेकानेक लोग उनकी परशुराम अन्नदान सेवा समिति में योगदान कर रहे हैं. फिर भी अपने नित्य कार्य को अप्रभावित रखते हुए 742 दिनों से रोज 300-400 लोगों को भोजन उपलब्ध करवाना मिसाल बना है.
* कोरोना में हुई शुरुआत
परशुराम अन्नदान सेवा समिति का मानस अनेक वर्षो से था. किंतु इसका आरंभ कोरोना महामारी दौरान ही हो सका. पिछले 741 दिनों से चलाई जा रही सेवा में रोटी-सब्जी, मसाला भात, गुलाब जामुन, आलू बडा, चिवडा आदि भी समय-समय पर वितरीत किए गए.
* इंद्राभुवन थिएटर के पास रहते हैं चौबे
मनीष चौबे गेट के भीतर इंद्रभुवन थिएटर के पास रहते हैं. उनके छोटा भाई एड. आशीष चौबे हैं. वे परिसर के साथियों को लेकर सवेरे 6 बजे से तैयारी शुरु करते हैं. भोजन उनके चाचा घनश्याम चौबे के घर में बनाया जाता है. रोज ताजा पानी भरने से लेकर सब्जी तरकारी लाना, उसे सुधारना, पकाना तथा घर से लगभग 5 किमी दूर पीडीएमसी में ठीक समय पर शाम 7 बजे पहुंचाना यह गत 2 वर्षो से मनीष चौबे और साथियों की दिनचर्या बनी है. मनीष पेशे से मनपा के बगीचे रखरखाव के ठेकेदार हैं.
* पत्नी और दो बेटे
मनीष चौबे के पिता भीमसेन चौबे का निधन पिछले वर्ष हो गया. वे पौराहित्य और ज्योतिषीय कार्य करते थे. माताजी का नाम श्रीमती कांता चौबे हैं. मनीष के छोटे भाई आशीष एडवोकेट हैं. पत्नी अमीषा और दो पुत्र देव एवं हार्दित्य है. भारतीय जनता पार्टी में भी सक्रिय मनीष की बडी बहन आरती तिवारी है.
* दोपहर से रात तक लगे रहते
35-40 वर्ष की आयु में अपने सामाजिक सरोकारों पर ध्यान देते मनीष अपनी मृदुवाणी के कारण भी सभी के चहेते हैं. सुबह सब्जी, पानी की तैयारी के बाद दोपहर में अपने आजीविका के कार्य संपन्न कर मनीष दोपहर 4 बजे से भोजन बनवाने की तैयारी में जुट जाते हैं. उनका यह नित्यक्रम बन गया है. बेशक अनेक लोग आर्थिक सहकार्य करते हैं. किंतु भोजन बनाने, उसे सुरक्षित पीडीएमसी ले जाकर वहां वितरण करना श्रमसाध्य कार्य मनीष और उनके साथी करते हैं. उनमें हर्षद केडिया, गणेश शर्मा, आकाश मोरवाल, अमोल रौराले, संजय अग्रवाल, अभिषेक शर्मा, विशाल शर्मा आदि अनेक नाम लिए जा सकते हैं. मनीष की सेवा से कदाचित प्रभावित होकर वैभव और चेतन राजगुरे रोज नि:शुल्क ऑटोरिक्शा सेवा उपलब्ध करवा रहे हैं. इसका भी मनीष सहर्ष तथा सगर्व उल्लेख करते हैं.

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