आपके जीवन के विष व विकारों को ग्रहण करते हैं महादेव
भगवान शिव के गंजेडी व नशेडी रहने के प्रचार को बताया गलत
* भगवान शिव के गंजेडी व नशेडी रहने के प्रचार को बताया गलत
* शिवकथा के अंतिम दिन पं. प्रदीप मिश्रा का कथन
* कथा के आखिरी दिन उमडी लाखो श्रद्धालुओं की भीड
* पंडाल के बाहर तेज धूप में बैठकर भाविकों ने सुनी कथा
अकोला/दि.11 – अक्सर भगवत भक्ति के बारे में अपर्याप्त जानकारी रखने वाले या मजाक उडाने वाले लोगों द्बारा भगवान शिव को गंजेडी या नशेडी बताया जाता है. जबकि हकीकत इससे बिल्कूल उलट है. भगवान शिव ने तो समुद्र मंथन के समय समूचे विश्व के कल्याण को देखते हुए समुद्र मंथन से निकले हलाहल का पान करते हुए उसे अपने कंठ में स्थान दिया था. जिसके चलते उन्हें नीलकंठ कहा गया है. इसके साथ ही भगवान भोलेनाथ द्बारा अपने भक्तों के जीवन में रहने वाले विकारों व विष का भी सहज तरीके से पान किया जाता है. ताकि भक्तों का जीवन सहज व सरल रहे. लेकिन इस बात को आम जनमानस समझ ही नहीं पाता. ऐसे में जरुरत है कि, हर व्यक्ति अपने आपको भगवान भोलेनाथ की शरण करें, ताकि उसके जीवन से विषयुक्त विकारों का नाश हो सके. इस आशय का प्रतिपादन पं. प्रदीप मिश्रा सिहोरवाले द्बारा किया गया.
यहां से पास ही स्थित म्हैसपुर में विगत 5 मई से चल रही श्री स्वामी समर्थ शिव महापुराण कथा के अंतिम दिन शिवकथा का समापन करते हुए अंतरराष्ट्रीय कथा प्रवक्ता पं. प्रदीप मिश्रा द्बारा उपरोक्त प्रतिपादन करने के साथ ही शिवभक्ति व भगवत भक्ति को बढाने का आवाहन भी किया गया. ताकि सत्य व शाश्वत सनातन धर्म की चेतना को दोबारा जागृत व पुनर्स्थापित किया जा सके. साथ ही उन्होंने एक बार फिर सेवाभाव के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि, जो व्यक्ति अपने गुरुजनों तथा माता-पिता की निस्वार्थ भाव से सेवा करता है, उसे भगवान भोलेनाथ का हर कदम पर साथ मिलता है. इसके अलावा उसके सेवाकार्यों को पुण्य कर्म भी माना जाता है. जिसका उसे समय पडने पर पुण्य लाभ भी प्राप्त होता है.
* 5 मिनट का गुस्सा करवा सकता है 20 साल की जेल, हर घर में कंट्रोल रुम रहना जरुरी
कथा के अंतिम दिन पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, किसी जमाने में रजवाडों व महलों में कोप भवन हुआ करते थे. जहां पर कोई भी व्यक्ति कुपीत अथवा गुस्सा होने के बाद जाकर बैठ जाता था और फिर परिवार के बाकी लोग उसे मनाने जाते थे. लेकिन मौजूदा दौर में लोगों के इतने बडे घर नहीं है कि, गुस्सा होने के बाद कुपीत होकर बैठने के लिए अलग से भवन बनाया जाए और न ही अब परिवार में किसी के पास इतनी फुर्सत है कि, वह गुस्सा होने वाले सदस्य को मनाए, ऐसे में बेहद जरुरी है कि, हर व्यक्ति खुद ही अपने गुस्से पर नियंत्रण पाना सिख ले. जिसके लिए में रहने वाले भगवान के मंदिर को कंट्रोल रुम का दर्जा दिया जा सकता है. जहां पर किसी भी बात को लेकर गुस्सा आने पर थोडी देर जाकर शांती से बैठ जाना चाहिए और अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए शांत होने का प्रयास करना चाहिए. गुस्से पर नियंत्रण को बेहद जरुरी बताते हुए पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, कई बार गुस्से की वजह से इंसान के हाथो कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती है, जिससे बाद में पूरी उम्र पछताना पडता है. अक्सर हर तरह की हिंसा व अपराध गुस्से के आवेश में ही घटित होते है. लेकिन उस 5 मिनट के गुस्से की वजह से घटित अपराध के लिए अगले 20 साल जेल की सलाखों के पीछे गुजारन पड सकता है. ऐसे में बेहतर है कि, गुस्सा आने पर दस-बीस मिनट घर में स्थित मंदिररुपी कंट्रोल रुम में बिता लिए जाए और गुस्से को कंट्रोल कर लिया जाए.
