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मणिरत्न के सोनी परिवार ने किया स्मरण

रामेश्वरधाम में घुंघट लेकर नाचे भी थे मिश्राजी

* अमरावती का सोनी परिवार था भागवत का यजमान

अमरावती/दि. 19– आदरणीय गुरुजी प्रदीपजी मिश्रा का यह तीहरा सहयोग है इस साल भी श्रावण महीना अधिक मास का है इस साल हुआ है इसके पूर्व हमारे मनी रत्न परिवार का भागवत कथा 11 अगस्त 2004 से 17 अगस्त 2004 तक रामेश्वरम में रखी गई थी. उसमें गुरुजी आने के लिए 6 अगस्त को अमरावती जनार्दन पेट दत्त छाया में मेरी छोटी बहन रजनी शारदा तथा कुंवर साहब जगदीश शारदा के साथ में अमरावती पधारे थे और सहयोग कहिए सहयोग की गुरुजी उसे वर्ष भी श्रावण महीने में अधिक अधिक मास था में अधिक महीना था और उसे अधिक माह में ही मेरे पूज्य पिता श्री रतनलाल जी सोनी के पावन स्मृति में रामेश्वरम में भागवत कथा का आयोजन किया गया और यह श्रावण मास में ही था परिवार के करीब 150 लोगों को लेकर हम लोग बांगड़ धर्मशाला रामेश्वरम में रुके थे तथा वही कथा कीजिए करी थी और उसे समय गुरुजी के साथ में अमरावती से लेकर रामेश्वरम तक का सफर तथा वहां की विधिवत पूजा अर्चना कराकर कथा का पूरा आनंद लेने का पूरे परिवार को मिला मिला गुरुजी उसे समय 20 या 22 वर्ष के ही होंगे और उनका सरल सभा स्वभाव जो उसे समय था आज मिलने पर इस तरह का सरल सभा स्वभाव देखने को मिला उसे समय भी गुरुजी बहुत ही सरलता से हर विषय समझाया करते थे उसे समय भागवत कथा सुबह 8 से 12 तथा शाम को 2 से 6 हुआ करते थे 1050 उसके उपरांत गुरुजी के साथ शाम की आरती भगवान रामेश्वरम के मंदिर में करने जाया करते थे और शाम को वहां पर माता पार्वती का स्वर्ण रथ परिक्रमा हुआ करती थी ओ स्वर्ण राध की परिक्रमा का एक दिन का आयोजन करने का भी पूरे मनी रत्न परिवार को मिला गुरुजी का सभा स्वभाव कुछ समय भी इतने सरल थे कि हम लोगों के साथ में नाचना फुगड़ी खेलना घूंघट लेकर नाचना इस तरह की सभी एक्टिविटीज में गुरुजी खुले मन से शामिल होते थे और हमारे परिवार को जो की 150 लोग यहां से हम एक साथ गए थे उसका आनंद लेने का मिला इसी कड़ी में गुरुजी ने तीन दिन के नानी बाई का मायरा अमरावती स्थित हमारे घर के सामने में जनार्दन पेट में 2006 में करने का आनंद मिला इसी दौरान मेरे बड़े जीजा जी का देहांत हुआ तथा उनके घर पर भी सिराज गांव कस्बा में 2005 में भागवत कथा करने का तथा हमें सुनने का आनंद मिला था गुरुजी के साथ में हमारे परिवार में परिवार के सदस्यों ने तथा उनके सहयोगी ने करीबन 15 से 20 कथाएं अलग-अलग आयोजन किया जिस्म की बद्रीनाथ से लगाकर नेपाल मगरूर पर पीर ऐसे कई जगह पर जाकर सुनने का हमें आनंद प्राप्त हुआ

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