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मतदान के बाद स्याही नहीं बल्कि लेझर मार्क!

चुनाव आयोग की नई पहल, ‘एआई’ का इस्तेमाल

* फोटो भी निकाले जाएंगे
नई दिल्ली दि.22- फर्जी मतदान रोकने के लिए चुनाव आयोग और एक नई तकनीक अमल में लाने वाले है. मतदान के दौरान उंगलियों पर स्याही की बजाए अब लेझर चिन्ह का इस्तेमाल किया जाने वाला है. यह तकनीकी ज्ञान आर्टिफिशियल इंटेलिजंस अथवा ‘एआई’ पर आधारित रहनेवाला है.
इस वर्ष होनेवाले 5 राज्यों के विधानसभा के चुनाव में यह नई प्रणाली लागू की जा सकती है. इसकी जांच फिलहाल शुरु है. लेझर तकनीकी ज्ञान के कारण हेराफेरी रुकेगी. अनेक दिन लेझर से बनाए चिन्ह निकालना करीबन असंभव रहने का दावा किया जा रहा है. इतना ही नहीं बल्कि ईवीएम में कैमरा भी बैठाया जानेवाला है. जो मतदाताओं का फोटो कैद करेगा. इस यंत्रणा का इस्तेमाल हुआ तो स्याही का इस्तेमाल कालबाह्य हो सकता है. मतदान के लिए उंगलियों पर लगाई जानेवाली स्याही में चांदी वाली एक सिल्वर नाइट्रेड रसायन का इस्तेमाल किया जाता है. चांदी का इस्तेमाल किए जाने से यह स्याही मंहगी रहती है.
लेझर स्पॉट किए जाने के बाद वह व्यक्ति फिर से मतदान के लिए आया तो, पकडा जाएगा. दूसरी तरफ ईवीएम में बैठाया गया कैमरा एआई तकनीकी ज्ञान से फिर से मतदान करने के लिए आए व्यक्ति को पहचानकर चुनाव अधिकारी को अलर्ट भेजेगा. 30 से अधिक देशों में इस स्याही की आपूर्ति की जाती है.

* सर्वप्रथम इस्तेमाल कब?
मतदान में विशेष स्याही का इस्तेमाल भारत में सर्वप्रथम 1962 के आम चुनाव में किया गया था. उसके बाद अब तक हर चुनाव में इसका इस्तेमाल किया गया है. म्हैसूर पेंट्स एण्ड वानिश लिमेटेड यह एकमात्र कंपनी यह स्याही तैयार करती है. इसके लिए राष्ट्रीय फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया और नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने कंपनी के साथ करार किया है. महाराज कृष्णराजा वडियार चतुर्थ ने 1937 में कंपनी की स्थापना की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में स्याही की 26 लाख बोतल की ऑर्डर चुनाव आयोग ने दी थी. इसके लिए 33 करोड रुपए दिए गए थे. साधारणत: 350 मतदाताओं के लिए एक बोतल पूर्ण होती है.

* वर्ष स्याही की बोतल
2009 20 लाख
2014 21.5 लाख
2019 26 लाख

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