* दूसरों का वैभव देखकर चिंतित और व्यथित ना हो
इस कथा में सकारात्मक विचारों से पैदा होने वाली जीवन उर्जा के महत्व को रेखांकित करते हुए पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, अक्सर लोगबाग अपने सुख से सुखी होने की बजाय दूसरों के सुख को देखकर दु:खी ज्यादा रहते है. जिसकी वजह से ऐसे लोगों की जीवन कष्ट से भरा रहता है. अगर अपने आपको सुखी व खुश रखना है, तो दूसरों के जीवन में ताक-झाक करना बंद करें. बल्कि ईश्वर में आपकों जितना कुछ दिया है, उसके साथ संतुष्ट व सहज रहने की आदत डाले. इसके अलावा आपके पास जो कुछ है. उसे सन्मार्ग के रास्ते पर चलते हुए वृद्धिंगत करने का सहज प्रयास करें. लेकिन ऐसा करते समय किसी के साथ किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा का कोई भाव न रखे. तब जीवन में सहज, सरल व आनंदीत होगा. इसके साथ ही ईश्वर ने आपको जो कुछ दिया है, उस पर कभी गुमान भी न करें तथा अपने ऐश्वर्य व वैभव से किसी को निचा दिखाने का प्रयास भी ना करें. बल्कि आपके पास जो कुछ है. उसे ईश्वर की अनुकंपा मानकर ईश्वर के प्रति अनुग्रहित रहे. इसके अलावा अपने धनसंचय को बढाने के लिए कभी भी छल कपट का सहारा न लें.
* सबसे पापी शरीर मनुष्य का, लाश तक ढांककर ले जानी पडती है
शिवकथा के अंतिम दिन पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, इस दुनिया में ईश्वर ने 84 लाख योनियों के तहत नाना प्रकार के कीट-पतंगों, जीव-जंतूओं तथा पक्षियों व प्राणियों को बनाया है. किंतु इसमें से दो पैरों पर चलने वाला इंसान ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जिसे अपना तन ढंकने के लिए पकडे की जरुरत पडती है. इंसानों के अलावा दुनिया का कोई अन्य प्राणी अपना तन ढांकने के लिए कपडे नहीं पहनता. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि, अकेला इंसान ही एक ऐसा प्राणी है, जिसे मरने के बाद भी कफन के रुप में कपडे की जरुरत पडती है. साथ ही साथ इंसान के मुर्दा शरीर को नष्ट करने के लिए अलग-अलग तरह से अंतिम संस्कार करने की भी व्यवस्थाएं है. ऐसी कोई व्यवस्था दुनिया में किसी भी पशु-पक्षी अथवा प्राणी के लिए नहीं है, क्योंकि दुनिया में इंसानों के अलावा अन्य कोई प्राणी अथवा पशु-पक्षी किसी भी तरह का पापकर्म नहीं करते और प्रकृति द्बारा निर्धारित नियमों के अनुसार अपना जीवन जीते है. ऐसे में उनकी मृत्यु पश्चात शायद उनके मुर्दा शरीर को अपने आप में समाहित करने की व्यवस्था खुद प्रकृति द्बारा करके रखी हुई है. वहीं अपना पूरा जीवन पापकर्म में व्यतीत करने वाले इंसानों को अपना मुर्दा शरीर भी कपडे में ढांककर ले जाना पडता है और उस मुर्दा शरीर को नष्ट करने की व्यवस्था भी करनी पडती है.
