परिवार का समाज में स्थान देखकर खावटी निर्धारित करना आवश्यक
हाईकोर्ट का निर्णय, पत्नी की 6 हजार रुपए खावटी कायम रखी
नागपुर /दि.22– प्रति माह खावटी निर्धारित करते समय संबंधित परिवार का समाज का स्थान और रहनसहन का दर्जा विचार में लेना भी आवश्यक है, ऐसी राय मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने एक प्रकरण का फैसला सुनाते हुए व्यक्त की. न्यायमूर्ति गोविंद सानप ने यह फैसला सुनाया.
अकोला पारिवारिक न्यायालय द्वारा पत्नी को 6 हजार रुपए प्रति माह अंतरिम खावटी मंजूर किए जाने से पति ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. उच्च न्यायालय ने यह मत दर्ज कर यह याचिका खारिज कर दी. प्रकरण के दंपति उच्च शिक्षित है और उनका परिवार भी धनाढ्य है. इसके अलावा महंगाई लगातार बढ रही है. इस बात को ध्यान में रख पत्नी को मंजूर हुई खावटी उचित है ऐसा उच्च न्यायालय ने कहा. यह दंपति पारिवारिक विवाद के कारण अलग हुए है. इस कारण पत्नी ने फौजदारी प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर कर खावटी की मांग की है. पत्नी के पास आय का कोई साधन नहीं है और पति ने उसके पालनपोषण की सुविधा नहीं की है, ऐसा आरोप इस याचिका में किया गया है. 6 मई 2024 को पारिवारिक न्यायालय में प्राथमिक मुद्दे विचार में लेते हुए इस याचिका पर अंतिम निर्णय होने तक पत्नी को संबंधित अंतरिम खावटी मंजूर की है.
* खावटी ठहराने का अधिकार न्यायालय को
याचिकाकर्ता पत्नी को कितनी खावटी देना है इस बाबत कानून में निश्चित प्रावधान नहीं है. पति की आर्थिक परिस्थिति, उस पर जिम्मेदारी, रहनसहन का दर्जा, पत्नी की आवश्यकता, महंगाई आदि माणक के आधार पर खावटी निश्चित की जाती है. यह अधिकार न्यायालय को है. इसके अलावा परिस्थिति में बदलाव होने के बाद पत्नी को खावटी में बढोतरी करने की मांग करते आ सकती है.
– एड. अनूप डांगोरे, हाईकोर्ट.