धामणगांव रेलवे- दि.28 धामणगांव तहसील का मंगरुल दत्त गांव काफी सुंदर और कई मंदिर है. संत महात्माओं के कदमों से पवित्र हुए इस गांव की पश्चिम दिशा में एक किलोमीटर दूरी पर पूर्व मुखी भगवती मंगला माता का प्राचीन व जागृत मंदिर है. इसवी सन 2000 में इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने के कारण कौंडण्यपुर के शंकराचार्य भागवत महाराज ने उद्बोधन करते हुए ‘बाळ परत ये, मी वाट पाहते’ ऐसा उच्चारण किया. यहीं ब्रीदवाक्य आगे प्रचलित और विख्यात हुआ. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के व्दितीय संघ चालक गोलवलकर गुरुजी यहां आये थे. उल्लेखनीय यह बात है कि, इस गांव को संतों की भूमि और मंदिरों का गांव कहा जाता है. संत लहानुजी महाराज व संत गणपति महाराज का जन्म भी यहीं हुआ था.
श्री मंगला माता के यहां के निवास के बारे में ऐसा बताया जाता है कि, सामान्य तौर पर 200 वर्ष पूर्व यहां का कोई भक्त नवरात्र में माहुर की रेणुका माता के दर्शन के लिए जा रहा था. आगे वह वृध्दावस्था के चलते माहुर जाने में असमर्थ होने के कारण काफी दुखी हुआ. तब रेणुका माता ने कहा कि, तू चिंता मत कर, मैं ही तेरे गांव आती हूं. आगे कोई सद्पुरुष इस मार्ग से जा रहा था. उनकी नित्य पूजा की श्री रेणुका का चावल यहां मंगलधाम परिसर में रह गया. आगे रहने वाले मुकामी मुखवटा नहीं होने की बात समझ में आने पर वह वापस मंगलधाम परिसर में आया. तब रेणुका माई ने मैं अब यहीं रहुंगी, ऐसा बताया. वह प्रकट दिन चैत्र शुक्ल चतुदर्शी का था. तब से आज भी चैत्र शुक्ल 14 को यहां हर वर्ष उत्सव मनाया जाता है. इस मंगला माता को भवानी माता भी कहा जाता है. यह स्थान माहुर क्षेत्र की उपशक्तिपीठ होने के कारण माहुर की रेणुका माता से मांगी मन्नत यहां भी पूरी की जा सकती है.
यह मंगलामाता कई घरानों की कुलदेवता है. बीच में कुछ समय यह स्थान पर स्थान नहीं दिया गया. ई.स. 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के व्दितीय सरसंघ चालक प.पू.गोलवलकर गुरुजी मंगरुल की संघ शाखा देखने आये थे. इस समय वे भगवती के दर्शन के लिए गए थे. उन्हें वहां भगवती का साक्षात्कार हुआ. गुरुजी ने यह स्थान जागृत होने की बात बताई. प. पू. स्वामी शिलानंद सरस्वती ने सन्यास लेने के बाद साधना करने के लिए माहुर से स्थान खोजते हुए मंगरुल पहुंचे थे. देवी भागवत के नवम स्कंद में मंगल चंडी नाम से श्री मंगला माता का उल्लेख है. भक्तों का मंगल करने के लिए जो तत्पर है, वह मंगल चंडी की काफी पहले मंगल नामक राजा ने प्रकृति अंश सावित्री देवी की उपासना की. राजा की विनंती पर देवी सावित्री उनके घर कन्या के रुप में प्रकट हुई. इस वजह से उनका नाम मंगलादेवी रखा गया.
जन्म, मृत्यु रुपी दुख से जो भक्तों को तारती है वह मंगला. यह मंगलादेवी मंगल ग्रह की अधिष्ठात्री है. इनकी उपासना से मंगल ग्रह का दोष नहीं होता. मंगला देवी की उपासना से विवाह आदि कार्य जल्द होते है, ऐसा कई भक्तों का अनुभव है. मंगलागौरी का व्रत इनके नाम से करते है. मंगला देवी का स्थान भारत में दो ही जगह हेै. एक काशि क्षेत्र मंगला गौरी और दूसरा मंगरूल दत्त में. मंगरुल की मंगला माता देवस्थान का व्यवस्थापन व सेवा अध्यक्ष प्रभाकर खानझोडे, उपाध्यक्ष दिवाकर देशपांडे, सचिव रविंद्र देशपांडे, सहसचिव प्रशांत शेठे, कोषाध्यक्ष राजेश सोनी, विश्वस्त जुगलकिशोर मुंधडा, मोरेश्वर फडणवीस, शरदचंद्र देशपांडे समेत मुख्य पूजारी मोहनदेव, व्यवस्थापक विवेक देव, देवी के परम भक्त वैभव पोद्दार यह प्रचार व प्रसार का कार्य देखते है.