* मांसाहार तो क्या, जमीन व इंसान तक निगल जाते है लोग
इंसानों द्बारा किए जाते पापकर्मों को उजागर करते हुए पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, प्रकृति ने इस दुनिया में दो तरह की आहार विशेषता वाली जीव बनाए है. कुछ जीव शाकाहारी होते है और कुछ मांसाहारी होते है. शाकाहारी रहने वाले जीवों द्बारा मांसाहार नहीं किया जाता और मांसाहारी रहने वाले जीव शाकाहार नहीं करते. लेकिन इंसान एकमात्र ऐसा जीव है, जो स्वाद की लालच में शाकाहार और मांसाहार दोनो करता है. हमारे आहार के साथ हमारी भूख का संबंध ही नहीं होता. बल्कि हम केवल स्वाद की लालच में कई तरह की चीजे खाते है. साथ ही इन दिनों इंसान की भूख तो स्वाद से आगे बढते हुए लालच पर ही आधारित हो गई है. जिसके चलते हम शकाहार व मासांहार तो क्या, जीवित इंसानों, जंगलों व जमीनों तक को खाने व निगलने लग गए है. आखिर इस प्रवृत्ति पर कहीं न कहीं लगाम लगाना जरुरी है.
* तन और धन परिवार को दें, लेकिन मन महादेव को
विगत 5 मई से चल रही शिवकथा के अंतिम दिन कथा का समापन करते हुए पं. प्रदीप मिश्रा ने सभी उपस्थित शिवभक्तों एवं भविक श्रद्धालुओं से शिवभक्ति व भगवत भक्ति के मार्ग पर आगे चलते हुए जीवन सफल बनाने का आवाहन करने के साथ ही कहा कि, हर व्यक्ति के पास तन, मन व धन होता है. जिसमें से तन व धन अपने परिवार को देना चाहिए, वहीं मन को महादेव की भक्ति में समर्पित करना चाहिए, तभी जीवन सार्थक व सफल होगा.
* अंतिम दिन उमडी श्रद्धालुओं की भारी भीड
म्हैसपुर में विगत 5 मई से चल रही शिवकथा में पहले ही दिन से भाविक श्रद्धालुओं की अच्छी खासी उपस्थिति देखी जा रही थी. जिसके चलते आयोजन स्थल पर बनाए गए दो पंडाल कथा के समय खचाखच भरे दिखाई देते थे. वहीं जैसे-जैसे कथा एक-एक दिन आगे बढती गई वैसे-वैसे कथा स्थल पर उमडने वाली भाविकों की भीड ने भी वृद्धि होती चली गई. ऐसे में आज कथा के अंतिम दिन भाविकों की उपस्थिति में भीड के सारे रिकॉर्ड तोड दिए. जिसकी वजह से दोनों कथा पंडाल पूरी तरह भर जाने के बाद हजारों श्रद्धालुओं को पंडाल के बाहर खुले आसमान के नीचे बैठकर कथा सुननी पडी. आज विगत कुछ दिनों की तुलना में धूप व गर्मी का असर कुछ अधिक था. लेकिन इसके बावजूद चिलचिलाती धूप में तेज तापमान के बीच हजारों शिवभक्तों ने पूरे श्रद्धाभाव के साथ कथा का श्रवण किया.
* जगह-जगह पर पानी व भंडारे का इंतजाम
आयोजन स्थल पर शिवकथा सुनने हेतु उपस्थित श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए भोजन-प्रसाद व पानी का इंतजाम तो था ही, जिसके लिए कथा पंडाल के चारों ओर अलग-अलग स्टॉल बनाए गए थे. वहीं म्हैसपुर की ओर आने वाले सभी रास्तों पर स्वयंसेवी संगठनों व सेवाभावी लोगों की ओर से भी भाविक श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए ठंडे पेयजल तथा चाय व अल्पाहार की व्यवस्था की गई थी. साथ ही कई छांव वाले स्थानों पर कथा से लौट रहे श्रद्धालुओं के लिए दोपहर में रुकने व विश्राम करने की व्यवस्था भी की गई थी.